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“भाईयो और बहनों नमस्कार, मैं इरफान आज आपके साथ हूं भी और नहीं भी”

Irrfan Khan dies at 53

Irrfan Khan dies at 53

53 साल के साहबज़ादे इरफान अली खान ने अपनी माँ की मौत के 5 दिन बाद यह कहते हुए अलविदा कह दिया कि उनकी अम्मा उनको लेने के लिए आ गईं।

2018 से कैंसर जैसी भयानक और दर्दनाक लड़ाई से लड़ रहे इरफान ने मुंबई के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली। इरफान इस तरह अचानक हमें छोड़कर चले जाएंगे, इसकी उम्मीद हमें नहीं थी।

पीकू में उन्होंने कहा था, “डेथ और शिट ये दो चीज़े किसी को भी कहीं भी कभी भी आ सकती हैं।” इरफान बड़े ही संजीदा किस्म के इंसान थे। उनकी एक्टिंग में उनके जीवन जीने के तरीके को महसूस किया जा सकता है।

उनकी मौत के बाद क्या आम इंसान और क्या सेलिब्रिटीज़, हर कोई गमगीन है। शाहरुख खान ट्वीट करते हैं, “पैमाना कहे है कोई, मैखाना कहे है दुनिया तेरी आँखों को भी, क्या क्या ना कहे है।”

फिल्मों के साथ-साथ उनके जीवन जीने के सलीके ने हम सबको बहुत कुछ सिखाया है और उनकी यादें आगे भी हमें खुद को बेहतर बनाने में सहयोग करती रहेंगी।

मुझे मेरे अंदर का एक हिस्सा यह कहता रहता है कि मेरी सोच मीना कुमारी, राजेश खन्ना, धोनी, रेखा, इरफान खान और नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का मिश्रण है और इस नाते मैं अपने अंदर एक खालीपन महसूस कर रहा हूं।

ऐसा नहीं है कि इरफान को केवल एक बेहतर अभिनेता के रूप में याद किया जाएगा। उनको उनके संवेदनशील विचारों के लिए भी याद किया जाएगा।

2016 में इरफान खान ने मज़बूती से जानवरों पर इंसानों द्वारा किए जाने वाले हिंसा और अत्याचार पर अपनी बात रखी और हमेशा सिस्टम को बदलने के लिए आगे आते रहे।

वैसे तो उनकी फिल्मों की चर्चा हर जगह है मगर कुछ यादगार किरदार हैं, जो इरफान को सबसे अलग बनाती हैं। उन्हीं को आपके साथ साझा कर रहा हूं।

हासिल

साल 2003 में आई फिल्म हासिल यूनिवर्सिटी में होने वाली राजनीति और हिंसा को परदे पर लाती है। आज भी लोग इस फिल्म को इरफान खान के नेगेटिव रोल की वजह से जानते हैं।

इस फिल्म के लिए उनको बेस्ट एक्टर इन नेगेटिव रोल का फिल्मफेर अवॉर्ड भी मिला है।

मक़बूल

फिल्म मक़बूल में इरफान खान का नाम ही मक़बूल था और उस वक्त भले ही फिल्म अच्छा बिज़नेस नहीं कर पाई हो मगर इरफान की ज़बरजस्त परफॉरमेंस ने सबका दिल जित लिया था।

नसीरुद्दीन शाह और ओम पूरी जैसे कलाकारों के साथ इरफान खान ने अपनी अलग जगह बनाईष। प्रेमिका और अंडरवर्ल्ड डॉन के बीच फंसे मक़बूल की कहानी सब कुछ पाने के बाद भी महसूस होने वाले अधूरेपन की कहानी थी।

लाइफ इन अ मेट्रो

शहर में रह रहे लोगों की ज़िन्दगी को दर्शाती फिल्म अलग-अलग युवाओं की कहानी है। श्रुति शादी करने के लिए अपने हमसफर की तलाश में होती है फिर वो मोंटी से मिलती है।

लेकिन श्रुति को मोंटी पसंद नहीं आते हैं। बावजूद इसके अलग होते हुए भी कैसे एक-दूसरे में समानता ढूढ़ते हुए जीवन जीते हैं, यही है लाइफ इन अ मेट्रो की पूरी कहानी।

हिंदी मीडियम

इस फिल्म में राज बत्रा (इरफान खान) मध्यम वर्ग के पिता के रूप में नज़र आए हैं, जो बता रहे हैं कि अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है।

क्लाइमेक्स में इरफान खान के डायलॉग ने देश के साथ-साथ हर अनपढ़ पिता के दर्द को बयां किया है।

करीब-करीब सिंगल

इरफान खान जैसे रोमांटिक व्यक्ति के लिए करीब-करीब सिंगल के रूप में पूरी तरह की रोमांटिक फिल्म मिली। दोनों साथ ना होते हुए भी कैसे सफर में निकल जाते हैं और कैसे इश्क का अनुभव होता है, यही बताती है यह फिल्म।

इस फिल्म के साथ इरफान ने फिल्म जगत को बता दिया था कि वो रोमांटिक हीरो का अभिनय भी कर सकते हैं।

मदारी

अपने बेटे को स्कूल जाते वक्त पुल टूटने के कारण खोने के बाद होम मिनिस्टर के बेटे को किडनैप करने की कहानी है मदारी। लेकिन कहानी के अंत में किडनैप किए हुए बच्चे के साथ निर्मल यानी इरफान का गला मिलना रुला देती है।

ऐसा लगता है जैसे मदारी में इरफान खान ने अपना सब कुछ लगा दिया था।


संदर्भ- BombayTimes

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