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आखिर मुंबई में लॉकडाउन तोड़ प्रवासी मज़दूरों की भीड़ कैसे लगी?

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

पूरी दुनिया में कोरोना के काले बादल छाए हुए हैं। दुनियाभर की सरकारें इस संकट से निपटने के लिए प्रयास कर रही हैं। वैज्ञानिक भी इस बीमारी पर दवा की खोज कर रहे हैं। जब तक कोई ठोस दवा या वैक्सीन नहीं मिल जाती तब तक सोशल डिस्टेंस (सामाजिक दूरी) बनाए रखना सबसे कारगर है।

बांद्रा में सामाजिक दूरी कहां थी?

बांद्रा मज़दूरों की भीड़। फोटो साभार- सोशल मीडिया

बांद्रा मुंबई का एक इलाका है जहां देश के कई नामचीन लोग भी रहते हैं। कल बांद्रा रेलवे स्टेशन पर काफी लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई जहां किसी भी तरह से सामाजिक दूरी बनाए रखने की कोशिश नहीं हुई। रेलवे स्टेशन पर इकट्ठा हुए सभी लोग दिहाड़ी मज़दूर थे मगर उन्हें क्या पता था कि लॉकडाउन बढ़ाने से पहले हमारे प्रधानसेवक जी उनकी रोज़ी-रोटी के बारे में सोचेंगे ही नहीं।

बताया जा रहा है कि ज़्यादातर मज़दूर बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से ताल्लुक रखते हैं। सभी मज़दूर रेलवे स्टेशन पर इसलिए आए थे ताकि अपने गाँव जा सकें। उन्होंने सोचा था कि आज लॉकडाउन खत्म हो जाएगा।

चर्चा यह भी चल रही थी कि मुंबई में उत्तर भारत के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई जाएगी मगर इन्हीं अफवाहों के बीच भीड़ ज़्यादा हो गई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे द्वारा पहले ही लॉगडाउन बढ़ाने की घोषणा की गई है। कल सुबह प्रधानमंत्री ने चौथी बार देश को संबोधित किया तब उन्होंने भी 3 मई तक लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा कर डाली।

मज़दूर सड़कों पर क्यों आ रहे हैं?

आनंद विहार के रास्ते घऱ जाते प्रवासी मजदूर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

कुछ दिन पहले गुजरात के सूरत से खबर आई कि दूसरे राज्यों से आए मज़दूर आक्रामक होकर सड़कों पर उतर आए हैं। सूरत के बाद मुंबई में भी यही नज़ारा कल देखने को मिला।

कुछ सप्ताह पहले दिल्ली में आनंद विहार बस अड्डे पर मज़दूरों की भीड़ को पूरे देश ने देखा था। सूरत से लेकर मुंबई तक सभी मज़दूर अपने गाँव जाना चाहते हैं।

वे जिस शहर में अपने घर से दूर रहते हुए काम करते थे, वहां पर काम पूरी तरह से बंद है। ये बहुसंख्यक देहाती मज़दूर हर दिन थोड़ा बहुत पैसा कमा लेते थे जिससे किसी तरह उनका काम चल जाता था। हर तरफ काम बंद होने से कमाई नहीं है।

जो कुछ थोड़ा बहुत बचा हुआ था वह भी इन 21-22 दिनों में खत्म हो गया। सरकार की तरफ से इन लोगों के लिए खाने-पीने की कोई पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा अलग-अलग ठिकानों पर राज्य भर में गरीब लोगों के लिए मदद केंद्र खोले गए हैं लेकिन ज़रूरत के हिसाब से वे काफी कम हैं।

मोदी जी, समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए आपके पास कोई योजना है क्या?

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आप खुद को देश का प्रधान सेवक बताते हैं। आप स्वयं मन की बात कार्यक्रम में कहते हैं कि गरीब मज़दूर लोगों का जो हाल हुआ उससे मैं दुखी हूं, मुझे माफ करें। उस अंतिम व्यक्ति के लिए क्या आपके पास कोई योजना है?

आपने चौथी बार देश के नागरिकों को कोरोना संकट के बाद संबोधित किया। अब तक के सभी संबोधनों को देखें तो उनमें गरीबों के लिए बातों के अलावा क्या था? ऐसे में तो यह कहना गलत नहीं होगा कि देश के मज़दूरों को अब आपसे उम्मीद ही नहीं रखनी चाहिए।

संयोग देखिए कल अंबेडकर जयंती के रोज़ देश की आर्थिक राजधानी का यह हाल था। अपनी पूरी ज़िन्दगी वंचित तबकों और महिलाओं के लिए काम करने वाले बाबा साहेब अंबेडकर अगर आज ज़िंदा होते तो वह आपकी बातों पर क्या कहते? उनके मन में यह पीड़ा ज़रूर रहती कि देश के आम लोग सरकार द्वारा संकट में धकेल दिए जा रहे हैं।

लॉकडाउन के बाद ज़रूरतमंद लोगों के लिए जाने आने की व्यवस्था की जानी चाहिए थी, जिसमें आप पूरी तरह से फेल हो गए। आज लोग सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर हैं। उन लोगों की गिनती भी नहीं की जा सकती जो सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर पहुंचे हैं।

ज़्यादातर मज़दूरों का माइग्रेशन बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों से ही क्यों होता है? केंद्र सरकार के साथ-साथ विभिन्न राज्य सरकारों को यह समझने की ज़रूरत है कि कोई भी योजना बनाते और उसको लागू करते वक्त अंतिम व्यक्ति का ध्यान रखा जाना चाहिए।

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