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“पालघर की घटना बताती है कि भीड़तंत्र को पुलिस और कानून का कोई खौफ नहीं है”

Palghar Incident

मॉब लिंचिंग

पूरा विश्व कोरोना संकट से जूझ रहा है। भारत सरकार द्वारा लॉकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ा दी गई है। लॉकडाउन के कारण लोग घर पर रहने को मजबूर हैं। एक इंसान, दूसरे इंसान की मदद कर रहा है।

इस संकट की घड़ी में मनुष्य साझी जंग लड़ रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र के पालघर से इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली तस्वीरें देखकर, रूह कांप जा रही है। मानवता को तार-तार कर देने वाली इस घटना का वीडियो एक बार देखने के बाद, दोबारा देखने की हिम्मत नहीं हो रही है।

भीड़ कर रही है लोकतंत्र की हत्या

बार-बार दिमाग सोचने पर मजबूर हो जा रहा है कि कैसे कोई इंसानों की भीड़, एक इंसान को निर्ममता से पीट-पीटकर मार सकती है?

सोचता हूं, जिस देश का वासी हूं, उसे विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र का दर्ज़ा प्राप्त हैं। ऐसे में कुछ असमाजिक तत्व कैसे हमारे लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदल दे रहे हैं?

क्या पुलिस और कानून का डर खत्म हो चुका है?

इन सबके बीच खाकी वर्दी चुपचाप तमाशा देख रही थी। जिस खाकी वर्दी की ज़िम्मेदारी लोकतंत्र की हिफाजत करना है, देश में संविधान का राज स्थापित करना हैं। वह भीड़तंत्र का तमाशा देखती रह जा रही है।

जिस खाकी वाले से सुरक्षा और विश्वास की उम्मीद लिए साधु ने हाथ पकड़ा था, उस हाथ को खाकी वर्दी वाले ने बड़े ही सहजता के साथ अमानवीय और हिंसक भीड़ के हाथों में सौंप दिया।

खून की प्यासी भीड़ ने पालघर में दो साधुओं और उनके ड्राइवरों की पीट-पीटकर हत्या कर दी और कानून बगल में खड़ा होकर इस भयानक मंज़र को देख रहा था।

यह सब तब हुआ जब पूरे देश में लॉकडाउन है और सरकारी आदेशों के मुताबिक भीड़ एकत्रित होने की मनाही है। ऐसे में महाराष्ट्र पुलिस और राज्य का नेतृत्व करने वाली उद्धव ठाकरे सरकार अब सवालों के कटघरे में है।

क्या अफवाह है भीड़तंत्र का जिम्मेदार?

कोरोना महामारी के बीच में भीड़तंत्र वाली महामारी का खुराक अफवाह है। अफवाह ही है, जिसने कई निर्दोष लोगों की जान ली है। कोरोना से बचने के लिए लॉकडाउन जारी है लेकिन इसका विपरीत प्रभाव देखने को मिल रहा है।

पूरे देश में कोरोना से जुड़ी हुई अफवाहें जंगल में आग की तरह फैल रही हैं। इसी के साथ पालघर में बच्चा चोरी की भी अफवाहें तेज़ी से फैल रही थीं। इसका भयावह परिणाम पालघर में 3 लोगों को अपनी जान देके चुकानी पड़ी।

क्या सांप्रदायिकता भीड़ की मानिसकता है?

हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग हैं, जो इस नृशंस घटना में मरने वाले और मारने वालों का धर्म तलाश लेते हैं। सोशल मीडिया पर एक तबका इस घटना को सांप्रदायिक रंग देने में लगा है। वो इस घटना में भी हिन्दू-मुस्लिम तलाश रहा है।

इस अफवाह का प्रसार इतना तेज़ था कि महाराष्ट्र सरकार को बताना पड़ा सर्वाइवर और आरोपी एक ही धर्म के हैं। महाराष्ट्र सरकार को विशेष रूप से यह बताना पड़ा कि सभी आरोपियों में कोई भी आरोपी मुस्लिम नहीं है।

महाराष्ट्र सरकार के इस बयान से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इस घटना का कितना संप्रदायीकरण और राजनीतिकरण हुआ है। अब सरकार को यह भी बताना पड़ रहा है कि आरोपी का क्या सम्प्रदाय है।

धर्म के नाम पर मॉब लिंचिंग का ज़िम्मेदार कौन?

इस देश में धर्म की अफीम इतने भयावह रूप से फैल चुकी है कि हर मॉब लिचिंग की घटना में धर्म का एंगल डालने की कोशिश की जाती है।

निश्चित रूप से मॉब लिचिंग की ऐसी घटनाएं अमानवीय और बहुत भयानक होती हैं। ऐसे अपराध को किसी भी कीमत पर छमा नहीं किया जा सकता है। ऐसी आक्रामकता हमेशा ही लोकतंत्र और संविधान के नाम पर कलंक है।

इसी भीड़ ने अखलाक, तबरेज़, सुबोध कुमार जैसे निर्दोष लोगों को पीट-पीटकर मार डाला था। ऐसी ही भीड़ ने अब पालघर में 2 साधुओं समेत उसके ड्राइवर की हत्या की है।

यह भीड़ कहां से आती है? इसके पीछे क्या मानसिकता है? इसकी पहचान होनी चाहिए, जो बार-बार लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदल देती है।

पिछले कुछ सालों में भारत में बढ़ीं है लिंचिंग की घटनाएं

भारत में मॉब लिचिंग की घटनाएं पिछले कुछ सालों से बढ़ी हैं। इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गाइडलाइन भी जारी किया गया है।

ऐसे में सवाल उठता है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को कितनी राज्य सरकारों ने गंभीरता से लिया है? गौरतलब है कि अगर सरकार ने गंभीरता से लिया होता, तो पालघर में ऐसी ह्रदयविदारक घटना नहीं होती।

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