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‘प्रवासी’ मजदूर

कोरोना से लड़ाई, जिसमें पूरी दुनिया को एक हो के लड़ने कि जरूरत थी । वहीं भारत देश के अंदर 29 देश निकल कर सामने आए। अपने ही देश में लोग ‘प्रवासी’ हो गयें, अचानक ऐसा माहौल बना दिया गया कि अपने गृह राज्य में जाना ही एकमात्र उपाय है।
राजनीति का नशा ही ऐसा है, अच्छे अच्छों को जीवनपर्यन्त होश में नहीं आने देता है। इस कोरोना दैत्य के खिलाफ हमारा सबसे बड़ा हथियार लॉकडाउन को विफल करने में शायद ही कोई राजनीतिक दल पीछे रहा। कोटा से छात्र बुला लो, उनको मकानमालिक परेशान कर रहे हैं, मजदूरों का दिल्ली, मुंबई और गुज़रात में काम बन्द है, उन्हें घर बुला लो, यहीं उनको qurantine सेंटर में खिलाएंगे।
जिन छात्रों से कोटा ‘कोटा’ बना है, जिन मजदूरों के बिना दिल्ली, मुंबई और गुजरात के कल कारखाने रुक सकते हैं, उन छात्रों या मजदूरों को वहां खाना और सुरक्षा नहीं मिल सकता है। ये सब हो सकता था, बल्कि आवागमन और qurantine में जो खर्च लगा उतने से कम में ही हो सकता था। लेकिन राजनीतिक स्वार्थ का कोई सानी नहीं है ।
भारत का दुर्भाग्य है कि सब राज्य में एक ही दल की सरकार नहीं है, क्योंकि अलग अलग होने पर सबको एक दूसरे सरकार को नीचे दिखाना है।
यह दुर्लभ समय था,कि नेतागण अपनी राजनीतिक जीवन को सार्थक कर सकते थें। इस बात कि व्यवस्था होती कि जो जहाँ है, वहीं रहे और उसे कोई दिक्कत भी नहीं हो। अगर ऐसा होता तो लोग पैनिक न होते और पैदल न भाग के घर पहुँचने से पहले ही दम नहीं तोड़ते। इस पूरे मामले पर केंद्रीय गृह मंत्रालय का नियंत्रण भी सोंच से परे रहा है। अगर राज्य सरकारों में सामंजस्यता नहीं हो पाई, तो गृह मंत्रालय की क्या भूमिका रही।
ख़ैर भला हो, उन front liners का जो हर रोज़ अपने जान की बाजी लगा कर अपने कर्तव्य पथ पर अडिग हैं। देश को आप ही बचा रहे हैं । ये आर्टिकल लिखने से पहले एक न्यूज़ आया था, कि पिछले 24 घंटे में मिले 49 पॉजिटिव मरीजों में 45 ‘प्रवासी’ मजदूर हैं।

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