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“कोरोना संकट के बीच मेडिकल इमरजेंसी से जूझ रही हैं सेक्‍स वर्कर्स”

फोटो साभार- Flickr

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हमारे समाज में सेक्‍स वर्कर्स एक ऐसा नाम है, जिन्हें हमेशा निम्न दृष्टि से देखा जाता है। पता नहीं ऐसी क्‍या घिनौनी हरकत छुपी हुई है इस नाम में कि लोग सेक्‍स वर्कर्स नाम अपनी जुबान पर लेते ही स्‍वयं को अपवित्र सा समझने लगते हैं।

उन्‍हें लगता है कि सेक्‍स वर्कर्स नाम को अगर हम अपनी जुबान पर ले लेंगे तो हमारे अंदर की विद्या खण्डित हो जाएगी और हमारे ज्ञान में भी कमी आ जाएगी।

अंंतत: ऐसी सोच लोगों के अन्‍दर लगातार रूढ़िबद्ध तरीके से विकसित होती चली जाती है और सेक्‍स वर्कर्स को एक अलग ही वर्ग अथवा श्रेणी के रूप में देखा जाने लगता है।

परिणाम इसका यही होता है कि हम लगातार सेक्‍स वर्कर्स को केवल उपयोग की वस्‍तु समझने लगते हैं। इस प्रकार हमारे समाज में सेक्‍स वर्कर्स को सबसे निचले पायदान पर रखा जाने लगता है और उस ओर ना तो समाज का ध्‍यान जाता है और ना ही सरकार का। सरकार का ध्‍यान इस ओर इसलिए नहीं जाता है, क्‍योंकि सरकार चलाने वाले भी तो हमारे समाज से निकले हुए लोग होते हैं।

कोरोना महामारी में सेक्स वर्कर्स की अनदेखी

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

आज देश कोरोना जैसी भयंकर महामारी से जूझ रहा है। ऐसे में सेक्‍स वर्कर्स की अनदेखी करना देश की मूल भावना के साथ बेमानी करने के समान होगा। आज हम लॉकडाउन के चलते मीडिया के माध्‍यम से देख रहे हैं कि किस तरह से सेक्‍स वर्कर्स फंसे हुए हैं और अपनी दो वक्‍त की रोटी जुटाने के लिए भी असमर्थ होते नज़र आ रहे हैं। विडम्‍बना यह है सेक्‍स वर्कर्स आज उन लोगों की श्रेणी में आते हैं जिन लोगों की बात सबसे आखिर में की जाती है।

चाहे सरकार हो या समाज। हर जगह इन महिला सेक्‍स वर्कर्स की बात सबसे आखिर में की जाती है। आज देश में कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन का माहौल बना हुआ है। ऐसे में सेक्‍स वर्कर्स की बात सबसे आखिरी में किया जाना भारत के मूल सिद्धांतों के साथ बेमानी है।

बुनियादी ज़रूरतों का अभाव

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोरोना संकट के चलते सेक्‍स वर्कर्स की हालत बद से बदत्‍तर होती जा रही है। ना तो उनके पास खाने के लिए पर्याप्‍त भोजन है, ना ही कोरोना संक्रमण से बचने के लिए फेस मास्‍क हैं, ना सोशल डिस्‍टेंसिंग का पालन करने के लिए पर्याप्‍त जगह है और ना ही उनके पास कई तरह की सेक्‍स संबंधित बीमारियों से लड़ने के लिए दवाईयां हैं।

इस तरह से सेक्‍स वर्कर्स  कोरोना के साथ-साथ मेडिकल इमरजेंसी की भी दोहरी मार झेल रहे हैं। कुछ संस्‍थाएं ज़रूर सेक्‍स वर्कर्स की मदद कर रही हैं लेकिन यह काफी नहीं है।

यह हमारे लिए बड़े ही शर्म की बात है कि जिस देश में नारी को देवी का दर्ज़ा दिया जाता हो, आज उसी देश की नारी को सेक्‍स वर्कर्स के रूप में देखा जाने लगा है। आज, ना तो समाज इन महिला सेक्‍स वर्कर्स के प्रति दयालु होता दिखाई दे रहा है और ना ही सरकार। ऐसे में इन सेक्‍स वर्कर्स की स्थिति देखते ही बनती है।

वैसे भी यह सब तो होना ही था क्‍योंकि जिस समाज में नारी को बराबर का हक देने में लोगों को शर्म आती हो, जिस समाज में मासूम बच्चियों तक के साथ रेप किया जाता हो, जो समाज बेटियों को एक बोझ की नज़र से देखता हो, उस समजा से हम भला क्या ही उम्मीद कर सकते हैं?

दहेज प्रथा की कुरूति पर चलने वाला तथा नारी को अर्धांगिनी के रूप में देखने वाला हमारा यह समाज जब बर्षों से लेकर आज तक नारी को केवल स्‍वार्थ के तौर पर देखता हो, भला वह इन सेक्‍स वर्कर्स के रूप में काम करने वाली महिलाओ के प्रति कैसे दयालु हो सकता है?


संदर्भ- बीबीसी, द प्रिंट

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