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“समलैंगिक होने का मतलब यह नहीं है कि कोई भी मेरे साथ कुछ भी कर सकता है”

क्या राजपूत होना गुनाह है? अगर राजपूत हो तो क्या आपको ‘मर्द’ होना ही होगा? इससे कम कुछ मंज़ूर नहीं, कुछ भी नहीं। दुनिया के लिए वही सच है, जो उनकी आंख देखती है और उनकी आंखों को दिखाने के लिए मेरा ‘मर्द’ होना बहुत ज़रूरी था।

अन्यथा अंगुली ना केवल मेरे राजपूत होने पर उठती, बल्कि पूरी बिरादरी में मेरे घर का कोई ‘मर्द’ अपनी मूंछों को ताव ना दे पाता।

मैंने तय किया कि कैसे भी करके उदयपुर छोड़ दूं अन्यथा एक ना एक दिन घरवाले मेरी हकीकत जान जाएंगे और मैं उनके लिए एक दाग हो जाऊंगा।

जब मेरे भाई ने कहा कि अब तो मर्द बन जा 

कहां से शुरू करूं समझ नहीं आ रहा है। जब पहली बार पता चला था कि मैं ‘अलग’ हूं, वहां से या फिर वहां से जब स्कूल में एक दोस्त से पहले प्यार का अहसास मिला था वहां से।

जब पहली बार एक कज़न ने मेरा रेप किया या फिर वहां से जब मेरा भाई बोल पड़ा अब तो मर्द बन जा, कब तक ऐसे ही माँ के दूध को लजाता रहेगा।

दुनिया के लिए भले ही दरवाज़े खुल रहे होंगे मगर मेरे लिए जब एक-एक करके सारे दरवाज़े बंद हो रहे थे, तो इन अंधेरी संकरी राहों- गलियारों में अपने वजूद को खोजता मैं, कहां से शुरू करूं? समझ नहीं पा रहा था।

आखिर प्रेम करना क्या अपराध है?

मैं नहीं जानता, क्या गलत है और क्या सही? प्यार करना कभी गलत हो सकता है? ये तो ईश्वर की देन है और ईश्वर की बनाई कोई चीज़ कभी गलत नहीं होती, ये दादी सा बचपन से सिखाती आ रही थी।

कब-किसका- किससे- कहां स्नेहसूत्र जुड़ जाए, कोई पता नहीं है। सब मन के रिश्ते हैं लेकिन इन्हें कौन समझेगा? मैं कहने को लड़का ज़रूर पैदा हुआ था मगर मुझे मेरे मन के अनुरूप किसी लड़के से प्यार करना मना था। वह गुनाह था और गुनाह की राजपूतों में दो ही सज़ा होती है या तो मार डाले जाओगे या हमेशा के लिए घर में कैद कर लिए जाओगे।

स्कूल के दिनों में मुझे जब प्रेम हुआ तब मैं नौंवी कक्षा में था

वो स्कूल के दिन थे। एक दोस्त से मुलाकात और प्यार क्या हुआ, पूरे स्कूल में मेरे वजूद पर कालिख मल दी गई। उस दौरान मैं नौंवी कक्षा में था। स्कूल के बाथरूम में एक लड़के के साथ पाए जाने की सज़ा थी कि मुझे फुटबॉल टीम से निकाल दिया गया।

कारण जानने जब कोच के पास गया तो वे जिस तरह की हंसी हंसे, वह कभी नहीं भूल सकता हूं। घर पर क्या बोलूं? कैसे बोलूं कि मुझे अब यह स्कूल क्यों बदलना है? 

मतलब ये हुआ कि अब 12वीं तक मुझे इस जलालत को सहना पड़ेगा। खूब रोता था घर आकर मगर किसी से कह नहीं पाता था। मेरा कोई दोस्त नहीं था, कोई मेरे पास नहीं आना चाहता था। ना लड़के और ना ही लडकियां। कलेंडर और साल यूं ही बदल रहे थे मगर स्कूल का बाथरूम वाला किस्सा जैसे मेरे ललाट पर लिख दिया गया था।

मौसी के लड़के ने ज़बरदस्ती की

वो बारहवीं का साल था। मेरी मौसी का लड़का मुझसे मिलने आया। वो दूसरे स्कूल में पढता था मगर हम दोनों विज्ञान के ही छात्र थे। वह बोला कि साथ रहकर पढेंगे तो दोनों एक-दूसरे की मदद कर पाएंगे और इससे शायद बोर्ड के रिज़ल्ट अच्छे आएं।

मैं तैयार हो गया। भाई जैसा था तो कोई खौफ नहीं था। पहली ही रात उसने मुझसे ज़बरदस्ती करनी चाही। मैंने मना किया तो बोला, अपने स्कूल के लड़कों के साथ सो सकता है तो मेरे साथ सोने में क्या दिक्कत है। मैं भौंचक्का था। मैंने दूर हटना चाहा, उसने मेरे मुंह को बंद कर दिया।

समलैंगिक होने का यह अर्थ नहीं कि कोई भी कभी भी मेरे साथ कुछ भी कर सकता है

उस रात सिर्फ मेरे जिस्म को नहीं नोचा गया, बल्कि आत्मा भी लहुलुहान की गई थी। समलैंगिक होने का यह मतलब नहीं कि कोई भी कभी भी मेरे साथ कुछ भी कर सकता है। क्या मेरी चॉइस या मेरी रज़ामंदी की कोई अहमियत नहीं?

उस बलात्कार के बाद हिम्मत नहीं थी कि कोई शिकायत भी कर सकूं। उल्टे मुझे धमकी दी गई थी कि अगर मुंह खोला तो सारे पुराने किस्से घर वालों तक पहुंच जाएंगे।

उसके बाद वह चचेरा भाई हर रात मेरी आत्मा को नोचता रहा। हर बार और ज़्यादा बर्बर तरीके से उसे अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए मेरा ही जिस्म मिला था।

जब उदयपुर छोड़ मैं मुंबई की ओर निकल पड़ा

परीक्षाओं के बाद घर पर अनुरोध किया कि इंजीनियरिंग के लिए किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला करवा दिया जाए। मैं बस उदयपुर से भाग जाना चाहता था। मेरा दाखिला मुंबई के एक नामी कॉलेज में करवा दिया गया।

दिल में खुद को कसम दी कि अब वापस कभी लौटकर नहीं आऊंगा। वो स्कूल के दिन, वो घर पर परीक्षाओं की रातें, मैं इन्हें कभी याद नहीं रखना चाहता था।

 मेरी मुलाकात मेघालय के रिन्गजो से हुई

मुंबई का लाख-लाख शुक्रिया, जिसने मुझे ठीक वैसे ही स्वीकार किया जैसा मैं था। दूसरे ही साल मेरी यौनिकता (सेक्सुअलिटी) के बारे में लोग जान चुके थे। मैं अक्सर मेरे बॉयफ्रेंड के साथ घूमता रहता था तो लोगों ने सहज अंदाज़ा लगा लिया था।

कभी भी किसी ने ऑब्जेक्शन नहीं किया। कॉलेज के दरम्यान मेघालय के रिन्गजो से मुलाकात हुई, जो कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला। मैं प्यार के मायने समझ पा रहा था। उसका स्पर्श बहुत अच्छा लगता था। रिन्गजो की सांसें भी मेरे अंतर्मन को छूती थी और उन घावों को भरने का काम करती थी, जो अतीत ने दिए थे।

रिन्गजो की कहानी 

रिन्गजो की कहानी मुझसे थोड़ी थोड़ी अलग थी। उसे उसकी बहन का बहुत अच्छा साथ मिला था। वह अक्सर बताया करता था कि उसकी जनजाति में पितृसत्ता नहीं होती। मतलब यह कि वहां वही होता है, जो औरतें चाहती हैं। इस सूरत में बहन का उसे समझना एक बड़ी बात थी।

हां, उसके साथ भी बचपन में ट्यूशन टीचर ने ज़्यादती की थी। उस समय उसने घबराने की बजाय अपनी बहन को बता दिया था जिसका नतीजा यह हुआ कि उस ट्यूशन टीचर को उसका गाँव छोड़ना पड़ा था। शुरुआती विरोध के बाद रिन्गजो को भी परिवार में अपना लिया गया।

नॉर्थ ईस्ट में परम्पराएं उत्तर भारत से कितनी समृद्ध हैं

मैं अक्सर सोचा करता हूं कि आम हिन्दुस्तानी जिस नॉर्थ ईस्ट के सभी आठ (सिक्किम सहित) राज्यों के नाम तक नहीं जानते, वहां की परम्पराएं उत्तर भारत से कितनी समृद्ध हैं।

जिन्हें हम आदिवासी कहते हैं, वे हम सभ्यों से कितने अच्छे हैं। वहां पितृसत्ता तो बिल्कुल भी नहीं है। मतलब मूंछ का ताव खत्म यानी कि  अकड़ ही खत्म। वाह, सोचकर ही रोमांचित हो जाता हूं।

अचानक भाई का मुंबई आ जाना 

रिन्गजो के साथ दिन खुशनुमा बीत रहे थे कि एक दिन अचानक भाई मुंबई आ गया। वह मुझे सरप्राइज़ देना चाहता था मगर उसे क्या पता था कि असल सरप्राइज़ उसे मिलने वाला है। सुबह सुबह अचानक से मेरे रूम पर पहुंचा और ताला पाकर मुझे फोन करने लगा।

नींद में होने के कारण जब मैंने फोन नहीं उठाया तो हॉस्टल के दूसरे लड़कों से मेरे बारे में पूछताछ हुई। पड़ोस में रहने वाले एक लड़के ने ऐसे ही मज़ाक में बोल दिया कि और कहां होगा, वहीं होगा उस चिंकी के रूम पर।

भाई खुश हुआ कि चिंकी मेरी कोई गर्लफ्रेंड है परन्तु जब पता चला कि उस चिंकी का कमरा भी उसी हॉस्टल में है, तो थोडा असहज होते हुए उसने रिन्गजो का कमरा खटखटा ही दिया।

उस सुबह भाई को पता चल गया कि मेरी रूचि लड़कों में है

उस सुबह भाई को पता चल गया कि मेरी रूचि लड़कों में है। जितनी गालियां वो एक सांस में मुझे दे सकता था, उसने दी। हॉस्टल में अच्छा खासा तमाशा करने के बाद वह उसी समय वहां से चला गया।

मेरा मन किसी अनहोनी के डर से कांप रहा था। क्या उसने घर जाकर सबको बता दिया होगा? क्या मुझे अपनी पढ़ाई जारी रखने की इजाज़त मिलेगी? क्या मैं अब और रिन्गजो के साथ रह पाऊंगा? क्या वे रिन्गजो के साथ कुछ गलत तो नहीं कर देंगे? तमाम आशंकाओं से घिरा मैं बुरी तरह घबरा गया था। रिन्गजो मुझे सांत्वना दे रहा था कि जो होगा देखा जाएगा और हर स्थिति में वो मेरे साथ होगा। 

एक रोज़ पापा का फोन आया

डेढ़-दो हफ्ते बाद पापा का फोन आया कि उन्होंने मेरे लिए एक लड़की पसंद कर ली है। पापा के सामने हां या ना करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। बचपन से ही हमें इस तरह बड़ा किया गया था कि पापा या बड़े भाई के सामने नज़रें नीची करके खड़े रहो और उनके हर एक शब्द को आदेश मानकर स्वीकार करो। हिम्मत करके मैंने कहा कि अभी तो मेरा ग्रेजुएशन ही पूरा नहीं हुआ है।

वे कुछ नहीं बोले और फोन काट दिया गया। मेरे पास कोई चारा नहीं था। रिन्गजो भी कुछ समझ नहीं पा रहा था और कोई सपोर्ट सिस्टम तो था नहीं कि जिससे बात की जा सके। भागने का सवाल नहीं था क्योकि अभी पढ़ाई का पूरा एक साल शेष था। एक तरफ कुंआ और एक तरफ खाई वाली बात थी। 

मैं अंतर्द्वन्द में था कि क्या माँ को सब बता देना उचित होगा?

अंततः तय किया कि मुझे घर पर किसी एक को मेरी यौनिकता के बारे में बता देना चाहिए मगर किसे? यह यक्ष प्रश्न सामने खडा था। मेरी केवल माँ से बनती थी और माँ का दर्ज़ा मेरे घर में घूंघट में चुपचाप घर के काम करने तक ही सीमित था।

पापा के सामने मैंने कभी उनको सिर ऊंचा करके बोलते तक नहीं देखा था। क्या उनको बोलना ठीक रहेगा? ये भी संभव है कि सबको पता चल गया हो। क्या करूं? उस रात बिलकुल नींद नहीं आई।

अंततः मेरी शादी कर दी गई

मेरी शादी कर दी गई। आप सोच रहे होंगे, मैं तो बहुत डरपोक निकला। रिन्गजो को धोखा दे दिया। अपने आप को धोखा दे दिया। शायद उस लड़की के साथ भी गलत किया, जिसे शायद मैं अपना शत प्रतिशत कभी दे भी नहीं पाऊंगा। तो जवाब है, हां उन हालातों में मैं डरपोक निकला। बहुत ही डरपोक मगर शायद डरपोक होने से ज़्यादा मैं खुदगर्ज़ था।

शादी के बाद वापस मुंबई लौट आया। गौना होने में अभी वक्त था। वह भी कुछ दिन उदयपुर बिताकर अपने पीहर लौट गई। उसकी पढाई भी चल रही थी। रिन्गजो अब भी मेरे साथ था मगर रिश्ते की गर्माहट ख़त्म हो चुकी थी। उसी ने मुझे शादी कर लेने की राय दी थी। उसके अनुसार तत्काल समय में इससे बेहतर कुछ नहीं था।

मास्टर्स की पढ़ाई के लिए मेरा दाखिला हेलसिंकी में हो गया

इंजीनियरिंग पूरी हुई और मैंने मास्टर्स के लिए देश के बाहर अप्लाई करना शुरू कर दिया। घरवाले, यहां तक कि बीवी को भी इस बारे में नहीं बताया। किस्मत अच्छी रही कि स्कॉलरशिप भी मिल गई और फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी के एक कॉलेज में दाखिला भी मिल गया।

घर वालों को पता चला तो उन्होंने मना कर दिया। वे चाहते थे कि अगर बाहर जाना ही चाहता हूं तो बीवी को भी साथ ले जाऊं। अब उन्हें कैसे समझाता कि मैं यहां से भाग जाना चाहता था। ठीक वैसे ही जैसे उदयपुर से भागकर मुंबई आया था। फिर से खुद से, हर एक रिश्ते से बस भाग जाना चाहता था।

सारे लोग पीछे छूटते जा रहे थे रिन्गजो भी, बीवी भी, मम्मी-पापा भी। मुंबई एअरपोर्ट पर खड़े खड़े खुद को कसम दे रहा था कि बस अब कभी लौटकर इंडिया नहीं आऊंगा।

“अगर कोई अपने सुख को ज़्यादा पसंद करता है तो इसमें उसे शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए।”- अल्बैर कामू के उपन्यास “प्लेग” की ये पंक्तियां मेरे सामने आन खड़ी हुई थी।

मेरी शादी खत्म हो चुकी थी

मेरी शादी खत्म हो चुकी थी। वे लोग ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकते थे और उन्होंने अपनी लड़की की शादी किसी और के साथ करने को मजबूर हो गए थे। पापा ने धमकी दी थी कि अगर मैं वापस उदयपुर आया तो वे मुझे तलवार से काट देंगे।

हालांकि उन्हें अभी भी मेरी यौनिकता के बारे में पता था या नहीं, यह संदेह ही था। भाई ज़रूर एक बार फोन पर बोल चुका था कि अब तो मर्द बन जा, कब तक माँ के दूध को लजाता रहेगा।

माँ कभी-कभी हाल चाल पूछ लेती थी। वो इस बात से खुश थी कि मुझे अच्छी नौकरी मिल गई है और मैं अब बड़ा हो गया हूं। वो अक्सर फोन पर रोती रहती थी। मैं उन्हें कभी चुप नहीं करवा पाया। मैं जानता हूं कि मैंने माँ के दूध को नहीं लजाया। मैं अब भी उनका प्यारा बेटा हूं, सबसे छोटा-सबसे लाड़ला।

समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट के दिए गए निर्णय को लेकर मैं बेहद रोमांचित हो उठा था

आज यूरोप के अलग-अलग देशों में रहते हुए मुझे 12 साल हो गए हैं। मुझे इंडिया गए भी इतने ही साल हो गए हैं। पिछले साल भारत में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर रोमांचित हुआ।

मुझे पता है कि राजपूत या किसी और समाज में इस फैसले से बहुत कुछ बदलने वाल नहीं है मगर हां, हमारे वजूद को देश की सबसे बड़ी संस्था ने स्वीकार किया, यह एक बड़ी जीत थी।

क्या भारत में राजपूत का समलैंगिक होना गुनाह है?

सफर बहुत लम्बा है और एक मील का पत्थर इंडिया पार कर चुका है। खुशी इस बात की भी है कि अब अगर कोई इन्सान किसी और समान सेक्स वाले के साथ कुछ गलत करता है, तो कम-से-कम कानून ज़रूर उसका साथ देगा।

उसे घबराने की ज़रूरत नहीं होगी। वो स्कूली एग्ज़ाम के साथ ज़िन्दगी के कटु एग्जाम नहीं देगा मगर सवाल अभी वही है, “क्या इंडिया में राजपूत का समलैंगिक होना गुनाह है?” या “किसी का भी किसी को पसंद करना गुनाह है?”


 नोट: यह मेरे एक घनिष्ठ मित्र की कहानी है, जो उससे हुई बातचीत पर आधारित है।

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