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महाभारत की आज के दौर में प्रासंगिकता

वैश्विक महामारी कोरोना से जूझते हुए समय में जब सम्पूर्ण विश्व भारत समेत लॉकडाउन के द्वारा इससे लड़ने का प्रयास कर रहा है , वहाँ तमाम संघर्षो , कठिनाइयों वो चुनौती से भरे समय में जब भारत देश के सुचना प्रसारण मंत्रालय ने ऋषि वेद व्यास द्वारा रचित ,बी.र चोपड़ा द्वारा 1980 के दशक में टेलीविज़न के परदे में निर्मित महाभारत को  दिखने का निर्णय लिया तब कुछ लोगो ने इसकी आलोचना करते हुए देश के समक्ष मौजूद अन्य समस्याओ पर सरकार को ध्यान देने की नसीहत दी  । ऋषि वेद व्यास द्वारा लिखित इस महाकाव्य का 94 एपिसोड में नाटकीय रूपांतरण कर इसे आम जनमानस के सामने टेलीविज़न स्क्रीन पर दिखया गया है । आज के युग में जहाँ मानव जाती के समक्ष केवल चुनौतियों का अम्बार है और समूचा विश्व धर्म-अधर्म , न्याय-अन्याय , कर्म-कर्तव्य के बीच संघर्ष कर रहा है , तब महाभारत की प्रासंगिता त्रेता युग से भी अधिक आज के कलयुग में प्रतीत होती है  । महा काव्य महाभारत कलयुग में और प्रासंगिक इसीलिए भी हो जाता है क्योंकि आज के इस दौर में गंगा पुत्र देव-व्रत बहुत कम है जिनके लिए उनकी निष्ठा और उनका वचन सर्वोप्रिय हो , यह ग्रन्थ आज और भी प्रासंगिक इसीलिए हो जाता है क्योंकि आज के इस दौर में उस समय के राजाओ के समान आज के नेताओ व् सत्ता में बैठे शाशको के पास विधुर जैसा मंत्री नहीं है जो राजा को समय-समय पर कड़वे सत्य बोल उन्हें प्रजा और राष्ट्रहित के प्रति उनके कर्तव्यों की याद दिलाते रहे और एक कटु वास्तविकता यह भी है की आज के दौर में बहुत कम ही पाण्डु पुत्र है जो अनेक अन्यायों के सहने के पश्चात भी युद्ध को अपनी तूणीर का अंतिम बन माने और संधि के तमाम मार्ग बंद होने के बाद ही शस्त्र उठाये । महाभारत का यह ग्रन्थ रिश्तो के तमाम संबंधो को कोई न कोई सीख अवश्य देता है,  समाज को चलाने वालो को प्रेरणा देता है। यह ग्रन्थ अपने कार्य को करने में संकोच करते हुए मनुष्य को ,ठीक उसी भांति जैसे श्री कृष्ण ने रणभूमि में अपने कर्तव्य पथ से विहीन होते अर्जुन को उपदेश दिया , उन्हें भी गीता के रूप को ज्ञान का उपदेश देता है । राष्ट्र की महत्ता जो आज के दौर में समय समय पर विवाद का विषय बनती रहा है यह ग्रन्थ उसे भी संबोधित करते हुए कहता है , राष्ट्र किसी राजा की महत्वकांशा का प्रतिक नहीं होना चाहिए , राष्ट्र किसी शाशक की जागीर नहीं है की उसे वो अपनी राजनीती के चौसर पर प्यादो की तरह चल सके , अपितु मातृभूमि व् राष्ट्र ही सर्वश्रेष्ठ और सर्वोप्रिय है और राजा वास्तविक रूप में राजा नहीं अपितु प्रजा का प्रतिनिधि है  । ऋषि व्यास का यह ग्रन्थ मानव को यह सीख देता है की वह आवेश में गंगा पुत्र की भांति कोई ऐसी प्रतिज्ञा न ले जो भविष्य में उसे धर्म और राष्ट्र से विमुख कर दे । आज के इस कलयुग में जहाँ धृतराष्ट्र जैसे लोग संख्या में अधिक है उनको यह ग्रन्थ चेतवानी देता है की वो जिस लालच, अति-महत्वकांशा व षड्यंत्र के भागीदार बने हुए है उस मार्ग का अंत केवल और केवल विनाश है। शकुनि, दुर्योधन और दूशाशन से भरा यह युग महाभारत से यह देख सकता है की वह जिस मार्ग पे हैं उसका अंत किसी कुरुक्षेत्र में उनकी मृत्यु से ही है । यह ग्रंथ आज के दौर में कर्ण से केवल उसके त्याग , दानवीरता और बलिदान को सीखने की प्रेरणा देता है , न की उसकी और दुर्योधन की मित्रता को सीखने की , क्युकी यदि आज के दौर भी कोई कर्ण किसी दुर्योधन के प्रति अपनी निष्ठा रखता है तोउसके भी जीवन रुपी कुरुक्षेत्र में पराजय का ही सामना करना पड़ेगा । धर्म की व्याख्या प्रत्येक मनुष्य के लिए भिन्न होती है और प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य अपने धर्म का पालन करना है यह सीख महाभारत देता है । धर्म की परिभाषा भिन्न हो सकती है परन्तु अधर्म की परिभाषा प्रत्येक समय ,काल, परिस्तिथि में एक ही हैं और अपने धर्म का पालन करते समय भी मनुष्य को इस बात को भली भांति सुनिश्चित करना चाहिए की उसके धर्म की व्याख्या कही किसी स्थान पर अधर्म से तो मेल नहीं खाती और यदि ऐसा होता है तोउसके अपने धर्म का भी त्याग करने में संकोच नहीं होना चाहिए । यह ग्रन्थ आज भी  पितृसत्तात्मकता युग में जी रहे लोगो को यह सीख देता है की जब-जब किसी घर, परिवार,सभा, समाज में द्रौपदी के भांति नारी का अपमान किया जायेगा तब तब इस कृत्य में शामिल दुर्योधन, दुशाशन ,शकुनि जैसे लोगो का ही केवल विनाश नहीं होगा अपितु सभा में मौन धारण कर नारी के इस अपमान पर कुछ न करने वालो का भी हश्र महाभारत के द्रोण, पितामह , धृतराष्ट्र , कृपाचार्य की तरह होगा । जब जब स्वार्थ में डूबा कोई व्यक्ति किसी लाक्षाग्रह का निर्माण करेगा उसमें कुछ जल कर खाक होगा तोकेवल निर्माण करने वाले का भविष्य , जब जब कपट से किसी के हक़ को छीना जायेगा तोछीनने वाले को किसी कुरुक्षेत्र में आना ही पड़ेगा अपनी मृत्यु के लिए । महाभारत किसी एक धर्म विशेष का काव्य नहीं है अपितु  यह मानवता का महाकाव्य है । यह संदेश है की जब कभी कोई पितामाह अपने धर्म की पूर्ति के लिए अधर्म के पक्ष में खड़े हो तब किसी  अर्जुन को  उन पर अस्त्र उठाने में संकोच नहीं करना चाहिए , जब कोई गुरु द्रोणाचार्य अधर्म के साथ खड़े हो तोकेवल उन्हें प्रणाम ही नहीं करना चाहिए अपितु ज़रूरत पड़ने पर अस्त्र-शस्त्र  भी उठाना पड़े तोउठा लेना चाहिए और यही सही मायने में गुरु की गुरु दक्षिणा होगी  । महाभारत भारतीय सभ्यता , संस्कृति का वह परिच है जो आज के इस दौर में विश्व के समक्ष मौजूद विभिन्न चुनौतियों के समाधान का मार्ग है , जो यह बतलाता है की युद्ध केवल और केवल अंतिम विकल्प है । जो यह सिखलाता है की शांति को संधि के मार्ग से निकालने का उस समय तक अनवरत प्रयास करना चाहिए जब तक उसके सभी द्वार न बंद हो जाये और एक बार यदि बंद हो जाये तोयुद्ध कुरुक्षेत्र की भांति होना चाहिए जिसमें अधर्म के साथ चाहे अपने सेज संबंधी भी क्यों न हो उनका सामना करने से पीछे नहीं हटना चाहिए । श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए अनेक उपदेशो में यह महा काव्य मानव जीवन के लिए दो श्लोको को मानवता की नीव मानते हुए कहता है की मनुष्य को अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करने का अधिकार है, लेकिन उसे कभी कर्म फल की इच्छा से कर्म नहीं करना चाहिए (कर्म फल देने का अधिकार सिर्फ ईश्वर को है)। और दूसरा और आज के युग के लिए सर्वाधिक प्रासंगिक जो श्री कृष्ण कहते है की “जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ”। इन्ही दोनों संदेशों को ऋषि व्यास महाभारत में “कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन । मां कर्मफलहेतुर्भू: मांते संङगोस्त्वकर्मणि” ।। तथा “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌ ॥” के तौर पर लिख कर जगत के कल्याण का मूल मन्त्र देते हुए कहाँ है की यह हर समय, काल परिस्तिथि युग में मानव और मनुष्यता के लिए मार्ग प्रदर्शित करता रहेगा ।

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