Site icon Youth Ki Awaaz

हम भी कोरोना वॉरियर……

हम भी हैं कोरोना वॉरियर्स

 

एक ओर जब पूरी मानव जाति कोरोना से जंग कर रही है, तब पूरे विश्व में करीब 3 लाख से भी अधिक लोग इसी वायरस के चलते मौत की नींद सो चुके हैं। आज लगभग 24443597 लोग संक्रमित हैं और 302452 लोगों की मौत हो चुकी है। रही बात सिर्फ अकेले भारत की तो यहां 82000 मरीज़ हैं जबकि 2649 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। काबिले तारीफ बात यह है कि इस मुश्किल समय में भी लोग अपनी फिक्र छोड़कर आम-जन के साथ ढाल बनकर खड़े हैं। https://indianexpress.com/article/india/coronavirus-in-india-live-news-updates-total-corona-cases-in-india-today-covid-19-live-cases-tracker-india-lockdown-6410422/

 

उन्हीं लोगों को हमने कोरोना वॉरियर का नाम दिया है। कोरोना वारियर की इस लिस्ट में स्वास्थ्य कर्मी, पुलिस कर्मी, मीडिया और सफाईकर्मी हैं।

 

कोरोना वारियर्स का उत्साहवर्धन

 

कोरोना वारियर्स जे उत्साहवर्धन के लिए कभी तालियां, कभी थालियां बजीं तो कभी दिये जलाए गए लेकिन कोरोना के वॉरियर्स के लिए क्या सिर्फ यही पर्याप्त है? जवाब न है। बहरहाल स्वास्थ्यकर्मियों ने अपनी सुरक्षा के लिए पीपीई किट की मांग की। इतना ही नहीं आम लोगों ने भी स्वास्थ्य कर्मियों, मीडिया कर्मियों, पुलिस तथा सफाई कर्मचारी के हित के लिये बोलना शुरू कर दिया।

 

बहरहाल एक कोरोना वारियर वर्ग ऐसा भी है जो रोज़ अपनी सेवाएं देता है परंतु शायद उसकी आवाज़ हम पहचान नहीं पा रहे हैं। जी हां वह कोरोना वारियर्स और कोई नहीं बल्कि खाकी वर्दी में मौजूद “पोस्टमैन या डाकिया” है। पोस्ट ऑफिस भी अन्य दफ्तरों के साथ साथ अपने काम पर लगा है लेकिन उनके बारे में शायद हम भूल ही गये हैं।

 

क्या कहते हैं पोस्टमैन

 

गीता कॉलोनी में बतौर पोस्टमैन बी. के उपाध्याय बताते हैं कि “रोज़ पोस्ट ऑफिस में 5-6 पोस्टमैन आते हैं और अपना-अपना काम करते हैं। हमें लॉकडाउन के शुरूआती दौर में ही सुरक्षा के लिए सेनिटाईज़र और मास्क दिया गया। मीडिया डॉक्टर और बाकी कोरोना वॉरियर्स के बारे में तो रिपोर्ट दिखा रही हैं लेकिन हमारे बारे में न कोई बात होती है, न कोई रिपोर्ट दिखाई जा रही है। यहां तक कि हमारे लिए कोई सरकारी घोषणा भी नहीं की जा रही है।”

 

वह आगे कहते हैं कि पोस्टमैन रोज़ चिट्ठी और दवाइयों जैसी आवश्यक वस्तुओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए गलियों और कूचों में जाते हैं। जहां बड़ी संख्या में लोग झुग्गियों में रहते हैं। जिसके कारण भीड़ में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं होता और कोरोना फैलने का संकट भी बना रहता है।

 

सवाल चिट्ठियों का नहीं पोस्टमैन की सुरक्षा का है

 

पिछले महीने ही यह घोषणा की गयी कि सभी ज़रूरी चिट्ठियां मेल की जायेंगी। इसके बावजूद पोस्टमैन को ज़रूरी चिट्ठी देने गली-कूचों और घरों तक जाना पड़ता है। हालांकि इन चिठ्ठियों की संख्या कम हो गयी है परंतु प्रश्न चिट्ठियों का नहीं बल्कि सवाल उनकी सुरक्षा का है।  

 

बी. के. उपाध्याय का यह भी कहना है कि “डॉक्टर तथा अन्य कोरोना वॉरियर्स के लिये केंद्र सरकार ही नहीं बल्कि राज्य सरकारों ने भी मुआवज़ों का एलान किया है जबकि इस तरह की कोई भी घोषणा अब तक पोस्टमैन के लिए नहीं की गई है। उन्हें यकीन है कि उनके लिए भी ज़रूरी कदम उठाए जाएंगे। ये सभी तथ्य सवाल खड़े करते हैं कि क्या पोस्टमैन की सुरक्षा और जान मायने नहीं रखती? सवाल यह भी है कि इन कोरोना वॉरियर की सुरक्षा की अनदेखी क्यों? क्या पोस्ट ऑफिस के कर्माचारियों को अन्य कोरोना वॉरियर्स की तरह सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए? क्या उनके हक की बात नहीं होनी चाहिए?

Exit mobile version