Site icon Youth Ki Awaaz

उत्पीड़न और घरेलू हिंसाचार

उत्पीड़न और घरेलू हिंसाचार

Or

घरेलू उत्पीड़न के बाद परिवार को तार-तार करती घरीलू हिंसा

 

भारत की संस्कृति पर पुरुष सत्ता का वर्चस्व प्राचीन काल से ही रहा है। आज भी वर्तमान भारत में यही देखने को मिलता है। भारत में महिलाओं को सक्षम, सबल बनाने की व्यवस्था ही नहीं है। एसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि बाल्यावस्था से ही उसे घर परिवार से इस प्रकार की सोच, समझदारी विकसित करने के लिए अनेक सामाजिक पाबंदियां लगाई जाती रही हैं। उसे हर समय महसूस कराया जाता है कि वह एक लड़की है, इस लिए उसे उसी तरह से रहना चाहिए। 

 

लड़की होने का मतलब मर्यादा होना ?

 

लड़की होना मतलब मर्यादा होना, बस यही समाज में प्रचलित है। मैं जहां रहता हूं वहीं पड़ोस में आए दिन चीखने की आवाज़ें सुनता रहता हूं। हर दिन मार पीट होती रहती है। यह साधारण मार पीट नहीं है, आए दिन किसी औरत का पति उसे मार-पीट करे, यह बेहद पीड़ा दायक और शर्मनाक है। मुझे लगता है भारत की अधिकांश आबादी का यही सच है। मुझे पता नहीं कि हर दिन कितनी महिलाओं के साथ घरेलू हिंसाचार होता होगा। 

 

समाज का वह चलन जो महिलाओं को शोषित कर गुलामी की ओर ढकेलता है

 

मैंने देखा है कि अक्सर गांव अथवा छोटे शहरों में रहनेवाले परिवार लड़की को ज़्यादा पढ़ा लिखाकर सक्षम नहीं बनाते। अपितु अल्पायु में ही ब्याह देते हैं। लड़की को ज़्यादातर घरेलू शिक्षा दी जाती है कि उसे पढ़ लिखकर क्या करना है, चुल्हा-चौका ही तो करना है। बहरहाल, अल्प आयु में ब्याह देना और शिक्षा के लिए प्रोत्साहित न करने का वलन ही अधिकांश महिलाओं को शोषित और गुलामी की ओर ढकेलता है। जब अल्पायु में ही ब्याह होंगा और शिक्षा भी जैसे तैसे मैट्रिक या इंटर तक ही होगी तो वह न प्रतिकार कर पायेंगी न इस शोषण पर सोच-विचार। 

 

घरलू हिंसाचार के कारक

 

सरकार देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारना चाहती है और उसके लिए शराब की दुकानें खोलने की छूट दे रही है। घरेलू हिंसाचार के कारकों में केवल पुरुष सत्ता ही नहीं, यह शराब भी महत्वपूर्ण है। आये दिन पति शराब पीकर आता है और पत्नी को पीटता है। अल्प आयु में ब्याह हो जाना, अशिक्षा, शराब और अल्प आयु में ब्याह हो जाने के कारण बच्चे हो जाना ही घरेलू हिंसाचार के कारक हैं। 

 

भारत में कितनी महिलाओं के साथ आए दिन इस प्रकार हिंसाचार होती होंगी। यह आए दिन सुनाई पड़नेवाली चीखों से पता चलता।

 

समाज को इस रवैये में बदलाव के लिए आगे आकर मुखर होना चाहिए। लड़का-लड़की के नाम पर भेदभाव न कर सभी को सक्षम होने के के लिए समान अवसर प्रदान करने चाहिए। भारत की अधिकांश आबादी का यही सच है जो पुरुष वर्चस्व को कायम करने और महिलाओं को ज़ंजीर में बांधने के लिए घर परिवार से ही प्रोत्साहन लेता है। घर परिवार से महिलाओं को सक्षम बनाने और पढ़ने-लिखने, सोच समझदारी को विकसित करने के लिए बढ़ावा देना चाहिए। वरना यूं ही घरेलू हिंसाचार चलता रहेगा और हम केवल स्री-पुरुष समानता की बातें करते रहेंगे।

 

Exit mobile version