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पीरियड : बंद कमरे में होने वाली युवाओं की बातचीत

पीरियड के बारे में अक्सर हम लड़कियों के अनुभव जानते हैं उनकी जागरूकता का आंकलन करते हैं लेकिन इस बारे में लड़कों को कितना कुछ पता है यह जानने की कोशिश मैंने पिछले दिनों की | पीरियड पर जारी फिल्मो और चर्चाओं के बावजूद कितना कुछ आज के युवा जान पा रहे हैं , क्या वे अपनी धारणाएं बदल पा रहे हैं यह इस बातचीत से पता चलता है |

मेरे द्वारा जिन तीन लोगों का इंटरव्यू किया गया उनमे 16 वर्षीय  रोहन कुंडे , अर्जुन भास्कर 25 वर्ष और राजकुमार हैं |  भोपाल नगर निगम अंतर्गत वार्ड 50 स्थित पीसी नगर स्लम में रहने वाला रोहन 11 वीं क्लास का स्टूडेंट  है | जबकि अर्जुन भास्कर बी ए सेकण्ड ईयर स्टूडेंट है साथ ही एक प्रायवेट स्कूल में टीचिंग कार्य से जुड़े हैं | सबसे पहले मैं इन दोनों की बात करूंगा | पीरियड के बारे में जागरूकता का आंकलन करने के लिए मैंने यह सवाल किया कि वे पीरियड के बारे में क्या जानते हैं ? इसकी जानकारी कैसे हुई ?

रोहन के शब्दों में यह लड़कियों को होने वाली समस्या है जिसमे खराब खून निकलता है | यह 16 साल से शुरू होकर माँ बनने तक होता  रहता  है | यह शरीर में हारमोंस बदलने के कारण होता है जिससे शरीर में बदलाव आते हैं  | उसने अपने दोस्तों से सुना है कि पीरियड में रिलेशन बनाने से प्रेग्नेंट हो जाते हैं | रोहन को पीरियड की जानकारी TV में दिखाए जाने वाले विसपर जैसे पेड के प्रचार से हुई है | रोहन के परिवार में माँ और बड़ी बहन भी है जिन्हें भी पीरियड होता है लेकिन कभी इस बारे में खुलकर बात नहीं कि क्योंकि उसके अनुसार यह लड़कियों की प्रॉब्लम है | और प्रायवेट पार्ट से जुड़े होने के कारण कोई इसकी चर्चा नहीं करता |

अर्जुन भास्कर के अनुसार इसे गाँव में माहवारी के नाम से जानते हैं कुछ लोग इसे मासिक चक्र, मासिक धर्म  या पीरियड कहते हैं | यह  12 साल से शुरू होकर 50 साल तक की महिलाओं को प्रति माह होने वाली शारीरिक क्रिया है | इसमें गन्दा खून 6 -7 दिन बाहर निकलता है कभी कभी सफ़ेद पानी या धात भी जाता है जिससे सुरक्षा के लिए पेड या सूती कपड़ा लगाते हैं | महिला पुरुष के अंडाणु मिलने से बच्चा बनता है और जब अंडाणु नहीं मिल पाते तब पीरियड होता है | इस  बारे में उसने यूट्यूब में  मूवी भी देखि है | लेकिन इन्टरनेट में  सही विडियो को कोर्स में पढ़े हुए बातों से मिलाकर देखना पड़ता है क्योंकि ज्यादातर गलत जानकारी भी होती है | 

पीरियड रुकना मतलब प्रेग्नेंट और बाँझपन 

यदि पीरियड रुक जाता है तो प्रेग्नेंट होने का खतरा होता है इसलिए आजकल लोग कुँवारी लड़कियों में  मासिक धर्म में आने वाली रुकावट को प्रेग्नेंट या बाँझपन होने की शंका से भी देखते हैं इस बारे में अक्सर चुप्पी साध लेते है | यदि किसी बातचीत में इस तरह की बातचीत किसी की बहन के बारे में लड़कों के बीच निकल आयी तो लड़ाई झगडे और गाली गलौज की नौबत आ जाती है | अर्जुन ने यह तो सुना है कि पीरियड चक्र में कई बार बदलाव होता है फिर भी लड़कियों के लिए यह समय तनाव वाला होता है | गाँव में किसी लड़की का पीरियड नहीं आना और अधिक सामाजिक चिंता का कारण भी बन जाता है और अक्सर लड़कियों की झाड फूक करवाई जाती है | इस समस्या के निदान के बारे में भी उन्हें कुछ पता नहीं है | रोहन को पीरियड की जानकारी 10  th क्लास में पड़ते हुए हुई जब किसी पाठ में लड़का लड़की की शरीरिक संरचना में मासिक चक्र की बात हुई थी लेकिन अच्छे से उस बारे में बताया नहीं गया | तब से उसके दिमाग में यह बात है लेकिन घर और दोस्तों सहित स्कूल में भी लड़कों के बीच यह जानकारी नहीं देते क्योंकि इसे लड़कियों का टोपिक मानते  हैं |

अपने घर पर भी उसने देखा है कि माहवारी वाली महिलाएं , लडकियां कपडे उपयोग करती हैं लेकिन अब वे पेड उपयोग करने लगी हैं | अर्जुन ने खुद भी एकाध बार पैड लाकर अपनी सिस्टर को दिया है जिसे कभी उसने जाहिर नहीं किया पता नहीं लोग क्या सोचेंगे | उनका मानना है कि पीरियड के बारे में लड़कों से कहीं बात नहीं होती ना ही लड़कों को जानकारी दी जाती है क्योंकि सभी सोचते हैं यह लड़कियों , महिलाओं का निजी मामला है | सिर्फ विज्ञान पड़ने वाले ही इसे ठीक से जान पाते हैं | इस तरह अर्जुन जैसे युवाओं की जानकारी इन्टरनेट और दोस्तों से प्राप्त ज्ञान तथा घर के कुछ अनुभावों से प्रभावित है | जानकारी का यह स्तर आधा अधूरा और सही गलत के बीच खडा दिखाई देता है जहां जानकारी के लिए सही माध्यम का अभाव दिखाई देता है | अर्जुन के अनुसार कई लोग ऐसा मानते हैं कि आजकल के लड़कों को सब पता है लेकिन हमें बहुत कुछ इस बारे में पता नहीं होता है |

रोहन बताते हैं कि एक बार उसके स्कूल में मैडम ने पीरियड पर क्लास भी ली थी लेकिन तब सिर्फ लड़कियों को ही उस क्लास में शामिल किया गया था | बाद में लड़कों और मेरे दोस्तों के बीच इस बारे में कुछ हंसी मजाक चलती रही कि क्या तु लड़की है जो तुझे ये सब जानना है |  रोहन ने बताया कि वह कभी इस बारे में ठीक से जान नहीं सका क्योंकि उसके दोस्त मजाक उड़ाने लगते हैं और कोई अपने घर की बात शेयर नहीं करना चाहता | उसके अनुसार  बस्ती में आगंवाडी और स्कूल में लड़कियों को पीरियड के बारे में बताया जाता है लेकिन लड़कों के लिए यह सब बात कोई नहीं करता | इस तरह रोहन जैसे किशोरों के लिए यह उत्सुकता का विषय है जिस बारे में वे जागरूकता के बेसिक स्टार पर खड़े दिखाई देते हैं |

पीरियड की जानकारी पर लड़कों के बीच खुसर पुसर

अर्जुन भास्कर 8 th में  पढने के दौरान पहली बार पीरियड और पेड के बारे में परिचित हुए | एक दिन उनकी क्लास में लड़कियों की कोई ट्रेनिंग हुई जिसके बाद उनकी बहन को भी पेड मिले तब उसके मन में उत्सुकता हुई कि यह क्या चीज है और घर आते ही उसने बहन के बैग से पेड निकालकर चुपचाप देखा और धीरे से रख दिया | इस के बाद दोस्तों से चर्चा में किसी ने बताया कि लड़कियों के निजी अंग से कुछ चिपचिपा द्रव्य निकलता है जिसके लिए पेड लगाते हैं | तब अर्जुन के मन में कई सवाल उभरे कि आखिर वह क्या होता होगा ? बाद में जब जाना कि इसमें बल्ड भी निकलता है तब सोचता रहा कि क्या इसमें दर्द और कमजोरी नहीं होती होगी | शुरुआत में अर्जुन के मन में पीरियड को लेकर कई सवाल चलते रहे लेकिन किससे सही जानकारी ले  यह सोचता रहा | अभी कुछ वर्ष से उसकी एक लड़की फेसबुक फ्रेंड है जिसके साथ  इन मुद्दों पर कुछ बात होती है | ऐसे ही कई साल पहले वह खाना खाकर आंगन में सूख रहे कपडे से मुह पोछने जा रहा था तब उसकी माँ ने उसे रोकते हुए कहा कि इसे मत छूना यह महिना वाला कपड़ा है | तब मैंने उनकी बात तो मान ली लेकिन ठीक से रोकने का कारण समझ नहीं सका | अब मुझे समझ आता है कि मेरी माँ मासिक धर्म के समय कपडे का उपयोग करती है |

19 वर्षीय राजकुमार जो कोलार में रहते हैं उनके अनुसार महिलाओं के लिए चल रहे कार्यक्रमों की वजह से समाज और लोगों की सोच में बदलाव आया है। जिसमे सबसे ज़्यादा युवाओं को प्रभावित फिल्म “पैडमेन” ने किया। लोगों की सोच में बदलाव आया है अब हम लोग भी पेड लेकर आ जाते हैं | फिर भी कुछ लड़के इस बारे में बात करते हैं तो मजाक उड़ाते हैं और सोचते हैं की इसका किसी लड़की से कोई चक्कर होगा | पता नहीं किसके लिए पैड ले जा रहा है इसलिए यह भी रुकावट है लोगों को जागरूक होने में |

इस बातचीत में अपने अनुभवों को युवा किन शब्दों के जरिये बताएं इसे लेकर दिक्कत और संकोच महसूस हुआ | इस मसले पर युवाओं के बीच फूहड़ तरीके से या तो बात होती है या फिर विज्ञान के पाठ्यक्रम की भाषा में जानकारी मिलती है इसलिए बातचीत की सरल भाषा क्या हो इसे लेकर असहजता बनी रही | (फोटो गूगल साभार )

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