जो मेरे बचपन के दिन जिन दिनों में मैं खेलती थी कूदती थी और अपने मनचाहे कपड़े फ्रॉक सब पहनती थी फिर जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई और जब मैं 12 साल की हुई तब एक दिन खेलते खेलते मैंने देखा कि मेरे घुटनों से नीचे पैरों तक खून से लथपथ था मुझे समझ में ही नहीं आया यह क्या हो रहा है मेरे साथ मैं घबराई हुई डरी और सहमी हुई अपनी मां के पास के जब मैंने उनको दिखाया वह खींचते हुए मुझे घर के अंदर ले गए और बोला थी तूने बहुत अच्छा रखा है इसलिए तेरे साथ यह हुआ है मैं और डर गई कि मेरे साथ क्या क्या हो गया उसके बाद क्या मेरी मां ने मुझे कपड़ा दिया और बोला की इसको प्रयोग करियो और इसे अगले दिन धोकर सुखा कर दोबारा प्रयोग करना और मुझे बोला कि किसी को बताना नहीं कि तुम्हें महावारी आई है यहां एक शर्म होती है इसे छुपा कर रखना चाहिए
मैं 12 साल की मुझे समझ में ही नहीं आया कि मेरे साथ यहां क्या हो गया है दर्द से तड़पती और रोती मगर किसी को बताना पाती क्योंकि मेरी मां ने मुझे बोला था कि यहां एक शर्म है और इसे छुपा कर रखते हैं
वहां एक कपड़ा मैं पूरे दिन महावरी में लगा कर रखी उसके बाद जो तकलीफ और दर्द में सहते मेरी योनि में खुजली और लाल धब्बे बर्दाश्त करती थी और जब मैं स्कूल जाती थी उस समय भी चलते चलते कपड़े की वजह से मेरी जांगे छिल जाती और मैं फिर चल नहीं पाती मगर यहां एक शर्म है मुझे बताया गया इसीलिए मैं किसी से नहीं कह पाती महीनों के कई दिनों तक मेरी जांगे छिल्ली रहती जब तक वह थोड़ा सा ठीक हो पाता कि मुझे दोबारा माहवारी शुरू हो जाती यह तकलीफ मुझसे बर्दाश्त नहीं हो पाती
जब मैं बड़ी हुई तब समझ पाई कि महावरी में सफाई का कितना ध्यान रखने की जरूरत है ताकि हम यौन संक्रमण से बच सके और अपने आप को स्वस्थ रखें हमारे जीवन में बचपन से ही ऐसा कोई होना चाहिए जो कि हमारा महावारी को लेकर मनोबल बढ़ाएं और जागरूक करें यह एक शर्म नहीं है यह एक ऐसी चीज है जो कि हमारे संसार को बनाने में बहुत बड़ा योगदान देती है तो हर इंसान को जागरूक होने की जरूरत है साथ ही इस पर हर व्यक्ति पुरुष या महिला सभी को बात करने की जरूरत है फिर से बोलूंगी यह शर्म नहीं जागरूकता फैलाने की चीज है
धन्यवाद