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कोरोना से उपजे हालात और आर्थिक पुनर्संरचना

कोरोना महामारी के चलते उपजे हालात और उसके दुष्परिणामों ने देश को नए सिरे से सोचने को विवश कर दिया है।

कोरोना आपदा में पलायन करने वालों के समक्ष संकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है

कोरोना आपदा की स्थिति में रोजगार की तलाश में गावों से महानगरों में पलायन करने वाले असंगठित मजदूरों, रिक्शाचालकों, घरेलू कामकाजी औरतों आदि के समक्ष आजीविका और जीवन रक्षा दोनों की समस्या उत्पन्न हो गयी है।

रोज कमाने और खाने वाले ऐसे लोगो के पास एक तो न स्थायी आवास होता है, न ही पर्याप्त आहार। दूसरे इनके ऊपर आश्रित परिवार जो इनसे सैकड़ों मील दूरी पर है।

 

 

कोरोना आपदा से निपटने के लिए सरकार ने तत्परता दिखाई है

हालांकि केंद्र एवं सम्बंधित राज्य सरकारों ने तत्परता दिखाते हुए पूरे देश में एक साथ कई मोर्चो पर काम करना प्रारम्भ कर दिया। एक तो एकदम से नयी महामारी के प्रति लोगों को जागरूक करना, चिकित्सकीय सुविधा प्रबंधन, इतने बड़े और विषमता भरे देश की जरूरतें पूरी करना। ऊपर से लॉक डाउन का पालन न करने और गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करने वाले लोगों के साथ कड़ाई से निपटना आसान कार्य नहीं है।

फिर भी प्रधानमंत्री के कुशल नेतृत्व में भारत ने अभी तक जिस प्रकार से इस महामारी का सफलतापूर्वक सामना किया है वह प्रशंसनीय है।

 

 

कोरोना और अर्थव्यवस्था:

इस महामारी के कारण जहां एक ओर बहुत बड़ी संख्या में जनहानि हो रही है, वही दूसरी ओर पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था अपने निचले पायदान पर जाने की स्थिति में पहुंच चुकी है। इसका भविष्य क्या होगा यह स्पष्ट नहीं है। देश में लॉक डाउन के लगभग 30 दिन से भी ज्यादा हो गये है।

हालांकि लॉक डाउन के दूसरे चरण में जहां कुछ क्षेत्रो को हॉट स्पॉट घोषित कर उसमे पाबंदियां बढ़ाई गयी तो अन्य क्षेत्रों में कुछ रियायतें भी दी गयी है।

इन सबके बीच संक्रमण की गति पर काफी हद तक नियंत्रण तो हुआ लेकिन इससे अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है। जिसके फलस्वरूप लाखों लोगों के व्यवसाय पर संकट आ गया है।

क्या कहते है अनुमान :

आपदा से निपटने के साथ-साथ हमें भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयार रहना होगा

यह बिलकुल सत्य है कि ऐसी स्थिति में किसी का भी प्रथम लक्ष्य जीवन-रक्षा होना चाहिए। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि हम भविष्य के बारे में कुछ विचार ही न करें। शायद इसी भावना से प्रेरित होकर भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने पूर्ववर्ती आग्रह,“ जान है तो जहान है।” के आगे कहा,“ जान भी और जहान भी।”

ऐसी स्थिति में जब देश पर आर्थिक बोझ लगातार बढ़ रहा है, लोगों की क्रय-शक्ति घट रही है, लॉकडाउन और महामारी के कारण सरकार के आय के स्रोत भी सीमित रह गए हैं। तब जबकि इस महामारी की कोई निश्चित अवधि नहीं है।

भारत जैसे देश को अपनी आर्थिक नीतियों को पुनर्गठित करना अति आवश्यक हो गया है

 अर्थव्यवस्था की यह पुनर्संरचना भारी उद्योगों और लघु एवं मध्यम उद्योगों के बीच समन्वय पर आधारित होनी चाहिए। गांव के बिना शहर की संकल्पना अधूरी है, इस नयी व्यवस्था में हमे इस यथार्थ को स्वीकार करते हुए कि नगरों की जरूरतें गावों से ही पूरी होती हैं। गांव रहेंगे तभी शहरी जीवन सुखमय हो सकता है।

गावों के यथोचित पुनर्निर्माण पर बल देना होगा। भारत आज भी गावों का देश है और यहां की अधिकांश जनता गांवों में ही निवास करती है। हम गावों के लोगो को गांवों में ऐसी सुविधाए प्रदान करने में अभी तक विफल रहे हैं।

फलस्वरूप ऐसी सुविधाओं के अभाव में और आजीविका के लिए गांंवों से नगरों की ओर वर्षों से होने वाला पलायन आज भी विद्यमान है।

कोरोना महामारी की इस विभीषिका ने अपने गृह राज्य, अपने गृह जनपद और अपनों से दूर फंंसे लोगों की दयनीय हालत ने इसे विचारयोग्य बना दिया है।

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