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सर्व धर्म समन्वय की कामना ठीक वैसे जैसे दूध में पानी मिलना: स्वामी राम शंकर डिजिटल बाबा

कई दिनों से बेचैन है मन सेकुलर होना सही है या सनातनी ही रहू वर्ष 2008 वैराग्य का जीवन में आगमन और मुमुक्षा का अनुभव हैं। वर्ष 2008 से वर्ष 2015 तक हम सनातन शास्त्र को जानने समझने हेतु गुरुकुल में रह कर हमने आचार्य मुख से वेदांत का श्रवण अध्ययन किया।पण्डित विद्वान के समान मुझे शास्त्र के श्लोक रटने में कोई रुचि नही थी मेरी तो केवल जीवन के मर्म और मक़सद को को समझने की चाह थी जिसके लिये मनोयोग से हमने अपना ध्यान अध्ययन में केंद्रित किया अध्ययन से हमें अत्यंत लाभ हुआ,आज मन के जिस धतातल पर मैं जीवन जी रहा हूँ उसकी कल्पना शायद ही कोई कर सकें। मन जब अन्तर्मुखी होता है तो संसार में होने वाले शोर से नहीं भटकता खैर जो पढ़ना था पढ़ लिया हासिल ज्ञान आत्मसात हो जाये इसी अभ्यास में मन तन्मय है। सब कुछ ठीक चल रहा हैं पर पिछले कुछ सप्ताह से मन मे द्वंद उत्तपन्न हो गया है ,
मन बार बार यही सोच रहा है कि मुक्ति तो हासिल हो जायेगी पर जीवन में कुछ छूट रहा है वो हैं वो ये कि जिस धर्म मे जन्म हुआ उसकी सेवा, मेरे नज़र में धर्म सेवा का मतलब ये नही है कि किसी अन्य को हम तुच्छ निम्न सिद्ध करे, इन बातो पर ध्यान देकर हम अपना वक्त बर्बाद नही करना चाहते मैं इस बात पर ध्यान केंद्रित किया हूँ कि हमारे धर्म शास्त्र में निहित जीवन मूल्य को बात नही ये ईश्वर का निर्णय हैं उनकी अपार कृपा का परिणाम है कि सही समय पर प्रभु आध्यात्म मार्ग पर हमें अग्रसर किये। मेरे पिता जी कर्मकांड के आचार्य है, अनेक गुरुकल में हम अध्ययन किये पर कही ये नही थोपा गया की कि तुम किसी अन्य मजहब के लोगो को अपना दुश्मन समझो हमें तो ये समझाया गया कि संसार के समस्त नाम रूपों में हमारा राम ही समाया हैं इस लिये प्रत्येक जीव से प्रेम करो हमने यही सीखा कि सनातन धर्म मे हमारे अलावा कोई दूसरा है ही नही, ईशा वास्यमिदम सर्वम … मन्दिर हो मस्जिद हो या फिर कोई गिरिजाघर हो हम तो सभी में अपने ईश्वर को ही देखते हैं फिर किससे लड़े हम सिय राम मय सब जग जानी ये भाव हमारे अंतस्तल में बसा हुआ है अफ़सोस इस बात का हैं कि इन बातो के साथ हमें ये भी समझा सीखा दिया गया होता कि मुक्ति भक्ति के साथ धर्म संस्कृति की रक्षा भी जीवन के प्राथमिक उद्देश्य में शमिल रखें हम पर गुरुकल से बाहर निकलने के बाद… वक्त और हालात ने मेरे समझ को बदल दिया, मेरे दिलो दिमाग़ पर मेरा ज्ञान इतना हावी हो गया था कि हमें स्मरण ही नहीं रहा कि ज्ञान होने से व्यवहारिक जगत नहीं बदलता, व्यवहार का अपना धरातल हैं।इसका आशय ये नही कि हम किसी मजहब के अनुयायी को मारने के लिए आतुर है ! नही। हम बस ये कह रहे है कि आप जब मुसलमान बन कर व्यवहार करोगे तब हम भी सनातनी हिन्दू बन कर ही जबाब देगे। फिर इंसानियत को पीछे छोड़ना पड़े तो हमे मंजूर हैं। मुसलमान लोगो ये असम्भव हैं कि जिस गाय को हम माँ के समान पूजते है उस गो वंश का वध कर यदि तुम उन्हें खा रहे हो तो तुम कभी मेरे भाई नही हो सकते। बचपन मे सिखाया गया था समझाया गया था हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब आपस मे भाई – भाई।अबोध उम्र में ये बाते अमल योग्य होती हैं उस उम्र में हम सचमुच केवल इंसान रहते है इस वजह से भाई – भाई का भाव सम्भव था पर बढ़ते उम्र में जब तुम्हारे लोगो ने तुम्हारे मन में क्रूर मजहबी वायरस इंस्टॉल कर दिया तब भाई नहीं रहें। ध्यान रहे ये कटु सत्य उन लोगो के प्रति है जो मजहबी वायरस से युक्त है. यदि तुम आज भी बचपन की तरह निश्च्छल हो तो तुम भाई हो।पर अफसोस तुम्हे तुम्हारे समाज ने बदल दिया है तुम पहले जैसे नही रहे अब, हम में और तुम में ज़मीन आसमान का फ़र्क हैं तुम्हारा मजहब तो यही सिखाता है न कि इस्लाम को जो नहीं मानते वो काफ़िर हैं उनका कत्ल कर दो या उन्हें अपनी ताकत से मजबूर मुसलमान बना दो इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं पाकिस्तान में हिन्दू लोगो की दुर्दशा केवल वही नहीं भारतवर्ष में जहा मुसलमान बाहुल्य इलाका है वहां हिन्दू परिवार के सदस्यों पर अत्याचार के अनगिनत उदहारण देखने को प्राप्त होता है पर हम आज भी तुम्हे वो सम्मान दिये हैं जिसके तुम हक़दार नहीं।सोशल मीडिया में आजकल सर्वधर्म समन्वयक के रूप में कुछ कथा वाचक बेहद चर्चित हो रहे ये इतने बड़े मक्कार धोखेबाज हैं कि अपने कमिटमेंट का ही ध्यान नहीं रखतें उस ज़ाहिल दुकानदार के जैसे हैं जो मूल्य असली वस्तु का लेता हैं और सामान देते समय कुछ भी पकड़ा देता हैं अपने सर्वधर्म समन्वयरूपी वैचारिक रैपर में लपेटकर। सनातन हिन्दू परिवार में जन्म लेकर हिन्दू सनातन शास्त्र का आचार्य कथा वाचक हो कर व्यासपीठ से अन्य मजहब की बेवजह महिमा गाना ये कालनेमि के सामान जो कपट कर रहे है तुम्हारा सचमुच अत्यंत निम्न कृत्य है।आप जानते हैं इसका वजह क्या हैं पहला कारण है कि इन कथा वाचको का कथा वाचन शास्र सेवा, धर्म सेवा नही बल्कि कथा वचन इनके लिये धन उपार्जन का साधन मात्र है, इनकी मार्केटिंग टीम स्ट्रेटजी बनाती है कि किस प्रकार धर्म के धंधे में टीके रहना आसान होगा, चर्चा के केंद्र में स्थिर रहना सहज होगा और दूसरा कारण है कि सर्वधर्म समन्वय का लबादा ओढ़ कर दुनिया के समक्ष खुद को महान सिद्ध करने का अथक प्रयास, इसी खूबी के कारण ही तो दुनियां भर के लोग इन्हें सुनेंगे। सच कह रहा हूँ कल तक मैं स्वामी राम शंकर भी यही सोचता था कि सर्वधर्म समन्वय वाली छवि उत्तम हैं पर ये मेरा भ्रम था।अच्छी बात ये है कि मेरे भीतर का सर्वधर्म समन्वय वाला विचार केवल मेरे सपने में ही पल रहा था। सम्भव हैं आने वाले कल में हम भी भावातिरेक में आकर अल्ला हूँ ,मौला … व्यास पीठ से गा कर सबको रिझाने का निरर्थक प्रयास करता पर सोशल मीडिया के सजग लोगो को साधुवाद कि आपके जागरूक होने से मैं सतर्क हो गया, मुझे सम्हल कर जीवन जीने का अवसर मिल गया। मैं मानता हूँ हर चीज का अपना एक ख़ास स्थान होता हैं हमने देखा हैं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जन को जिन्हे हर दर्शन की बहुत अच्छी जानकारी होती है आप जो पढ़ना चाहे वो आपको पढ़ा देंगे पर उस प्रोफेसर से पूछिये आप किस दर्शन के अनुयायी है उनका एक ही उत्तर रहेगा मैं अनुयायी नहीं हूँ पढ़ाना मेरा प्रोफेशन है इसलिये पहले खुद मेहनत कर पढ़ाई किया और अब पढ़ता हूँ मैं भगवान् के कथाप्रेमी जन से यही कहूंगा कि जिस वक्ता की स्वयं निष्ठा न हो ऐसे लोगो को मत सुनिये। व्यासपीठ से उसी वक्ता को सुनिये जिसके जीवन में सरलता निश्छलता निष्ठां दिखाई पड़े। देखिये एक संगीतकार कलाकार के रूप में आप जो चाहे गाते रहे मुझे कोई आपत्ति नही है पर व्यासपीठ पर विराजमान हो कर मनमुखी बकैती हमें हजम नहीं होगी कथा वाचक व्यासपीठ पर विराजमान हो कर राम कृष्ण की बृहद कथा मे कुरान और बाइबिल की महिमा मण्डितकरें ये कार्य उस कामी मनुष्य के समान है जो अपने जीवन साथी में निष्ठ न रह कर अन्य के पीछे मंडराता रहता या रहती हैं।
ऐसे लोगो को लोक में चरित्रहीन कहा जाता हैं। व्यासपीठ से केवल शस्त्रनिहित विषय का ही विस्तार करे।फ़िल्मी गीत गज़ल पेश कर कलाकार मत बने शास्त्र का स्वयं इतना बृहद स्वरूप हैं कि ईमानदारी से पढ़ कर पढ़ाये तो जीवन कम पड़ जाये। मेरा मानना हैं कि ज्ञानी सिद्ध संत, धर्म, मजहब से परे होता है लेकिन सिद्ध नही हो तो सिद्ध बनने का ढोंग न करो धंधा करने वाला सिद्ध नही हो सकता और हा पी. आर. टीम के दम पर सोशल मीडिया में सिद्ध महान हो जाओगे पर जब-जब खुद से मिलोगे बाते करोगे तब ख़ुद की नज़रों में खुद को गिरा पाओगे।और हा महोदय कथा वाचक / वाचिका जन इसबात को ठीक से जान लीजिये की अब आप ऐसा नहीं कर सकते कि मन के हिसाब से व्यासपीठ पर बैठ कर मन मुखी कुछ भी बक बक कर दोगे और बच जाओगे ये असम्भव है श्रोता समझदार हो गये हैं पहले के जैसे स्थिती नहीं है अब इसलिये कथावाचक जन कान खोल कर सुन लो तैयारी कर के अच्छे से कथा किया कीजिये विषय के प्रति कमिटेड रहिये, कथा में कथा की जगह अनर्गल इधर उधर की बात करने से खुद को नही रोके तो ये नई पीढ़ी जहा पायेगी वही घेर के सवाल करेगी और आपको लगता है चुप रह कर बच जाओगे तो देख लो बड़े बड़े लोग की छवि की ऐसी तैसी होंनी शुरू हो गयी है सावधान हो कर विषय पर एकाग्रचित हो कर कथा किया कीजिये।चलते चलते एक बात कहना चाहता हूँ मैं मूल रूप से साधक हूँ परम तत्व का साक्षात्कार करने हेतु साधनारत हूँ जब कभी कथा करने के लियेआमंत्रण मिलता है तब श्रीरामकथा सुनाता हूँ किसी प्रकार के बजट की बात नहीं करता, जिसकी जितनी सामर्थ्य होती उसी में कथा का आयोजन हो यही मेरी प्राथमिकता है। मेरे पास न कोई जमीन है न कोई ट्रस्ट है न ही बैंक में जमा धन है और इन बातों को जीवन भर मेंटेन करता रहूंगा।पहले के सामान आगे भी मेरे पास जब धन होगा तब जरूरतमंद लोगो को कैश के रूप में सहयोग देता रहुंगा।कल तक मैं भी सर्व धर्म समन्वय को सही समझता था पर अब समझ में आ गया ये असंभव हैं, सर्व धर्म समन्वय की बात करने वाला सबसे बड़ा ढोंगी है ,जब एक ही माँ जे जन्मा एक ही परिवार संस्कृति में पला बढ़ा सगा भाई मेरे साथ हम उसके साथ जब समन्वय नहीं बना पाते तब दो अलग अलग सिद्धांत के लोगो में समन्वय की बात करना सबसे बड़ा छल है ठीक उसी प्रकार जैसे दूध
और जल का आपस में मिलना।आख़िरी में अब तक हमने जो कुछ भी एक्टिविटी किया सम्भव है मेरे किसी एक्टिविटी से आप मुझे कटघरेमें खड़ा कर दे पर अब ऐसा कोई व्यवहार वर्ताव नहीं करूँगा जिससे आपको हमसे कोई शिकायत हो ..ॐ शांती … स्वामी राम शंकर।

 

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