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“कॉलेज से लेकर मोहल्ले तक हर जगह मुझे इस्लामोफोबिया सिखाया गया”

मुसलमान को देशभक्ति का प्रमाण जगह-जगह पर देना पड़ता है। इस स्थिति के ज़िम्मेदार हर वर्ग के लोग हैं और दिलचस्प है कि यह नफरत स्कूल और कॉलेज के दिनों से ही है।

आखिर हम मुसलमानों से इतनी नफ़रत क्यों है?

मुसलमान से नफरत उस वक्त से है जब स्कूल-कॉलेज में “भारत माता की जय” और “जय हिन्द” बोलते समय हमेशा बगल में खड़े मुसलमान दोस्त या शिक्षक का चेहरा अजीब निगाहों से देखा जाता था।

यह पता करने के लिए उन्हें असहज कराया जाता था कि वे बोल रहे हैं या नहीं। दरअसल, देशभक्ति के पैमाने के आधार पर जज किया जाता था।

अक्सर विद्यालय में देशभक्ति के नाटकों में मुसलमान को पाकिस्तानी किरदार दे दिया जाता था

स्कूल के नाटक कार्यक्रमों में देशभक्ति वाले दृष्य के लिए मुस्लिम स्टूडेंट्स को पाकिस्तानी रोल दिया जाता था। ईद और अज़ान के समय हम अपने ज़हन में नफरत लेकर घरों के दरवाज़ें बंद कर देते थे और घरों में बैठकर गालियां देते थे कि इनको पाकिस्तान चले जाना चाहिए।

मुस्लिम मित्रों को प्लास्टिक के गिलास में पानी दिया जाता था

जब हमारे कॉलेज का कोई मुस्लिम मित्र आता था तो पानी प्लास्टिक के गिलास में दिया जाता था। उसके जाने के बाद उस गिलास को फेंक दिया जाता था। मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पर खुले तौर पर टिप्पणी की जाती थी। समाज में भी यही शिक्षा दी जाती थी।

नाम में मोहम्मद या खान लग जाने से क्या हर मुसलमान अपराधी हो जाता है?

यह नफरत तब की है जब बचपन में हम किसी मुस्लिम बस्ती से निकलते वक्त हंसते हुए मिनी पाकिस्तान बोलते थे। जब मुसलमान रोड पर नमाज़ पड़ते थे तो नफरत से उन्हें देखना आम बात था। हमारे देश में तो नाम के आगे मोहम्मद और खान लगते ही आपराधिक मामलों में पुलिस पहले से ही यह मान लेती है कि इसने तो ज़ुर्म किया ही होगा।

मुस्लिम महिलाओं अथवा लड़कियों के चरित्र पर लांछन लगाकर यह बोला जाता था कि ये तो बच्चे पैदा करेगी। गीता को सर्वश्रेष्ठ और कुरान को आतंकी किताब बताया जाता था।

प्राइवेट सेक्टर में मुसलमानों के लिए सफर बेहद मुश्किल भरा है

जब कोई मुसलमान प्राइवेट सेक्टर में नौकरी के लिए जाता है तो कई दफा उसका नाम देखकर ही उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। जब मुस्लिम की मीट की दुकान पर कोई हमला कर देता था या मॉब लिंचिंग के कारण कोई मारा जाता था तो आपस में बातें होती थीं कि अच्छा हुआ।

हमने अपने हीरो-हीरोइन को भी उनके मज़हब के हिसाब से चुना है।

कल को यहूदियों की तरह मुसलमान को भी मार दिया जाएगा और तब भी हमको कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि नफरत हमको वहां ले आयी है, जिसका किसी के जीने-मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। यह नफरत आज की नहीं है दोस्तों।

नोट: ये मेरे अपने विचार हैं। किसी को ठेस पहुंचाना मेरा उद्देश्य नहीं है। 

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