“आज आप जो करते है,उस पर भविष्य निरभर करता हैं” महात्मा गांधी जी की कहीं हुई ये बात आपको अपना कल बनाने मे लगा देता हैं.
पर आपको सहि लगता कि जो बातें कहीं गई इन दिनो हमारे परधान मंत्री जी के द्वारा किसी का कल बनाने मे काम आएगा??बेशक आएगा पर आज कि मजबुरी,आज की लगी भूख,आज की बेबसी, आज की लगी पैरों पर चोट क्या कल ठीक करदेगा?? नहीं !! जब भूख लगे तब ही खाना खाया जाता हैं, ऊसके बाद तो उनका कोई मोल नहीं. ६० दिन होने को आऐगा ईस महामारी मे बंद हुए, पर जो बात हमें सुनाई दे रही या समाचार मे दीखाई जा रही उसे देखकर दिल सिफ्र रोता है, हम कुछ नहीं कर सकते. देश भर मे लाखों मजदूर खाने के अभाव मे एक राज्य से दूसरे राज्य मे जा रहे. अपने घर पँंदल ही जा रहे. ईतनी गृम मे बाहर मिलो दूर चलना एक पहाड़ को काटने जैसा हैं. चलते चलते किसी को टृन मारती हैं तो कभी बस. आखिर कब तक??क्या घर के बाहर दिया जला कर ,हम तुम्हारे साथ हैं कहने से हो जाऐगा सब ठीक?? सिफ्र सवाल ही हैं जवाब होता तो अब तक कुछ ठीक होता. हाल मे देखा गया मजदूर संघ अपने घर जाने के दौरान मृत जानवर को कच्चा खाने पर मजबूर थे मजदूर. ” और हम कहा 20 लाख करोड़ रुपए की आंँरधिक पैकेज की बात कर रहे.
मजदूर जब किसी राज्य के कंपनी को संभाल सकता हैं, तो क्या ऊनका कोई हक नहीं. ना किसी का साथ और ना रहा विश्वास. अब शायद हि वापसी करेंगे. ईनकी आंखों से जब बेबस की आंसू निकलने लगे तो भी कुछ ना हुआ.
मुझे भली भाती ईस बात का अंदाजा हैं की देश को ईस समय संभालने मे मुश्किलें आ रही पर झूठे दिलासा देना भी सही नहीं.
कोई भी अपने खुशी से नहीं पैदल चल रहा, बस भूख हैं जो बीमारियों से भी खतरनाक हैं. बस सोचना यह है कि अगर ऐ वापस आऐंगे ही नहीं तो क्या होगा? क्या सच मे कीमत नहीं गरीब की? देखा जाऐं तो नहीं. हा तुम गरीब हो और भुखे हीं मर जाओगे.
सरकार “एक राशन एक काड” द्वारा राशन का ईतंजाम की हैं पर जब घर ही नहीं तब राशन का क्या काम??प़ैसे देने की भी बात हुई तो भिर ये क्यों रो रहे.
समावेश
अब तो सब रास्तों पर निकल गए तो हर ऐक राज्य के द्वारा ऊनको मदद दीलाई जाऐ. बसों की संख्या बढाई जाऐ.
देश को संभाला मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं.