कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए एक तरफ़ सरकार ने लॉकडाउन लगाया तो दूसरी तरफ शहरों से गांवों की तरफ़ भारी संख्या में मज़दूरों का पलायन शुरू हो गया लॉकडाउन के कारण देश भर में रेल सेवा बंद है और सड़कों पर यातायात भी नहीं है. ऐसे में ये मज़दूर ट्रक, टेम्पो, रिक्शा, साइकिल पर या पैदल ही अपने गाँवों की तरफ़ लौट पड़े हैं. शहरों में रोज़गार पर लगे ताले और पेट में मची भूख से तड़प कर घर की तरफ चल दिए इन बेचारों को क्या पता था कि ज़िन्दगी आधे रास्ते में ही हाँफने लगेगी और यह उनकी ज़िंदगी का आख़री सफर होगा ।
ऐसी ही एक कहानी है सीतापुर रहने वाले के जावेद पुत्र इश्तियाक़ की है आज से तकरीबन 3 वर्ष पहले २०१७ में जावेद रोज़ी रोटी की तलाश में मुंबई गए थे. जावेद मुंबई के भिवंडी इलाके में टेम्पो चलाते थे और भिवंडी में ही अपनी पत्नी अमरीन व दो बच्चों अनस और अयान के साथ रहते थे
यह घटना 11 मई की है रोज़गार बंद होने की वजह से देश भर के और और मजदूरों की तरह जावेद भी मजबूर होकर अपनी पत्नी बच्चों व 15 अन्य लोग लोगों के साथ टेम्पो से ही घर के लिए निकल पड़े जावेद भिवंडी से सीतापुर उत्तर प्रदेश अपनी पत्नी औऱ बच्चों को बिठाया हुआ था और पीछे अन्य मज़दूर थे जो गोंडा के रहने वाले थे
जावेद के टेम्पो को ठाणे जिला में वासिदं इलाक़े में मुंबई-नासिक हाईवे पर एक स्विफ्ट डिजायर पीछे से टक्कर मार देती है जिससे टेम्पो पत्थर से टकरा कर पलट जाता है जावेद की मौक़े पर ही मौत हो जाती है बीवी और बच्चों को काफ़ी चोट आती है जिसके बाद उन्हें स्थानीय लोगों द्वारा पास ही शहपुरके सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था उनकी पत्नी का टूट गया है और बच्चों के भी हाथ में छोटे आई है शहपुरा के सरकारी अस्पताल से उन्हें मुंबई के शाइन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था
हमने जावेद के भाई आफताब से फोन पर बात की तो उन्होंने बताया कि की भाभी के पास बिल्कुल भी पैसे नहीं थे हमने उनके खाते में 15 हज़ार रूपए डलवाए हैं जावेद ने हमें यह भी बताया की उन्होंने ने “अल्लाह के बंदे ” नाम के की सामाजिक संस्था से बात की थी जिसके बाद उन्होंने हमसे जानकारी लेकर भाभी और बच्चों का इलाज कराने की बात कही है
हमने जावेद की पत्नी अमरीन से भी बात की अमरीन ने हमें बताया कि अब “अल्लाह के बंदे ” नामी संस्था की मदद से एक मुंबई के अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है और डॉक्टर नें उन्हें एक से दो महीने तक का समय लगने की बात कही है
उन्होंने यह भी बताया की पोस्टमार्टम के बाद भिवंडी में ही जावेद का अंतिम संस्कार कर दिया गया और जावेद हमारे परिवार का एकमात्र सहारा थे अब हमारा और हमारे बच्चों का किया होगा हमें नहीं पता हमने जब उनसे किसी सरकारी मदद के में पुछा तो पता चला की ना महाराष्ट्र सरकार से उन्हें कोई मदद मिली है और ना ही उत्तरप्रदेश सरकार की तरफ से उनसे किसी ने संपर्क किया है. जावेद सीतापुर में सुदामापुरी के रहने वाले थे