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“मेरे गाँव में प्रसव का समय पंडित या झाड़-फूंक करने वाले तय करते हैं”

फोटो साभार- Flickr

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किसी भी स्त्री के लिए उसके जीवन का सबसे खूबसूरत सपना उसका माँ बनना होता है। जिस दिन उसका यह सपना पूर्ण होता है, उस दिन से उसका वात्सल्य प्रेम उसके जीवन में झलकने लगता है। माँ बनना किसी भी महिला के जीवन की सबसे बड़ी नेमत होती है लेकिन उन्हें गर्भधारण से लेकर माँ बनने तक अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

हमारे देश में विशेषकर गाँवों में जागरूकता की कमी और सुविधाओं के अभाव के कारण ये मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं। खान-पान से लेकर प्रसव के उपयुक्त समय तक जो भी जानकारियां महिलाओं को देनी होती हैं, गाँव की कुछ अप्रशिक्षित वरिष्ठ महिलाएं तय करती हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

यद्यपि ये महिलाएं अप्रशिक्षित होती हैं लेकिन ग्रामवासी उन्हें इस कार्य में निपुण मानकर उनकी हर सलाह को मानते हैं। कभी-कभी इसका परिणाम जच्चा-बच्चा में से किसी एक की मृत्यु भी होती है। गर्भवती महिला को खान-पान के नाम पर ये कुछ फल, मेवे आदि खाने की सलाह देती हैं। वे महिला की आंख में देखकर खून की कमी है या नहीं का अनुमान लगाती है।

गाँवों में तो अंधविश्वास के कारण लोग प्रसव का समय गाँव के पंडित जी या फिर झाड़-फूंक करने वालों से पूछकर तय करते हैं। प्रसव काल से पहले ही प्रसव करने के कारण कई महिलाओं को जान से हाथ धोना पड़ता है।

खैर, उत्तर भारत के अधिकांश ग्रामीण इलाकों में झाड़-फूंक वाली बात प्रासंगिक है। हमने अपने गाँव नसीरपुर में इन चीज़ों को करीब से देखा है तो आज लिखने की हिम्मत कर रहा हूं मगर ऐसी आवाज़ें संपूर्ण उत्तर भारत से उठनी चाहिए।

आजकल ये समस्याएं अब पहले की तुलना में कम हो रही हैं। सरकार नें भी इस क्षेत्र में काफी प्रयास किए हैं। गाँवों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खोले गए हैं। आशा बहुएं जैसी सेविकाओं नें भी लोगों को जागरूक करने के प्रयास किए हैं। फिर भी अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

इन आशा बहुओं जैसी सेविकाओं का पारिश्रमिक बहुत कम है। इसे और बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि ये और उत्साह के साथ काम करें।सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर हर समय डॉक्टरों की उपलब्धता भी होनी चाहिए।

इसके अलावा गाँवों में प्रसव कार्य करने वाली अप्रशिक्षित महिलाओं को भी कुछ समय तक प्रशिक्षण देकर एक निश्चित मानदेय पर उन्हें भी रखा जा सकता है।

इससे उन्हें रोज़गार भी मिलेगा और वे अपना काम मन से और निपुणता से करेंगी। गाँवो में समय-समय पर जन जागरूकता फैलाकर लोगों को बताना होगा कि प्रसव एक चिकित्सकीय प्रक्रिया है। इसका झाड़-फूंक या ज्योतिष से कोई सम्बन्ध नहीं है।

आज भी हमारे देश में गरीबी की समस्या बरकरार है। ऐसे परिवारों की गर्भवती महिलाओं के पोषण के लिए कुछ सहायता देनी चाहिए। इससे वे पौष्टिक भोजन ग्रहण कर सकेंगी और उनके शरीर में आवश्यक तत्वों की कमी नहीं हो पाएगी।

अगर हम आज “नैशनल सेफ मदरहुड डे” पर इन बातों का ख्याल रखें और भविष्य में इन चीज़ों पर अमल करें तो निश्चित ही हम माताओं को माँ बनने के सुख की अनुभूति करा पाएंगे।

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