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मुर्दों का शहर

 

आज शाम मेरे गांव खूब चमक धमक है
क्योंकि बारात आने वाली है ,
वो देखो आ गई बारात

पर मुझे ये बारात नहीं शवयात्रा लग रहा था
चमचमाती कार में बैठा दूल्हा मुझे अर्थी पर लेटा हुआ लाश लग रहा था
और अर्थी को खूबसूरत फूलों से सजाया गया था ,
लोग फिल्मी गानों पर नाच रहे थे और मुझे ये राम नाम सत्य सुनाई दे रहा था,

कुछ दूल्हे के जिगरी दोस्त जमीन पर लेटकर नागिन नाच कर रहे थे
पर मुझे वे मित्रवियोग में तड़पते नजर आ रहे थे,

क्या ये मेरे नज़रों का धोखा था या मेरा माथा फिर गया था ,
क्योंकि शराब तो मैंने पिया नहीं था

मै सही था ये एक शवयात्रा ही था ,बस अंतर इतना की इसमें शव को दफनाया या जलाया नहीं जाता

हां क्योंकि दूल्हा तो एक लाश ही है उसका जमीर तो उसी दिन मर गया था जिस दिन उसने दहेज का मांग किया था ।
और आज सोने से सजा हुआ दुल्हन और पूरे घर का फर्नीचर ,कार,नकद और बारातियों का स्वागत ये सब के बाद आज उसका आत्मा भी मर गया होगा।

दूल्हे का मां बाप तो शायद इसके बचपन में ही मर गया था
जब उन्होंने इसके शादी के बदले दहेज का सोचा था।

वैसे आज एक लाश और थी
लड़की का बाप , वो भी तो मरा आज जब उसने अपना जमीन, खेत , वर्षों की जमापूंजी सब लगाकर दामाद के रूप में एक लाश का सौदा किया।

वैसे लड़की के बाप को मरना भी चाहिए था
क्योंकि वो दामाद के नाम पर दुधारू गाय चाहता था ।

सरकारी नौकरी ना हो तो क्या लड़का लायक नहीं होता ?
क्या शादी के बाद घर का सारा जिम्मा अकेला लड़का ही उठाएगा?
फिर लड़की को इतना पढ़ाया ही क्यों?

इतनी छोटी सी बात जिसको समझ नहीं आता वो तो लाश ही होगा न ।

कुछ दिनों में एक ओर मौत होने वाली है,
अबकी लाश बनेगी वो लड़की क्योंकि अब उसकी हर आशा ,अभिलाषा ,सपने सभी को कुचल दिया जाएगा और हमारा सभ्य समाज उसे स्त्री होने का मतलब समझाएगा ।
या हो सकता है नासमझ लड़की खाना पकाते हुए जल के मर जाए
क्या पता कुछ भी हो सकता है मां ने कुछ सिखाया भी के नहीं पता नहीं ।

सबसे भयावह दृश्य उन लाशों का था जो खुद को सभ्य समाज का हिस्सा बताते है और आज इस बारात का शोभा बढ़ा रहे थे ।

ये सभी मर चुके है और मर रहा है हर वो बच्चा जिसको घर में सरकारी नौकरी के लिए दबाव बनाया जा रहा है ।

मुझे इन मुर्दों के बीच अब डर सा लगने लगा है ,
पता नहीं कब कौन सा मुर्दा आकर काट ले और मै भी इनकी तरह एक जिंदा लाश बनकर रह जाऊं ।

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