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मातृ दिवस

मां के आंचल में आई थी मैं किलकारी मार एक रौशनी बनकर,
सहकर उसने असीम प्रसव पीढ़ा, छिपाया अपने आंचल में मुझे सदैव हंस कर!

आज Mother’s Day पर लगता है उन सभी यादों को मुठ्ठी में बांध लूं और याद करुं वो पल खुशी के, नयी उमंगों के, मां के साथ खेले उन लुक्का-छुपियों के, सभी शैतानियों के, मां के निस्वार्थ प्रेम के और उन सभी पलों के जब मां रही निरंतर एक ढाल बनकर।

मंद-मंद मुस्कान लिए, ठहरे हुए, बस देखती रह जाती हूं हर बार उसको,
कभी मेघ सी बरसती वो,
कभी फूलों सी महकती वो,
कभी कोयल सी चहकती वो,
कभी पालने में झुलाती वो,
रोए जो हंसाती वो!

कभी बब्बा की डांट से बचाती,
कभी स्वयं ही फटकार लगाती ,
ठोकर जो लगती कभी तो संभालने भी वह आती।

जो लगता आकाश ऊंचा, तो भूमि दिखलाती वो,
पल-पल बदलती, कभी सवरती कभी बिगड़ती,
कभी ना थमती, निरंतर बढ़ती चलती।

अनेक रंग पिरोये जो साथ,
एक खूबसूरत चित्र में हमको ढालती जाती है जो,
मां ही है वो जिसने स्नेह वात्सल्य से जीवन ओतप्रोत कर, हमें जीना सिखाया है,
जटिल से जटिल परेशानियों का सामना कर जि़म्मेदार उसने मुझे बनाया है।

घुटनों से रेंगते रेंगते कब पैरों पर खड़ी हुई,
मां तेरी ममता की छांव में जाने कब मैं बड़ी हुई।
आज उस मां का कैसे धन्यवाद करुं जिसका ऋण इतना बड़ा है,
आधार तुम्हीं से, जीवन का सार तुम्हीं से,
मां मेरे कृत्यों का अभिप्राय तुम्हारे द्वारा दिए गए संस्कारों से जुड़ा है।

जब जब पाऊंगी खुद को विचलित, आंखें मूंदकर बस याद करुंगी,
मुझे पता है मां मैं तुम्हें ही पाऊंगी, मुझे पता है मां मैं तुम्हें ही पाऊंगी…

#Mother’sDay2020
#PoemForMaa

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