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ज्योति सिंह पासवान को साइकिलिंग फेडरेशन में ट्रायल के मौके को नहीं गवाना चाहिए।

2005 की बात है, जब बुधिया नाम का सितारा उड़ीसा के एक छोटे से स्लम में उभरा था। बुधिया के पिता की मृत्यु हो गई थी और गरीबी के चलते माँ ने उसे 800 रुपये में बिरंचि दास नाम के कोच को दे दिया, एक घटना से बिरंचि को बुधिया के दौड़ने के टैलेंट के बारे में पता चला था। सिलसिला कुछ ऐसा रहा की देखते देखते कुछ ही सालों में बुधिया नाम का सितारा एक बोर्डिग स्कूल में सिमट कर रह गया। 

हालही में ज्योति पासवान जो एक 15 साल की लड़की हैं, ने साइकिल से गुड़गांव से बिहार की लगभग 1200 km की दूरी 7 दिनों में तय की। ज्योति को ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि उसके पिता का कुछ समय पहले एक्सीडेंट हुआ था, वो पैदल चलने में असमर्थ थे, लॉकडाउन के चलते उनकी आमदनी भी खत्म हो गई थी और मकानमालिक ने उनको मकान छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। ज्योति ने किसी कारणवश 2017 में आठवीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। बुधिया की तरह वह रातों रात साईकलिंग गर्ल बन गईं हैं। ज्योति एक पिछड़े दलित समाज से आती हैं, और बिहार के एक छोटे से गांव में रहती है। ज्यूहि ज्योति की खबर फैली सभी महानुभाव ज्योति को बधाई देने पहुचे, यहाँ तक कि खबर इतनी फैली की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवाका ट्रम्प ने भी ज्योति की बहादुरी के लिए ट्वीट कर दिया। पहले कोई इनको ये बताए कि 1200 किलोमीटर की साइकिलिंग कोई बहादुरी नहीं बल्कि मजबूरी थी, क्योंकि उनके पास कोई और रास्ता न था। खैर जो भी हो “जरूरतें ही खोज की जननी होती है” सही उम्र में ज्योति का लंबी दूरी की साइकिलिंग का हुनर सामने आ गया। कुछ ही दिन पहले साइकिलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने भी ज्योति की ट्रायल का ऑफर दिया है। 

पर जब मैंने सुना कि ज्योति ने पढ़ाई पूरी करने के नाम पर ट्रायल के लिए इनकार कर दिया तो मैं थोड़ा परेशान हुआ, पहले तो मैं नहीं कह सकता कि ये उनका स्वतंत्र फैसला है या किसी के समझाने के बाद उन्होंने लिया है, यदि वो पढ़ना ही चाहती हैं तो पढ़ाई साइकिलिंग के साथ भी हो सकती है, अगर उनमें क्षमता है तो उनको जरूर ही इसमें आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। वैसे भी पिछड़े वर्ग से आये युवाओं को ऐसे मौके कम ही मिलते हैं, मजबूरी के चलते ही सही पर ठीक समय उनकी क्षमताएं बाहर आई हैं, उनको फेडरेशन में अपना फैसला बदलना चाहिए। नहीं तो ये वही किस्सा होगा जो बुधिया का हुआ था, और हमारे सामने सामने ही श्रमण समाज का एक और दिया बूझ जाएगा।

बुधिया के केस में उसकी उम्र काफी कम थी वह महज 3 साल का था, पर ज्योति एक बेहतर तरीके से सोचने समझने की उम्र को पा चुकी है, जरूरत भर साथ मिले तो वह आने वाले समय में साइकिलिंग जैसे अपारंपरिक खेल में देश का नाम आगे बढ़ा सकती हैं। 

इसीलिए मेरी समझ मे समाज खासकर श्रमण समाज को, ऐसे प्रतिभावानो को महज किताबें और एक साइकिल देकर ही नहीं बल्कि आगे बढ़ने के लिए जरूरी संसाधन, साथ व प्रोत्साहन देने की प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए।

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