महिलाओं में ‘पीरियड’ या ‘माहवारी’ की प्राकृतिक प्रक्रिया के सम्बन्ध में पुरुषों की समझ अक्सर आधी अधूरी ही रहती है। बाकी आधी समझ अवैज्ञानिक, पूर्वाग्रहों से ग्रसित और शंकाओं के बोझ से लदी होती है। ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर समझ किसी एक अवसर या घटना से नहीं बनती है। इसे ठीक से समझने के लिए क्रमबद्ध कई प्रयासों की आवश्यकता होती है। एक पुरुष के नाते इस सन्दर्भ में सही समझ विकसित करने में मुझे भी काफी समय और प्रयास लगे।
बात तकरीबन 17 साल पहले शुरू हुई। मैं एक छोटे कस्बे में पढ़ता था। अक्सर दोस्तों को किसी लड़की के बारे में कहता सुनता था कि वो ‘MC है क्या यार’। ऐसा वो तब कहते थे जब किसी लड़की से उनकी कोई अनबन होती या किसी प्रकार का झगड़ा हो जाता। हालाँकि ये शब्द सिर्फ लड़कों के बीच ही बोले जाते थे मगर ये लड़कियों के लिए एक गाली के रूप में इस्तेमाल होते थे। मुझे यह समझने में वक़्त लगा कि यहाँ MC का तात्पर्य Menstruation Cycle से था।
मतलब लड़के किताबों, टीवी या अन्य लड़कों से प्राप्त अपने आधे-अधूरे ज्ञान से यह निष्कर्ष निकालते थे कि यदि कोई लड़की ज्यादा उदास, झगड़ालू, गुस्सैल, शांत या खुश नज़र आ रही है तो वह पीरियड में है। उनके हिसाब से पीरियड में होना गन्दा है इसलिए उन्हें MC की गाली दी जा सकती है। पीरियड के सम्बन्ध में यह मेरा पहला अनुभव था।
इसके बाद अक्सर मैंने मंदिरों में ‘माहवारी में प्रवेश वर्जित’ जैसे निर्देश देखे। घर की महिलाएं इस दौरान खाना नहीं पकाती थीं मगर अभी भी मुझे पीरियड, पैड, माहवारी और MC जैसे शब्दों से आगे कोई ठोस समझ नहीं थी।
कुछ साल बाद, मैं NGO संचालन की एक सरकारी कार्यशाला में प्रतिभाग करने जयपुर शहर गया। वहां NRHM के साथियों ने बताया कि राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं माहवारी के दौरान पुराने कपड़ों में चूल्हे की राख बांधकर इस्तेमाल करती हैं। यदि कोई पढ़ी-लिखी लड़की ‘सेनेटरी पैड’ का इस्तेमाल करती भी है तो उसे घृणा की नज़रों से देखा जाता है। आज भी शहरों की बजाय गांवों में पैड के निस्तारण को लेकर बड़ी समस्या है। इस कार्यशाला में यह भी जाना कि इन स्वास्थ्य संस्थाओं ने पुराने कपडे, राख और मिट्टी के इस्तेमाल से महिलाओं के जननांगों में इन्फेक्शन के गंभीर मामले देखे हैं।
समय बीतता गया, अब तक मुझे शब्दों के साथ-साथ पीरियड की प्रक्रिया, रक्त एवं द्रव्य स्राव आदि के सम्बन्ध में भी कुछ-कुछ जानकारी होने लगी थी मगर अभी बहुत कुछ जानना बाकी था।
पीरियड की प्रक्रिया को समझने के बाद मैंने इसके वैज्ञानिक और सामाजिक पक्ष को समझना चाहा। इसके लिए इन्टरनेट पर कुछ आलेख पढ़े और महिला मित्रों से उनके अनुभवों को जाना। अंत में मैंने समझा कि –
- यह सभी महिलाओं में होने वाली एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है।
- महिलाओं के जननांगों की सफाई के लिए यह एक आवश्यक मासिक चक्र है।
- शरीर की प्रकृति के अनुसार यह प्रकिया सामान्य से तकलीफ़देह तक हो सकती है।
साथ ही यह भी महसूस किया कि –
- इस प्रक्रिया में शर्मिंदा या गन्दा होने जैसा कुछ नहीं है।
- इस दौरान हमें उनके साथ संवेदनशीलता के साथ पेश आना चाहिए।
- धार्मिक स्थलों में प्रवेश न करने, खाना न बनाने जैसे निर्देशों में कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है।
- हाँ, इस दौरान महिलाओं को उचित आराम एवं साफ़-सफाई की आवश्यकता होती है।
मैं मानता हूँ कि अभी मुझे और जानना शेष है मगर हम सभी को खुले मन से ‘माहवारी’ को स्वीकारना चाहिए। हम सभी के जन्म के पीछे इस प्रक्रिया का योगदान रहा है। अतः इसे महिलाओं से विभेदन या घृणा का हथियार नहीं बनाना चाहिए।