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कोविड 19 के वक्त में गिग श्रमिको के योगदान और कल्याण को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए

कोविड 19 के वक्त में गिग श्रमिको के योगदान और कल्याण को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए

 

लेखक: बलवंत सिंह मेहता और अर्जुन कुमार

हिन्दी अनुवाद – पूजा कुमारी, विजिटिंग रिसर्चर, प्रभाव एवं नीति अनुसंधान संस्थान, IMPRI

 

स्वतंत्र गिग अर्थव्यवस्था आज की आधुनिक दुनिया में रोज़गार का एक प्रमुख चालक है। फिर भी इसके कर्मचारी असुरक्षा और अस्थिरता के मद्देनज़र अधिक संवेदनशील हैं। जहां सामाजिक सुरक्षा योजना में उनके समावेश के लिए यह समय परिपक्व है।

 

गिग इकॉनमी एक श्रम बाज़ार है जिसकी विशेषता अल्पकालिक अनुबंधों की तरह स्थायी कार्यों के विपरीत फ्रीलांसर की तरह का काम है। यह दो प्रकार की कार्य-आधारित सेवायें प्रदान करता है। ‘

 

क्राउडेड वर्क

 

इसके तहत डिजिटल मार्केटिंग, ऑनलाइन ट्यूशन, कंटेंट राइटिंग, ट्रांसलेटिंग, ग्राफिक डिज़ाइनिंग, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, अकाउंटिंग, डेटा एनालिटिक्स, लीगल वर्क, मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन, टेली-मेडिसिन फ्रीलांसरों से जुड़े सामाजिक कार्य आदि आते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वह काम जो कहीं से भी किए जा सकते हैं।

 

ऑन-डिमांड वर्क

 

दूसरा है ऑन-डिमांड वर्क, इसजे तहत उबर और ओला द्वारा दी जाने वाली व्यक्तिगत परिवहन सेवाएं, ज़ोमाटो और स्विगी द्वारा प्रदान की जाने वाली खाद्य वितरण सेवाएं और अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट की ई-कॉमर्स सेवाएं आती हैं।

 

भारत की स्थिति

 

Payoneer के ग्लोबल इकोनॉमी इंडेक्स, 2019[1] के अनुसार भारत डॉलर के मूल्य के हिसाब से गिग इकॉनमी वर्कर्स के लिए शीर्ष सात गंतव्यों में शामिल है। वैसे गिग श्रमिकों को स्वतंत्र ठेकेदार या स्वतंत्र कर्मचारी या भागीदार माना जाता है न कि कर्मचारी। जिनके पास नियमित मज़दूरी या पूर्णकालिक नौकरियां नहीं होती हैं और आमतौर पर नियमित काम या कोई सामाजिक सुरक्षा जैसे लाभ भी नहीं होते हैं। यह श्रमिक कर्मचारी नहीं हैं, इसलिए उनमें से अधिकांश को घर पर रहना पड़ जाता हैं। स्वयं तथा अपने परिवार को सहारा देने के लिए आवश्यक सेवा कार्य में संभावित रूप से काम करना पड़ता है।

 

इस समय लॉकडाउन के कारण गिग अर्थव्यवस्था में पेश की जाने वाली कुछ सेवाओं की मांग में गिरावट आई है। जो सामाजिक विकृति के नियमों के कारण यह असंभव हो गया है।

 

गिग इकोनॉमी का महत्व 

 

दुनिया भर में ऑन-डिमांड गिग इकोनॉमी वर्कर्स के बीच में काम करने वाले गिने-चुने ही काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए भारत में बिग बास्केट और ग्रोफर्स जैसे ऑनलाइन किराना स्टोर उबेर की साझेदारी में ग्राहकों को आवश्यक वस्तुओं के वितरण की सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।

 

बेंगलुरु में उबेर जैसे स्टार्ट-अप ने अपने काम को जारी रखने के लिए कुछ अभियान साझेदारी में विकसित किये है। इसके लिए वह पारंपरिक व्यवसायों और अस्पतालों में भागीदारी के साथ काम करने वाले या आवश्यक स्वास्थ्य सेवा देने वाले श्रमिकों को उनके गंतव्य स्थान पहुंचाने के लिए गिग कामगारों का उपयोग कर रहे हैं।

 

गिग इकोनॉमी और Covid 19

 

लॉकडाउन 2.0 के अंत के बाद भारत में कुछ ई-कॉमर्स गिग इकॉनमी के कामों को सरकारी नियमों के अनुपालन में भारत के चुनिंदा क्षेत्रों में फिर से शुरू किया गया है, जिससे उन्हें कुछ राहत मिलेगी। वह अन्य योद्धाओं जैसे डॉक्टर, नर्स, पुलिस और अन्य की तरह अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा को जोखिम में डालकर कोरोनोवायरस के आगे प्रसार को प्रतिबंधित करने में एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।

 

चुनौतीयां

 

दुनिया भर की सरकारों ने स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और सुरक्षा कर्मियों के लिए बीमा की घोषणा की है और कुछ स्थानों पर उनके वेतन में बढ़ोतरी की है लेकिन गिग श्रमिक ऐसे किसी भी विचार से बाहर हैं। उनमें से अधिकांश के पास स्वास्थ्य बीमा और बीमार हेतु छुट्टी जैसी किसी भी रोज़गार सुरक्षा योजनाओं तक पहुंच नहीं है। चूंकि वह आम तौर पर डेली वेज की तरह ही काम करते हैं। इसलिए उनके पास कोई बचत नहीं है जिससे वह बाद में वह बुरे वक्त से उबर सकें।

 

भारत में लॉकडाउन के साथ लाखों प्रवासी श्रमिक अपने घर, कस्बों और गांवों में चले गए हैं। सस्ते श्रम को खोने के संभावित खतरे के रूप में देखते हुए श्रमिकों के लिए कुछ राहत उपायों की घोषणा की गई हैं। हालांकि, ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म पर काम करने वालों को बाहर रखा गया है। सरकारी योजनाएन शायद ही कभी उन्हें कवर करती हैं या जब वह करती हैं तो उनकी शर्तें गिग श्रमिकों को अर्हता प्राप्त करने के लिए बहुत कठोर हैं।

 

गिग इकॉनमी का भविष्य

 

 

 

गिग अर्थव्यवस्था में व्यापक प्रभाव पैदा करने की बहुत बड़ी संभावना है। गिग अर्थव्यवस्था का आकार 17 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ने और 2023 तक लगभग 455 बिलियन डॉलर की सकल मात्रा तक पहुंचने का अनुमान है। कई अनुमान बताते हैं कि वैश्विक स्तर पर 70 मिलियन से 1.2 बिलियन लोग गिग इकॉनमी के काम में लगे हुए हैं।

 

रिसर्च क्या कहती हैं

 

कुछ अध्ययनों का अनुमान है कि 2030 तक फ्रीलांसर वैश्विक कार्यबल के 80 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।

 

भविष्य

 

महामंदी और द्वितीय विश्व युद्ध के कारण अमेरिका में कमज़ोर और अन्य श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा जाल को चौड़ा किया गया था। अब कोविड 9 महामारी खत्म होने के बाद दुनिया भर में एक समान प्रतिक्रिया की उम्मीद है।

 

यह सुनिश्चित करने के लिए कि गिग श्रमिक गरिमा का जीवन जीते हैं। कोविड 19 उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने और उन्हें कर्मचारी श्रेणी में शामिल करने के लिए एक उपयुक्त समय के रूप में आया है। ताकि वह सामाजिक सुरक्षा और अन्य सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त कर सकें।

 

भारत कैलिफोर्निया के एबी 5 बिल के समान कदमों पर विचार कर सकता है जो गिग श्रमिकों को राज्य और पात्रता वाले नियोक्ता जैसे बीमा, ओवरटाइम वेतन और छुट्टी के लिए पात्र मानते हैं। यह कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) के माध्यम से एक कोष स्थापित करेगा जो कि अर्थव्यवस्था के श्रमिकों को स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और अन्य लाभ प्रदान करेगा।

 

भारत सरकार का सकारात्मक कदम

 

उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने कुछ महीने पहले प्रसारित ड्राफ्ट सोशल सिक्योरिटी कोड में गिग इकॉनमी वर्कर्स को पेश किया है, जिसमें स्वास्थ्य लाभ और बीमा कवरेज शामिल हैं। जबकि ओला कैब्स और ज़ोमैटो जैसी कंपनियों ने जनता और प्रबंधन से दान मांगकर, अपने कार्यकर्ताओं को समर्थन देने के लिए धनराशि शुरू की है।

 

कंपनियों को ऐसे फंड में सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए पारदर्शी नियमों और विनियमन के साथ आना चाहिए।

 

गिग अर्थव्यवस्था, काम का भविष्य बनने जा रही है

 

बेहतर रोज़गार की स्थिति प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता है जो पूर्ण समय में भाग लेने के लिए अधिक युवा नौकरी चाहने वालों को प्रोत्साहित करेगा। जो की न केवल उपयुक्त रोज़गार के अभाव में ऐसा करेगा बल्कि एक स्टॉप-गैप समाधान के रूप में भी काम करेगा।

 

कोविड 19 जैसी महामारी के समय में, अधिकांश कोरोना योद्धाओं जैसे कि डॉक्टर, सुरक्षा कर्मियों और अन्य लोगों को उनके वेतन में बढ़ोतरी दी गई है और उन्हें ड्यूटी के दौरान मृत्यु के मामले में भारी मात्रा में जीवन बीमा कवर प्रदान किया गया है लेकिन गिग अर्थव्यवस्था कार्यबल उपेक्षित रह गया है। यहां तक कि यह जान जोखिम में डालकर लोगों की सेवा करने में भी शामिल हैं।

 

सरकारों को इन कठिन समय में उनके महत्व पर विचार करना चाहिए और उन्हें अन्य कोरोना योद्धाओं के समान आवश्यक जीवन बीमा कवर और लाभ प्रदान करना चाहिए। उन्हें नि: शुल्क व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण जैसे कि कीटाणुनाशक, दस्ताने और मास्क, उनके वाहनों के दैनिक स्वच्छता के लिए तरल पदार्थ और उनके परिवार सहित नियमित चिकित्सा जांच सुविधाएं भी दी जानी चाहिए।

 

डॉ. बलवंत सिंह मेहता और डॉ. अर्जुन कुमार, इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट (IHD) दिल्ली और प्रभाव एवं नीति अनुसंधान संस्थान  (IMPRI), नई दिल्ली से जुड़े हैं।

 

 

[1] https://pubs.payoneer.com/images/q2_global_freelancing_index.pdf

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