अक्सर मन मे बहुत सारी बातें आती है जिसे कहना तो चाहते है मगर अलफ़ाज़ के जुगनू ना जाने कहाँ गुम हो जाते है और फिर वो बातें भी यादों की गठरी में अपना स्थान ग्रहण कर लेती है। कभी कभी लगता है कि ये दुनियां कितनी हसीं कितनी खूबसूरत हैं। ना जाने कितने रंग है इसमें और ना जाने कितने ही सपने पर फिर अचानक से नजरो के सामने दुख और कष्टों की फिल्म चलने लगती है।जब इन दुख और कष्टों के बारे में सोचते है तो समझ आता है कि ये भी तो जिंदगी के ही रंग है जिस रंग में हम रंगने से बचना चाहते है।आखिर ये भी उसी खूबसूरत जिंदगी का ही हिस्सा है। फिर सोचता हूँ जिंदगी काश खूबसूरती के साथ ही चलती रहे..पर फिर ख्याल आता हैं कि आखिर हैं तो फ़िल्म ही,खत्म तो एकदिन होना ही हैं..पर सोचता हूँ कि फ़िल्म के खत्म होने से पहले इसके हीरो से कहा जाए कि इतनी मेहनत करो कि फ़िल्म सुपर_हिट हो जाए औऱ डायरेक्टर हर बार अपनी फिल्म में आपको ही ले…ज़िन्दगी की कहानी कब खत्म हो जाये ये तो शायद डॉयरेक्टर के अलावा कोई नही जानता..पर हाँ डॉयरेक्ट इतना हिंट जरूर दे देता है कि आप फ़िल्म के अंत का अंदाज़ा लगा सकते हैं।आप प्रोमो देखकर बता सकते हो कि फ़िल्म कैसी हैं..साधरण फ़िल्म औऱ हमारी फ़िल्म में फ़र्क सिर्फ इस बात का की साधारण तौर पर फ़िल्म की स्क्रिप्ट नायक/नायिका को पता होती हैं पर हमारी फ़िल्म वास्तव में हमारे लिए भी एक surprise हैं हमे तो बस अपने फ़िल्म के डायरेक्टर के निर्देशानुसार बस किरदार अदा करना हैं और हर फिल्म के नायक/नायिका की तरह मै भी चाहता हूँ कि मैं अपना किरदार बेहद उम्दा तरीके से पर्दे पर निभा पाऊँ…भले ही मेरी फिल्म सुपरहिट ना हो पर मैं इतना जरूर चाहता हूँ कि पर्दा गिरने के बाद थोड़ी देर के लिए ही सही तालियां बजती रहे। आप सब भी अपने किरदार को बखूबी निभाए।अपने किरदार को इतना बेहतर बनाए की वह किरदार दूसरों की प्रेरणा बन जाए और हमेशा के लिए वह किरदार यादों मे बस जाए…….!!