सुना है मैंने आज कल कि रेल चल पड़ी है,
कुछ इधर-उधर फंसे हुए लोगों को उनके घर से जोड़ने निकल पड़ी है |
पटरी पर बीछी रेल लाइन और उमीदों पर खड़ी चाइल्ड हेल्प लाइन ||
छूक-छूक कर रेल निकल पड़ी है |||
लोगों से भरे हुए रेल के डब्बे,
वही लाल-नीले रंगों को बिखेरते हुए आगे बढ़ती चल पड़ी है |
आई आवाज़… अगला स्टेशन,
वो लाल बत्ती देख पटरी भी सुस्ता पड़ी है |
कुछ लोग अपना झोला लेकर उतरते दिखाई पड़ रहे थे ||
तो वहीं कुछ लोग जेब टटोले पैसे निकाल कुछ खरीद खाने की सोच रहे थे |||
हुई हरी बत्ती, चल पड़ी रेल गाड़ी,
रेल की रफ्तार और बाल मजदूरों की गुहार |
झाड़ू लगा, रेल की फरशें साफ कर हाथ फैलाते बच्चे ||
नन्हें हाथ मांगते कुछ पैसे मगर झटक दिए जाते वो बच्चे |||
इतनी बेरुखी !
वही रफ्तार, वही स्टेशन, वही बदलती बत्तियाँ, मगर बच्चे अलग-अलग |||
देखा अब तक सब कुछ मगर समझ न पाया रत्ती भर,
डगमगाती रेल और डगमगाते ये नन्हें कदम |
आज़ाद भारत की बस यही है दास्तान ||
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