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“शहरों में बहुमंज़िला इमारतें बनाने वाला मज़दूर वर्ग आज दो वक्त की रोटी के लिए भटक रहा है”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

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लॉकडाउन के बाद पैदल अपने-अपने गाँव की तरफ जाते मज़दूर वर्ग।  फोटो साभार- सोशल मीडिया

फिलहाल हम सभी लोग लॉकडाउन के समर्थन में अपने अपने घरों पर फुरसत से बैठे हुए हैं। कुछ लोग टेलीविज़न पर दोबारा से शुरू किए गए सीरियल महाभारत और रामायण देख रहे होंगे तो वहीं कुछ लोग अन्य कार्यों में व्यस्त होंगे। तो ज़रा रुकिए और सोचिए कि एक मुद्दा जो आजकल सोशल मीडिया पर सुर्खियों में है, वो क्या है?

वह है कोरोना वायरस और इससे प्रभावित मज़दूर वर्ग। वो दिहाड़ी मज़दूर जो अपने गाँवों से शहरों में अपनी आजीविका के लिए आए थे और लॉकडाउन के चलते उसको अपने घर लौटना पड़ रहा था। जब वे नगरों और महानगरों में आए तो आवागमन के साधन चल रहे थे लेकिन अब जब वे लौटना चाह रहे हैं तो आवागमन की सुविधाएं पूरी तरह से बंद हो चुकी हैं।

सोचिए कि नगरों और महानगरों को कौन चलाता है? इन महानगरों में बनी खूबसूरत बहुमंज़िला इमारतों को कौन बनाता है? होटलों और दुकानों पर कौन काम करता है? शहरी लोगों के घरों पर कौन काम करता है?

ऐसे और भी सवालों का जबाब है मज़दूर वर्ग। सम्पूर्ण देश में लॉकडाउन के चलते शहरों के दिहाड़ी मज़दूर वर्ग में संकट की स्थिति पैदा हो गई है। अब मज़दूर वर्ग जैसे-तैसे अपने गाँव की ओर जाने को विवश हो गया है, क्योंकि लॉकडाउन के चलते ना तो उनके पास कोई कमाई का ज़रिया है, ना खाने को भोजन और ना रहने के लिए घर है।

क्या इन दो-तीन दिनों में हमारी सरकार को इस वर्ग की ज़रा भी सुध लेने की फुरसत नहीं है? ये भी देश के नागरिक हैं। ये भी वोट देते हैं और सरकारें बनाते हैं लेकिन सरकार को केवल संपन्न वर्ग की ही चिंता है। देश का संपन्न वर्ग देश से बाहर है उसको तो सरकार ने विशेष विमान द्वारा देश में लॉकडाउन होने से पहले बुला लिया है।

लेकिन मज़दूर वर्ग जो अपने ही देश के विभिन्न राज्यों, महानगरों में फसे हुए हैं, उनके लिए लॉकडाउन होने से पहले कोई इंतज़ाम नहीं किए गए थे और यहीं पर सरकार से चूक हो गई। 

अगर आप कहते हैं सरकार की गलतियां निकालने से क्या हो जाएगा ? तो यकीन मानिए बहुत कुछ होता है। हम अगर समस्या के खिलाफ बोलते हैं तो साथ में और लोग भी बोलते हैं और ये आवाज इतनी ऊंची हो जाती है कि हुक्मरानों के कानों तक पहुच जाती है और वे इस आवाज़ का जबाब देते हैं।

आज सोशल मीडिया, पत्रकारों द्वारा दिहाड़ी मजदूरों के पैदल पलायन करने की पीड़ा दिखाने के बाद ही सरकार ने इन मज़दूरों के लिए कुछ इंतज़ाम करना शुरू कर दिया है। यह अच्छी पहल है लेकिन देर हो गई। 

लॉकडाउन से आप्रवासियों को असुविधाएं

घर जाते प्रवासी मज़दूर रास्ते में अपनी थकान दूर करते हुए। फोटो साभार- सोशल मीडिया

बहुत से समाजविज्ञानियों ने लॉकडाउन से मज़दूर वर्ग को होने वाली परेशानियों के मुद्दे को अखबारों और सोशल मीडिया के ज़रिये चेताया है। आज लाखों की संख्या में मज़दूर अपने गाँवों की और पलायन कर रहे हैं। बहुत सारे न्यूज़ चैनलों ने उन लोगो से पलायन का कारण पूछा तो बात निकलकर सामने आई कि वे दिहाड़ी मज़दूर हैं और जो किसी ना किसी के यहां काम कर रहे थे।

लॉकडाउन की वजह से सब ठप्प सा हो गया है। दिन में जो वे कमाकर लाते थे, उसी से रात का चूल्हा जलता था। अब ना तो चूल्हे में आग है और ना ही जेब मैं पैसे हैं। कुछ लोगों के पास तो घर भी नही हैं, वे रात में फुटपाथ पर सोते थे।

भारत बंदी के ऐलान के कारण अब वे फुटपाथ पर भी  नहीं रह सकते हैं। फिर आखिर जाएं तो जाएं कहां? अब उनके पास एक ही रास्ता बचता था वो यह कि अपने गाँव लौट जाएं। अब सडकों पर देश के वे वर्ग हैं जो धनी वर्ग की ज़िन्दगी आसान करते हैं। देश की असली सेवा करने वाले, हमारे घरों को तराशने वाले आज भूख और कोरोना के खौफ से बैचैन भटक रहे हैं और उनकी सुध कोई नहीं लेने वाला हैं।

सरकार की कमी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार- सोशल मीडिया

हमारे देश में फरवरी के अंतिम सप्ताह तक कोरोना वायरस ने प्रवेश ले लिया था. और मार्च के दूसरे हफ्ते तक लगभग सभी स्कूलों-कॉलेजों को बंद करने की नौबत आ गई थी। 20  से 22 मार्च के बीच देश के बहुत सारे राज्यों में लॉकडाउन की स्थिति चल रही थी जिसमें 22 मार्च को प्रधानमंत्री जी ने सम्पूर्ण भारत बंद का ऐलान कर दिया था।

भारत सरकार कोरोना वायरस से लड़ने के लिए कई प्रयास कर रही है लेकिन इस बीच एक बार भी इन शहरी गरीब मज़दूरों के बारे में क्यों नहीं सोचा गया?

उनको किसी भी तरह का आश्वासन क्यों नहीं मिला? क्या सरकार की सारी प्लानिंग उच्च और मध्यम वर्गों तक ही सीमित रह गई? आज जब लाखों की  संख्या में अप्रवासी मज़दूर अपने गाँवों की तरफ पैदल ही पलायन करने को मजबूर हैं, तो सरकार उनके लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं ले रही है?

जबकि दूसरी तरफ हमारे देश के उच्च और मध्यम वर्ग को लाने के लिए हवाई जहाज की सुविधा कर सकते हैं, तो इन मज़दूरों के लिए सुविधाएं जुटाने में इतनी देर क्यों लगा रही है? वर्तमान में जो स्थिति इन मजदूरों की हैं,  सरकार को इसका पहले से बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था या वह अपनी ज़िम्मेदारियों से मुह मोड़ना चाह रही है?

क्या उपाए किए जा सकते हैं

लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में आनंद विहार से बस पकड़कर घर जाते प्रवासी मज़दूर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

वर्तमान की जो स्थिती बनी है उससे निपटारा कैसे पाया जाए? यह हम सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस एक वैश्विक महामारी बन चुका है। जो कि चीन के वुहान शहर से उपजी और देखते ही देखते विश्व के लगभग सभी देशों में फैल गई। हालांकि चीन ने इस वायरस से लगभग निज़ात पा ली है।

विश्व के और देशों में इस वायरस से लड़ने की भरपूर कोशिश चल रही हैं। कुछ देश सफल हो रहे हैं और कुछ नहीं। देर-सबेर हमारे देश की सरकार भी एक्टिव हुई और लगातार कुछ ना कुछ जनता को हिदायत दे रही है।

सरकार अपने संसाधनों का प्रयोग करके वायरस से निपटने की भरपूर कोशिश कर रही है लेकिन यह कोशिश शायद एक या दो तबकों के बीच ही सीमित रह गई हैं।

क्या सरकार मज़दूर वर्ग के लिए कुछ कर पाएगी या उन्हें ऐसे ही भूखा-प्यासा सड़कों पर ही मरने के लिए छोड़ देगी। जो मज़दूर शहरों में बचे हैं सरकार को चाहिए कि पहले उनमें फैले भय से निजात दिलवाए।

उन्हें भोजन और शेल्टर मुहैया कराए ताकि थोड़ी राहत की सांस आए। जो मज़दूर अपने परिवारों के साथ शहरों से निकल पड़े हैं उनके लिए बस, मोटरकार और खाने की सुविधा की जाए ताकि वे अपने घरों में सुरक्षित पहुंच सकें।

हमारे देश के संपन्न वर्ग को भी आगे बढ़कर इन मज़दूरों की मदद करनी चाहिए। (जैसे कि घरेलू कामगार महिला का वेतन ना कटौती करके, डोनेशन देकर इत्यादि।)

हमारी सरकार जो कर रही है वह काफी नहीं हैं, हम नागरिकों का भी अपने देश के प्रति कर्तव्य बनता है। हम सब आगे आएं और इस कार्यशील तबके की मदद करें। अगर यह कार्यशील तबका नहीं रहा, तो जी हम और आप भी नहीं पाएंगे।

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