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मैं मरकर भी न मर सका…..

 

Rishi Kapoor

याद करिए फिल्म D-Day का वह सीन जिसमें इरफान खान और ऋषि कपूर एकसाथ कार में हैं। ऋषि डॉन की भूमिका में थे और इरफान एक सीक्रेट एजेंट थे। ऋषि कपूर रास्ते में आदमी के बिकने की परिभाषा देकर इरफान को बरगलाने का प्रयास कर रहे हैं। इरफान झांसे में आ जाते हैं जब ऋषि कपूर परिवार से उनकी बात कराने को बोलते हैं। उसके बाद के सीन को याद करिए,जब इरफान जज्बाती होकर अर्जुन रामपाल को गोली मारकर खुद भी कार लेकर जाते समय बीच में उनकी भी मृत्यू हो जाती है। ठीक उसके बाद ऋषि कपूर की मौत हो जाती है। पिछले दो दिनों में जो देश ने देखा और सहा उसे इस फिल्म से जोड़ कर देखें। दोनों को एक सी बिमारी, ठीक होकर लौटे ही थे कि इस बीच दोबारा एडमिट होते हैं। दोनों का पता चलता है कि आईसीयू में हैं और जब देश रोज की सुबह उठकर टीवी खोलता है या सोशल मीडिया चलाता है तो पता चलता है कि अब यह सितारे हमारे बीच नहीं हैं। जीने की चाहत दोनों में थी और दोनों लड़े भी पर खुदा को कुछ और ही मंजूर था। देश अभी इरफान खान के निधन से उबरा भी नहीं था कि कपूर खानदान का बेबाक और हरफनमौला सितारा भी इस दुनिया को छोड़कर चला गया।

ऋषि कपूर को अगर याद करें तो एक 18 साल के एक ऐसे लड़के की इमेज बनती है जो देखने-सुनने में सुंदर और मुस्कुराता हुआ लगता है। सिल्वर स्क्रीन में जब अपने पिता के बचपन के रोल में आता है तो देखते ही लगता है, कपूर खानदान की विरासत को आगे ले जाने का जिम्मा बखूबी संभालेगा। उसके बाद आती है पिता राज कपूर निर्देशित बॉबी। इस फिल्म ने सफलता के नए आयाम लिखे थे। ‘हम-तुम एक कमरे में बन्द हों.’.. गाना शायद ही किसी के जुबान में न चढ़ा हो। ऋषि लीड रोल में थे और साथी कलाकार डिंपल भी सफलता के नए स्वाद चखना चाहती थीं। उसके बाद न जाने कितनी फिल्में आईं जिसमें चिंटू नाम से मशहूर ऋषि ने सफलता के नए आयाम लिखे। कुली, कभी-कभी, अमर-अकबर-एंथनी, प्रेम रोग, बोल राधा बोल,दामिनी, दीवाना, चांदनी,अग्निपथ,पटियाला हाउस, मुल्क, 102 नॉट आउट, आदि।

2 साल से ही करने लगे थे अभिनय

यह शायद ही किसी को मालूम होगा कि ऋषि कपूर की पहली फिल्म वैसे तो ‘मेरा नाम जोकर थी’ पर वे 2 साल की उम्र से ही अभिनय करने लगे थे। फिल्म थी राज कपूर अभिनीत ‘श्री 420’, राज कपूर और नरगिस लीड रोल में थे। ऋषि कपूर सेट पर काफी शैतानियां कर रहे थे। उन्हें बताया गया कि साथ में उनके भाई-बहन भी काम कर रहे हैं। वे राजी तो हुए मगर पानी के बौछारों से वे रोने लगे तभी नर्गिस ने उन्हें कहा कि अगर वह यह रोल अच्छे से करेंगे तो उन्हें एक चॉकलेट मिलेगी। बस फिर क्या था, ‘प्यार हुआ-इकरार हुआ’ गाने में नर्गिस और राज कपूर के अलावा ऋषि की भी एंट्री थी।

अपने को रोते हुए शीशे में देखते थे चिंटू

चिंटू आका ऋषि कपूर बचपन में बहुत शैतानियां करते थे। इसके लिए न जाने कितनी बार उनकी मां कृष्णा कपूर ने उन्हें डांट लगाई थी। ऋषि खुद कहते हैं कि उन्हें बचपन में बहुत मार पड़ती थी। मार के बाद वह कुछ रोचक किया करते थे। ऋषि मार पड़ने के बाद शीशे के सामने रोते और खुद को देखते कि मैं रोते हुए कैसे लगता हूं।

दोस्त अमिताभ के साथ यादगार फिल्में

बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ और चॉकलेटी ऋषि ने बहुत सी फिल्में साथ की थीं। जब बच्चन साहब को अपने प्रिय दोस्त के निधन की खबर जैसे ही मिली वे टूट गए। सोशल मीडिया में लिखा ऋषि चले गए…वह अभी गुजर गए…मैं टूट चुका हूं। दोनों की साथ की गई फिल्म कुली याद आती है, अमर-अकबर-एंथनी और कभी-कभी। किसी में बिछड़े भाई की तरह मिलते हैं तो कभी दोस्त, जब भी साथ आए कुछ बेहतर ही किया। हाल-फिलहाल की 102 नॉट आउट देखिए, एक बाप-बेटे की ऐसी केमेस्ट्री जो अपको गुदगुदाती है, रिश्ते का ताना-बाना बनाती है। दोनों उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं। एक पड़ाव पार कर चुका है और एक पहुंच चुका है मगर यह किसी को पता नहीं था कि अब ऋषि ऐसे हमें गुदगुदाने दोबारा नहीं आएंगे।

एक्टिंग के सिरमौर

जवानी के दिनों में जितने बेहतरीन रोल ऋषि कपूर ने किए, उससे भी चुनौती वाले रोल उम्र के दूसरे पड़ाव में निभाए। याद करने पर फिल्म ‘अग्निपथ’ आती है, ‘राउफ लाला’ का वो किरदार जो फिल्म के मेन विलेन ‘कांचा चीना(संजय दत्त)’ से भी टकरा जाता है। जिस्म फरोशी और गैरकानूनी धंधे करते हुए जो भाव ऋषि ने उतारे तो देखने वाले बस वाह करते गए। ‘मुल्क’ का वो बाप याद कीजिए जो मजबूर है एक कौम में जन्म लेकर। हर वक्त अपनी इमानदारी का सबूत दे रहा है, कहीं लोगों को तो कहीं कोर्ट में और जब बोलता है तो सामने वाला चुप, हॉल में सिर्फ तालियां। ऋषि के निभाए रोल उन्हें हमेशा से एक रोमांटिक हीरो के रूप में साबित करते हैं, जो हमेशा से एक खूबसूरत चेहरे के साथ आया और लोगों को दिवाना बना गया। कर्ज का वह गाना, ‘मेरे उमर के नौजवानों’ तो हर एक की जुबान में था।

दिली ख्वाहिश जो पूरी न हुई

ऋषि राय रखने में बड़े बेबाक थे। कभी बॉलीलवुड को लताड़ लगा देते थे तो कभी सोशल मीडिया पर भिड़ जाते थे पर जब भी बोला सटीक बोला। ऋषि तो यहां तक मानते थे कि फिल्म बॉबी के लिए उन्होंने अवार्ड खरीदा था। इसे जरूर लड़कपन की भूल मानते थे मगर इस बात को कभी छुपाया नहीं। इससे इतर उनकी एक दिली तम्मन्ना थी जो पूरी होना उनके लिए बेहद जरूरी थी। जैसा कि ज्ञात है कि ऋषि का खानदान पेशावर (पाकिस्तान) से विभाजन के बाद भारत आया था। वहां उनकी एक हवेली थी जो पुस्तैनी है, यह पाक के ‘कीसा ख्वानी’ बाजार में स्थित है जिसे म्यूजियम में कन्वर्ट करने पर विचार चल रहा है। ऋषि कपूर चाहते थे कि रनबीर के बच्चे और खुद रनबीर भी अपनी जड़ों को पहचानें और वहां जाएं। खुद उनका भी मन वहां जाकर इतिहास की यादों को ताजा करना था।

विगत कुछ वर्षों से कपूर खानदान में दुख का आगमन बना हुआ था। मशहूर अभिनेता शशि कपूर, ऋषि कपूर की बहन रितु नंदा और अब खुद ऋषि, जैसे किसी की नजर लग गई हो। बॉलीवुड के लिए तो यह महीना और मुख्यत: दो दिन काफी पीड़ादायक रहे। सिनेमा के इतिहास में इन दिनों को हमेशा से काले इतिहास के रूप में याद किया जाएगा। इरफान खान के आखिरी खत में वे किसी जिंदगीनुमा ट्रेन की बात कर रहे थे जिसमें उनकी अम्मी के पहले उतर जाने के बाद खुद वे भी उतर गए मगर यह राज रखा कि साथ में ऋषि कपूर भी सफर कर रहे थे, जो आज हमें सदा के लिए छोड़कर चले गए। सही कहा ऋषि कपूर ने कि ‘मैं मरकर भी नहीं मर सका….मैं जीकर भी नहीं जी सकूंगा।’

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