Site icon Youth Ki Awaaz

#wincorona को-रोना के बाद जल-रोना

आज लॉकडाउन का 12वां दिन है। वैसे तो प्रतिवर्ष गर्मियों के 40 दिनों के अघोषित लॉकडाउन का हम सभी बेसब्री से इंतजार करते हैं लेकिन जब 21 दिनों के लिए निर्देशित किया गया है तो हम जल-बिन मछली की तरह छटपटा रहे हैं। सब ओर सेनेटाइज़ेशन का काम पूरे जोरो पर है और लोग भी घरों के बाहर और आस-पडौस को पानी का पाइप लगाकर इस उम्मीद से धोने में लगे हुए हैं कि उनके द्वारा की गयी इस धुलाई के बाद कोरोना उनके घर में नहीं घुस पायेगा, टीवी चैनलों पर भी बाहर से आने वाले लोगों और सामान जैसे सब्जियाँ और गाड़ियों को धोने वाले फनी वीडियो भी खूब दिखाये जा रहे हैं। कभी सहलशीलता और धैर्य जैसे गुणों से अपनी पहचान बनाने वाले हम भारतीय आज इन सुंदर गुणों से दूरियाँ बना चुके हैं। छोटी-छोटी बीमारियों में जल्दी ठीक होंने के लिए तुरंत ही मेडिकल स्टोर से ही पूँछ कर प्रतिजैविक दवायें भी ले लेते हैं । ये दवाएँ हमें थोड़े समय के लिए ठीक तो कर देती हैं लेकिन अपने पीछे नई बीमारियों को भी जन्म दे देतीं हैं।

आज हम सबकी हालत भी कुछ ऐसी ही है, चारों तरफ कोरोना-कोरोना का नाम जपा जा रहा है। क्या न्यूज़ चैनलों को आज 135 करोड़ की आबादी वाले घने देश में पूरे 24 घंटे कोरोना के सिवाय अन्य कोई  खबर दिखाने लाइक नहीं लगती? जो चैनल और कार्यक्रम थोड़े दिनों पहले तक पानी की टपकती हुई बूँदों को दिखाते हुए जल-मिशन, जल-रक्षक जैसे अभियानों को चलाने में लगे हुए थे वो आज जल की बर्बादी को खूब मजाक में दिखा रहे हैं और दिखाएं भी क्यों न? जब गर्मियों के दस्तक देनें के बावजूद भी हम लोग खुद भी यह नहीं सोचते कि चाहें हम बार-बार हाथ धोएं या घर और गाडी धोयें, पानी का जरूरी और सीमित उपयोग ही करें नहीं तो कुछ दिनों में ही हमलोग को-रोना के बाद पानी के लिए रोना शुरु कर देंगे और फिर को-रोना के जाते ही जल-रोना पर डिबेट शुरू हो जाएंगे। तब हम भी यही सोचकर खुश हो लेंगे कि जीवन में तो परेशानियां आती-जाती रहतीं हैं लेकिन बी पॉजिटिव…

Exit mobile version