पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सीता जी रावण की कैद से मुक्त होकर वापस आयोध्या आईं, तो प्रजा के बीच उनकी पवित्रता को लेकर अनेक सवाल उठने लगे। इसके कारण उन्हें अपने पवित्र होने का प्रमाण अग्नि परीक्षा देकर करना पड़ा।
पवित्रता की अग्नि परीक्षा आदिकाल से आधुनिक काल तक महिलाएं देती आ रही हैं लेकिन परीक्षा के तौर-तरीकों में बदलाव हो गया है।
इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर महिलाओं के संदर्भ में पवित्रता का अर्थ क्या है? दूसरा सवाल यह भी है कि महिलाओं की पवित्रता का मालिक और रक्षक पुरुष ही क्यों है?
महिलाओं की पवित्रता को यौनिकता से क्यों जोड़ा जाता है?
महिलाओं के संदर्भ में पवित्रता को महिलाओं की यौनिकता से जोड़कर क्यों देखा जाता है? पितृसत्तात्मक सोच के अनुसार ऐसा माना जाता है कि किसी भी महिला की यौनिकता पर सिर्फ और सिर्फ उसके पति का ही हक है।
बचपन से ही महिलाओं का पालन-पोषण भी इसी सोच के साथ किया जाता है। यही कारण है कि महिलाओं की यौनिकता को पवित्रता से जोड़कर देखा जाता है।
यह इसलिए भी किया जाता है ताकि वे पितृसत्ता के बनाए गए दायरों से बाहर ना जा पाएं। इसलिए अच्छी औरत और पवित्रता को आड़ बनाकर महिलाओं को पितृसत्ता के जाल में जकड़ दिया जाता है।
पुरुषों के लिए पवित्रता के मानक अलग क्यों?
यदि यौनिकता को पुरुषों से जोड़कर देखें तो पुरुषों में ऐसा कोई बंधन नज़र नहीं आता है, बल्कि यौन सम्बन्धों में पुरुष जितना सक्रिय और अनुभवी होगा उतना ही पक्का मर्द माना जाता है।
हालांकि समलैंगिक पुरुषों के संदर्भ में पितृसत्ता के दायरे कड़े निर्देशों के साथ नज़र आते हैं। यही कारण है कि समलैगिंक पुरुषों को घर और बाहर हिंसा का सामना करना पड़ता है।
महिलाओं के लिए वर्जिनिटी साबित करना क्यों ज़रूरी है?
कंजरभाट समुदाय के रीति-रिवाज़ों में वर्जिनिटी टेस्ट की एक परम्परा है जिसमें पूरी पंचायत के सामने सफेद चादर पर खून के धब्बे दिखाकर यह साबित करना पड़ता है कि लड़की वर्जिन थी।
शादी के बाद दूल्हे से पंचायत यह पूछता है, “तुम्हें जो माल दिया गया वो कैसे था?” अगर लड़की वर्जिन थी तो दूल्हा तीन बार ‘खरा’ बोलता है। अगर लड़की वर्जिन नहीं थी तो लड़का तीन बार ‘खोटा’ बोलता है।
लड़की के वर्जिन ना होने पर लड़की के परिवार व रिश्तेदार उसके साथ हिंसा करते है। कंजरभाट समुदाय को समुदाय द्वारा बनाए गए कायदे-कानून को मानना ही पड़ता है।
अगर कोई व्यक्ति इसका पालन नहीं करता है, तो समुदाय द्वारा उनका बहिष्कार कर दिया जाता है। यहां पितृसत्तात्मक सोच के चलते महिलाओं की यौनिकता पर नियंत्रण रखा जाता है।
यह सिर्फ किसी एक समुदाय की बात नहीं है, बल्कि लगभग सभी समुदाय में अलग-अलग तरीकों से यौनिकता पर नियंत्रण रखा जाता है।
बाज़ार भी है इस घटिया खेल में शामिल
सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि कैसे मुनाफा कमाने वाला बाज़ार इस तरह के नियंत्रण का इस्तेमाल अपने बिज़नेस को चमकाने के लिए करता है।
इसका एक उदाहरण ‘18 अगेन’ प्रोडक्ट के नाम से एक विज्ञापन है। इस विज्ञापन में दिखाया गया है कि 18 अगेन प्रोडक्ट को इस्तेमाल करने से महिअलाएं वर्जिन जैसा महसूस करती हैं। यह प्रोडक्ट इस बात को सिद्ध करता है कि कैसे इस तरह की परम्पराओं का बाज़ारीकरण होता जा रहा है ।
गौरतलब है कि सिर्फ 18 अगेन ही एक मात्र उदाहरण नही हैं। अगर गूगल सर्च इंजन में देखे तो ऐसे अनेकों उदाहरण सामने आ जाएंगे।
वैज्ञानिकता पर हावी है पितृसत्तात्मक सोच
आज विज्ञान के युग में भी पितृसत्तात्मक सोच इतनी हावी है कि वर्जिनिटी को फिर से सर्जरी द्वारा बनाया जा सकता है। ऐसी बहुत-सी लड़कियां हैं जो किसी-ना-किसी कारण से वर्जिन नहीं हैं। वो कारण खेल-कूद, अन्य कोई शारीरिक श्रम या सेक्सुअल सक्रियता भी हो सकता है।
सामाजिक दवाब के चलते बहुत सारी लड़कियां हाइमेनोप्लास्टी या हाइमन सर्जरी करवाती हैं। हाइमेनोप्लास्टी या हाइमन सर्जरी एक ऐसी सर्जरी है, जिसमें टूटी हुई झील्ली को फिर से बना दिया जाता है।
प्राइवेट हॉस्पिटल इस सर्जरी के लिए लगभग 40 हज़ार से 60 हज़ार रुपये तक लेते हैं। इस सर्जरी के लिए ज़्यादातर वे लड़कियां जाती हैं जिनकी जल्द ही शादी होने वाली होती है।
गौरतलब है कि बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों से भी लड़कियां इस सर्जरी के लिए जा रही हैं। पितृसत्तात्मक दबाव के चलते ना जाने कितनी लड़कियों को इस तरह की सर्जरी से गुज़रना पड़ता है, जो उनके स्वास्थ्य पर भी एक बुरा असर डालती है।
महिलाओं को दायरे में रहने को मजबूर करती है पितृसत्ता
कंजरभाट समुदाय के कायदे-कानून से लेकर हाइमेनोप्लास्टी तक हर जगह पितृसत्ता दंड का डर दिखाकर समाज की लड़कियों और महिलाओं को अपने दायरों में रहने के लिए मजबूर करता आ रहा है।
इस डर का फायदा उठाकर बाज़ार मुनाफा कमा रहा है। ऐसे में सतत विकास के सपने को 2030 तक पूरा करना एक कल्पना मात्र ही है। जब तक पितृसत्ता का खौफ कायम रहेगा तब तक सही मायनों में विकास संभव नहीं है।