1 दिन की बात है माहौल बहुत अच्छा था हवा अच्छी चल रही थी और शाम का वक्त था माहौल को देखती हुए और मौसम का जायजा लेने के लिए हिज़बा ऊपर गई और वहां जाकर उसने सर्द मौसम का लुफ्त उठाने के लिए बैठने का सोचा अब बैठे ही उसके दिमाग में हजारों बातें आने लगी इन सब बातों में उसे सबसे अहम बातें जो लगी वह थी माहवारी क्यों लोग इसको गंदा समझते हैं क्यों किसी को बताने में शर्म आती है क्यों हमारी महावारी हमारे लिए समस्या है यह सारे क्यों ,चलो बचपन में समझ में आ गया कि किसी को पता ना चले कि हम माहवारी से ग्रसित है पर यह क्यों शादी के बाद नहीं समझ आया आज भी शादी के इतने साल बाद अपनी समस्याओं को सास ससुर को बता ना सकी और जब बताया तो उन्होंने उसे ज्यादा महत्व ना दिया मेरी तकलीफ सिर्फ मेरी ही थी वह खून जो मेरे शरीर से महीना निकलता जिसका दर्द सिर्फ मुझे ही था और जब ज्यादा दर्द होता या ज्यादा खून बहता होता तो ज्यादा बोलने पर महंगा पैड दे दिया जाता और दवा पकड़ा दी जाती पर काम से समझौता कभी नहीं करना था आज भी सोच कर खौफ लगता है की बगल में सोता हुआ पति दिन भर साथ में रहते हुए सास-ससुर सब तो है पर नहीं है तो वह साथ जो उस वक्त चाहिए तकलीफ तो तब होती है जब वह पति हमारे मेरे करीब आता है बच्चे की चाहत रखता है तब शर्म कहां चली जाती है,तो सबको होता है कि बच्चे भगवान वह ऊपर से तो नहीं देते हैं फिर क्यों महावारी की तकलीफ बताने के लिए शर्म हया सब आ जाती है और यह जानते हुए कि कि बच्चा होने के लिए महावारी का होना जरूरी है तभी एक लड़की बच्चा पैदा करने के लिए तैयार होती है इस सारे क्यों का जवाब हम ढूंढ रहे हैं और आप भी ढूंढिए !