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उड़ीसा का गुडाराज थाने के भुंजिया आदिवासियों के जीवन की झलक

उड़ीसा में गुडाराज थाना एक अनोखी जगह है। गुडाराज तीन पहाड़ के ऊपर पठार में स्थित है, जहां लगभग 50 गाँव बसे हुए हैं। गुडाराज चढ़ने के लिए दो ही रास्ते हैं, एक चांचरा घाट, दूसरा उत्तर पूर्व से उद्यानबन घाट।

लोगों का मानना है कि गुडाराज देवताओं का गढ़ है

ऐसे ब्यावन जंगल में बसे हमारे आदिवासी पीढ़ी-दर-पीढ़ी जंगल, पर्वत-पहाड़ के ऊपर निवास करते आ रहे हैं। पहले ना तो यहां बिजली थी और ना ही किराना दुकान। यहां पर सिर्फ 1 साल से आदिवासी बिजली को देख रहे हैं। इससे पहले मिट्टी और तेल के सहारे चिमनी और मोमबत्ती जलाकर रात में उजाला लाते थे।

बुजुर्ग बताते हैं कि गुड़ाराज पुरा देवताओं का गढ़ है। अर्थात यह देव गुमान का स्थान है। गुडाराज में कई ऐसी जगह है, जिनसे देवी-देवताओं का धार्मिक इतिहास जुड़ा है, ऐसा लोगों की मानना है।

गुडाराज के लोगों का मनोरंजन करने का एक अनोखा तरीका है

मनोरंजन किसी भी मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण भाग है, जिसकी हर किसी को ज़रूरत होती है। इस गाँव में एक साल पहले तक बिजली ना होने के कारण नाच-गान के अलावा मनोरंजन के साधन कम ही थे। गाँव के लोग नाच-गाना करने के लिए चारों तरफ आग या गैस जलाते थे और मोमबत्ती, कंडील, चिमनी, जलाकर रात में कार्यक्रम संचालित करते थे।

इस कार्यक्रम में बांस गीत, चिना गीत, खड़ी नाच इत्यादि प्रस्तुत किए जाते थे। आदिवासी नृत्य, कहानी और संगीत कार्यक्रमों के माध्यम से ही मनोरंजन करते थे।

कार्यक्रम करने के लिए गाँव के गली खोर के बीच या सब लोगों के लिए सुविधाजनक हो ऐसे मैदान पर कार्यक्रम करने के लिए जगह का चयन करते थे।

गुडाराज थाने के कई गाँव आज भी संस्कृति को ज़िंदा किए हैं

इस गुड़ाराज थाने के 50 गाँवों में संस्कृति और कला कूट-कूटकर भरी है। इस थाने के ग्राम सोना बेड़ा के अगिन साय भुंजिया अपने ग्राम के मुखिया हैं लेकिन साथ ही साथ संगीतकार भी हैं। अपनी युवावस्था में मनोरंजन के साधन नहीं होने के कारण यह चिकारा बजाकर मनोरंजन करते थे। यह चिकारा नाम का एक वाद्य बजाते हैं।

श्री अगिन साय भुंजिया चिकारा बजाते हुए

बाटें चो महुं भने …एटावै नहीं हो

                  एटा नहीं … ।।

मामा चो बेटीस देखा,  भेटावै  नहीं हो … ।।

 लाला धरैं कांने खेन्ची बीडी  ….  ।।

     बाटें मुंय हिंडिंदे गढीदे गोंटी हो … .  ।।

 मामा चो बेटीस  देखा तेलई रोटी रे

धरमै दिने तुम्हरे नमूना । ।

येहीं ताली लागुंन गलो,

श्री अगिन साय भुंजिया बताते है कि यह गीत को शादियों में गाया जाता है , अर्थात शादी- घर में नाचने के लिए गाया जाता है। इसे मनोरंजन के तौर पर चलते चलते भी लोग गाते है और छोटे बच्चों को सुलाने के लिए भी यह गीत गाया जाता है।

गुडाराज के लोगों का जीवन यापन

गुडाराज के मूल निवासियों का कहना है कि यहां पहले लोग कोदो, कुटकी और ज्वार को उपजा करके एवं जंगल के अनमोल फल फूल खाकर अपना जीवन-यापन चलाते थे। मगर अब यहां भी धान की खेती करना शुरू हो गया हैं। जहां पहले लोग एक वक्त के लिए भी भोजन नहीं जुटा पाते थे, अब ऐसी समस्या नहीं है।

लोग मेहनत करके दो वक्त की रोजी-रोटी कमाते है। पहले शहर जाने के लिए भी रोड की सुविधा नहीं था, लेकिन अब पहाड़ को खोद-खोद कर रोड बनाया जा रहा है।

यह रोड अभी तक सही ढंग से नहीं बना है और बहुत तकलीफ़ से ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल और साइकिल रोड पर चल पाते है।


लेखक के बारे में- खगेश्वर मरकाम छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं। यह समाज सेवा के साथ खेती-किसानी भी करते हैं। खगेश का लक्ष्य है शासन-प्रशासन के लाभ आदिवासियों तक पहुंचाना। यह शिक्षा के क्षेत्र को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

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