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“जहानाबाद अस्पताल की घटना बिहार सरकार के माथे पर कलंक है”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

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आज एक रोती-बिलखती माँ के हाथ में फूल से उसके बेटे का शव देख। आज बिहार शर्मसार हो गया है, उस माँ और पिता के हालातों को देखकर आज आपको गुस्सा व अफसोस ज़रूर आ रहा होगा मगर मुझे नहीं! कई लोग मुझे कठोर दिल भी कह सकते हैं।

बिहार के जहानाबाद के सदर अस्पताल में उस समय लोगों का कलेजा फट गया जब एक तीन वर्षीय मासूम की समय पर उपचार ना होने पर मौत हो गई।

बच्चे की तबियत ज़्यादा खराब हो गई और उसे अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस नहीं मिल सका। हद तो तब हो गई जब स्थानीय अधिकारियों ने शव को गाँव तक ले जाने के लिए भी एम्बुलेंस मुहैया नहीं कराया।

मृत बच्चे के पिता गिरजेश कुमार ने जहानाबाद सदर अस्पताल कर्मियों पर आरोप लगाया है कि यहां इलाज के उपरांत रेफर कर दिए जाने के बावजूद उन्हें एम्बुलेंस मुहैया नहीं करवाया गया।

बच्चे को एम्बुलेंस से पटना तक ले जाना था

गोद में बच्चे को लिए माँ। फोटो साभार- Flickr

मृत बच्चे रिशु के पिता गिरजेश कुमार ने बताया कि वह अरवल ज़िले के कुर्था थाना क्षेत्र के शाहपुर गाँव के रहने वाले हैं। पिछले कई दिनों से उनके तीन वर्षीय बेटे को खांसी और बुखार की शिकायत थी। उसका स्थानीय तौर पर इलाज कराया जा रहा था मगर आज तबियत ज़्यादा खराब होने पर उन्होंने उसे कुर्था प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दिखाया जहां से उसे सदर अस्पताल अरवल रेफर कर दिया गया।

एम्बुलेंस ना मिलने के कारण बच्चे को उसके परिजन एक टेम्पो से जहानाबाद सदर अस्पताल लेकर पहुंचे। जहानाबाद में डॉक्टरों ने बच्चे की गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे पीएमसीएच रेफर कर दिया।

गिरजेश कुमार ने बताया कि रेफर करने के बाद लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें एम्बुलेंस मुहैया नहीं करवाई गई। इसकी वजह से उनके बच्चे की जान चली गई।

उन्होंने कहा कि लॉकडाउन होने की वजह से एक तो कहीं भाड़े की गाड़ी नहीं मिल रही है और ऊपर से अस्पताल से एम्बुलेंस ना मिलने की वजह से उनका बच्चा व्यवस्था की भेंट चढ़ गया।

प्रशासन ने व्यवस्था की नाकामी छुपाने के लिए क्या किया?

सदर अस्पताल में मृत बच्चे के साथ बैठे उसके परिजनों को स्थानीय लोगों की मदद से शव के साथ उसके गाँव अरवल ज़िले के शाहपुर भेज दिया गया है।

आनन-फानन में जहानाबाद के डीएम ने सरकार की नाकामी को छुपाते हुए हेल्थ मैनेजर, 2 डॉक्टर और 4 नर्स को सस्पेंड कर दिया जो समाधान तो कतई नहीं है। मगर सच्चाई तो यह है कि यह घटना बिहार सरकार के माथे पर एक कलंक ही है।

ऐसी तस्वीरें मैंने बिहार में कई दफा देखी हैं

आपने यह पहली तस्वीर देखी है इसलिए आज आप का दिल उदास है और आप सिस्टम को कोस रहे होंगे मगर मैं राजधानी में रहता हूं। इसलिए मुझे आदत है इन तस्वीरों को देखने की।

मैंने वो तस्वीर भी देखी है जहां नवजात शिशु का शव कुत्ते अपना भोजन समझकर ले जाते हैं। मैंने वह तस्वीर भी देखी है जहां एम्बुलेंस पर रखे शव को कुत्ते नोच रहे होते हैं।

मैंने उन तस्वीर को भी देखा है जहां बाप अपने बेटों के शव को कंधे पर रखकर गाँव की तरफ चल देता है। मैंने वो तस्वीर भी देखी है जहां गर्भवती महिला ट्रॉली ना मिलने के कारण चक्कर के कारण गिर जाती है।

अगर आप PMCH गेट के अंदर रात के 10 घंटे बिता लीजिएगा तो मेरी तरह कठोर दिल बन जाइएगा। रात के समय बिहार के सबसे बड़े अस्पताल में हर 10 मिनट पर एक मरीज़ आता है। 5 रुपये का टोकन लेकर अंदर जाता है, जहां बेड ना होने की बात कही जाती है। अगर मरीज़ थोड़ा पैसा वाला होता है, तो तुरंत दूसरे अस्पताल की ओर लौट जाता है।

अगर मरीज़ गरीब होता है तो गिड़गिड़ाने लगता है फिर उससे अंगूठा लगवाते हुए इस बात की सहमति ली जाती है कि अगर मरीज़ को कुछ हुआ तो अस्पताल प्रशासन ज़िम्मेदार नहीं है। इसके बाद ज़मीन पर एक जगह देखकर मरीज़ को सुला दिया जाता है।

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