बदलते वक़्त के साथ युवाओं की सोच में भी बदलाव आ रहा है, जिनके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे है। आज का युवा ना सिर्फ़ अपने करियर को ले कर गंभीर है, बल्कि बड़े सपने देखने और उनको पूरा करने का जज़्बा भी रखता है। लेकिन मिसाल सिर्फ़ वही युवा बन पाते है जो अपने साथ -साथ दूसरो के सपनो का भी ख़्याल रखते है।
ऐसी ही एक मिसाल कायम करने के उद्देश्य से 2016 में राजस्थान के उदयपुर स्थित मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में एक मुहीम शुरू हुयी। लगभग 4 वर्ष पहले कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ साथी जब उदयपुर के पास ही बसे गाँव ढीकली पहुंचे तो सरकारी स्कूल में पढ़ने जा रहे बच्चों को देख उनका मन व्यथित हो गया। किसी के पैरो में चप्पल नहीं थी, तो किसी के कपडे फटे थे। ये पहला मौका था जब शहर की चमक दमक से दूर उन्हें गाँव में संघर्ष करते देश के भविष्य की दुर्गति देखने को मिली। मन में कई सवाल लिए जब वे स्कूल प्रशासन से बातचीत करने पहुंचने तो सच ने उन्हें और ज्यादा चिंतित कर दिया।
युवाओं को जान कर हैरानी हुयी कि ज्यादातर बच्चे स्कूल सिर्फ़ मिड डे मील के लिए आते है। क्षेत्र में ऐसे कई बच्चे है जिनके परिवार आर्थिकरूप से पिछड़े हुए है और शिक्षा के प्रति जागरूक भी नहीं है। इसी तरह के परिवारों के बच्चों को जरुरत की सामग्री मुहैया करा कर शिक्षा के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से शुरू हुयी मुहीम ‘सिद्धम’।
सिद्धम संस्थान के सचिव सिद्धार्थ सोनी ने अपने कॉलेज एवं अन्य साथियो के साथ मिल कर इसकी शुरुआत की थी, जिसमें भगवती बोराणा, डॉ. आदित्य त्रिगुणायत शर्मा, करिश्मा सोनी, नरेंद्र नरुका, गजेंद्र सिंह,अभिजीत खिंची, प्र्ध्यूमन आमेट एवं गौरव सहित एक डॉक्टर्स की टीम भी है जो इस मुहीम को सफल बनाने में प्रयासरत है।
“हम सभी ने मिल कर निश्चय किया कि अपने खर्चो पर लगाम लगा कर पॉकेट मनी से बचत करके जो भी पैसा जमा होगा उससे इन बच्चों में जरुरत का सामान वितरित करेंगे। हमने नियमितरूप से ढीकली जाना शुरू किया, बच्चों को जरुरत का सामान मुहैया करवाने के साथ ही घर-घर जा कर लोगो को शिक्षा के महत्व को समझाते हुए जागरूक करने का प्रयास शुरू किया। हमने सभी को आश्वस्त किया कि वे सिर्फ़ अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू करें, उनकी जरुरत का सामान हम उपलब्ध करवाएंगे,” सिद्धार्थ सोनी, सचिव, सिद्धम संस्थान!
काबिल-ए-तारीफ़ है इन युवाओं के प्रयास कि जिस ढीकली गाँव के सरकारी स्कूल में मिड डे मील के लिए 32 बच्चे जाया करते थे, आज नियमितरूप से 94 बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल जा रहे है। इतना ही नहीं पिछले चार वर्षो में सिद्धम संस्थान ने उदयपुर के आस -पास के ग्रामीणों क्षेत्रो के 20 स्कूलों में लगभग 1800 बच्चो को सहायता पहुचायी है।
मुहीम शुरू तो कर दी थी, लेकिन सफ़र लम्बा था और रास्ता मुश्किल! गाँवों में जाना, स्कूलों का दौरा करना, वहां की समस्याओं से रूबरू होना और उनके निवारण के लिए प्रशासनिक अधिकारियो एवं पंचायतो से मदद लेना, कुछ भी आसान नहीं होता था। बच्चों की जरुरत का सामान वितरण करना ही उद्देश्य नहीं था, गाँवों की स्कूलों में बच्चे बिना किसी परेशानी के पढ़ सके इसका भी ख़्याल रखना था। किसी स्कूल में बिजली की समस्या, तो कहीं पानी की परेशानी और कहीं मिड डे मील की क्वालिटी में सुधार की आवश्यकता- इस तरह की अलग-अलग समस्याओं के निवारण के लिए हाथ-पैर मारने के साथ ही फंड्स का जुगाड़ और स्थानीय नेताओं के दबाव का भी सामना करना पड़ता।
अगर सही समय पर सिद्धम संस्थान के साथी ढीकली में रहने वाले नन्हे दिनेश की मदद के लिए नहीं पहुँचते तो शायद आज 10 साल की छोटी सी उम्र में वो पढाई छोड़ कर घर बैठा होता। पिता की मृत्यु के बाद उसकी मां ने अन्यत्र शादी कर ली और मासूम दिनेश अपने गरीब दादा-दादी के पास ही रह गया। दादा-दादी लकड़ियां काट कर लाते हैं और बेचकर परिवार का पालन पोषण करते हैं। ऐसे में दिनेश के लिए स्कूल में पढ़ने के लिए जरूरतमंद सुविधाओं और संसाधनों को जुटाना बहुत मुश्किल हो गया था, जो कि पढ़ाई के अलावा एक बच्चे की आवश्यकता होती है। कपडे, जुटे, बस्ते से लेकर उसे हर जरुरत के सामान के लिए समझौता करना पड़ रहा था और इस कारण उसका आत्मविश्वास टूट गया, वो खुद को बाकी छात्रों से कमज़ोर समझने लगा। हीन भावना से ग्रसित दिनेश की स्कूल जाने और पढाई करने में दिलचस्पी ख़तम सी होने लगी।
“सिद्धम संस्थान ने जब यह स्थिति देखी तो ढीकली स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय में सभी 90 विद्यार्थियों को नए जूते, नए बैग, टिफिन व स्टेशनरी बांटने का निर्णय किया। दिनेश को भी नए जूते स्टेशनरी और कपड़े मिले, इससे उसके मन से खुद को हीन या कमजोर समझने की भावना खत्म हो गई, जो उसे शिक्षा से किसी रूप में प्रभावित करते हुए शिक्षा से वंचित कर रही थी। आज दिनेश खुश होकर स्कूल जाता है। अच्छे से पढ़ाई करता है”, सिद्दार्थ।
सिद्धम संस्थान ने दिनेश को सिर्फ शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं किया बल्कि सिद्धम की टीम की कार्यशैली से प्रभावित हो कर आज उसमें भी सेवा का एक अलग भाव है। कभी जो दिनेश बात करने से भी कतराता था, आज वो ही बच्चा पुरे आत्मविश्वास के साथ बिना किसी डर के सभी से खूब अच्छे से बात कर लेता है । यह कहानी सिर्फ एक दिनेश की है, लेकिन सिद्धम संस्थान ने अपनी पॉकेट मनी और लोगों से अपील कर करके ऐसे कई बच्चो की जिंदगी बदली है, जो सुविधाओं के अभाव में स्कूल जाने से कतराते थे और दूसरे अमीर छात्रों की तुलना में खुद को कमजोर समझते थे।
परेशानियां बड़ी थी और उससे भी बड़े थे इन युवाओं के इरादे, जिनका होंसला कभी कमज़ोर नहीं पड़ा और पिछले चार वर्षो से निरंतर ग़रीब बच्चों के भविष्य को सुधारने में जुटे हुए है। आवश्यकता के अनुसार कभी क्राउड फंडिंग का सहारा लिया जाता, तो कभी साथियों, रिश्तेदारों एवं परिचितों से मदद मांगी जाती। इसके अलावा सिद्धम संस्थान के सदस्य स्कूलों एवं कॉलेजो में जा कर अपनी मुहीम का प्रचार कर उन्हें सहायता के रूप में पुराने कपडे, स्टेशनरी का सामान आदि दान करने के लिए प्रेरित भी करते है। साथ ही सोशल मीडिया के जरिए भी फंडिंग और डोनेशन की अपील की जाती है। अब तक ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रीय ये मुहीम अगले चरण में जुग्गी-झोपड़ियों में पल रहे बच्चों सहित अनाथ एवं बेसहारा बच्चों तक पहुँच कर निःशुल्क शिक्षा एवं आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करेगी।
आज सिद्धम संस्थान एक रजिस्टर्ड एनजीओ है जिसका उद्देश्य स्पष्ट है, आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवारों के बच्चों की हर उस समस्या का निवारण करना जो उन्हें पढ़ने और आगे बढ़ने से रोक रही है। सिद्धार्थ ने बताया कि वो ज्यादा से ज्यादा बच्चों तक पहुंच कर शिक्षा के प्रति जागरूक करना चाहते है ताकि वो पढ़-लिख कर कुछ बन सके और उनका भविष्य बेहतर हो सके।
“सिद्धम संस्थान का लक्ष्य बड़ा है, लेकिन बजट के अभाव में हम अधिक स्कूलों में अपनी सेवाएं देने के लिए धन जुटा रहा है। हमने इस सत्र भी करीब 1000 जूते और 1200 बच्चों में स्वेटर वितरित किए। इतना ही नहीं सिद्धम संस्थान ने लॉकडाउन के शुरुआती दिनों से लेकर अब तक करीब 90 परिवारों को 1 माह की राशन सामग्री और प्रतिदिन 30 लोगों को दोनों टाइम का पका हुआ भोजन उपलब्ध करवाने का काम किया है और यह सेवा अब तक जारी है,” सिद्धार्थ।
इन युवाओं की सफलता आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। आज हर युवा कुछ करना चाहता है और कुछ बनाना चाहता है, लेकिन बहुत कम ऐसे उदहारण मिलेंगे जिनका उद्देश्य समाज में वो बदलाव लाना है जिसकी अक्सर लोग चर्चा तो करते है, पर पहल कोई नहीं करता। गरीब बच्चों की दुर्दशा देख कर इनका मन ऐसा व्यथित हुआ कि इनके जीवन की दिशा ही बदल गयी। अपने भविष्य के लिए तो हर कोई संघर्ष करता है लेकिन मिसाल तो वही लोग बनते है जो दुसरो के भविष्य को सुधारने में अपनी भागीदारी निभाते है।
सिद्धम संस्थान का आगामी लक्ष्य है महामारी के बाद फिर से एक बार उदयपुर शहर के आसपास के स्कूलों में अपनी सेवाओं का विस्तार करते हुए नए स्कूलों को जोड़ते हुए बच्चों को बेहतर शिक्षा और सुविधा मुहैया कराना है। अगर आप भी सिद्धम संस्थान की इस मुहिम में जुड़ना चाहते है या किसी प्रकार की मदद करना चाहते है तो 9649057572 या 7742212984 पर कॉल कर सकते हैं।