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“अर्थव्यवस्था और राजनीति दोनों के लिए फायदेमंद है PM का आत्मनिर्भर भारत अभियान”

Image of Prime Minister Modi addressing the country.

Prime Minister Modi. File photo.

मेरे विचार से लॉकडाउन के दौरान पिछली चार ‘मन की बात’ की तुलना में पहली बार मोदी जी ने कुछ काम की बात की है। हालांकि यह बात और है कि अपने कुल 33 मिनट 56 सेकेन्ड के भाषण में 23 मिनट वो “मन की बात” ही कहते रहे और बाकी के 10 मिनट उन्होंने “काम की बात” कही।

आपदा की इस घड़ी को एक अवसर, एक चुनौती के रूप में देखना चाहिए

खैर, प्रधानमंत्री ने देश की जनता से आत्मनिर्भर भारत अभियान में शामिल होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि कोरोना आपदा भारत के लिए एक संदेश लेकर आया है और वह संदेश है आत्मनिर्भरता का। इसलिए हमें आपदा की इस घड़ी को एक अवसर, एक चुनौती के रूप में देखना चाहिए।

उनकी इस बात से मैं पूर्णतः सहमत हूं। मेरा खुद भी यह मानना है कि आपदा या विपत्ति चाहे कोई भी हो या कैसी भी हो, वो हमेशा हमें कुछ नया सिखाकर ही जाती है। बशर्ते हमारे अंदर उससे सीख लेने की ललक हो। अपने भाषण में माननीय प्रधानमंत्री ने “आपदा में अवसर” तलाशने की बात कही।

प्रधानमंत्री द्वारा कही गई‌ बातों का‌ विश्लेषण

कई लोग प्रधानमंत्री के कथन की आलोचना भी कर रहे हैं कि कैसा इंसान है, जो आपदा में भी अवसर तलाशने की बात कर रहा है। अगर गंभीरता से विश्लेषण करें, तो मौजूदा दौर में हममें से लगभग हर कोई यही कर रहा है। फिलहाल भारत सहित पूरी दुनिया आर्थिक संकट का सामना कर रही है। शेयर मार्केट लगभग ध्वस्त हो चुके हैं। देश का जीडीपी अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है।

वर्तमान परिस्थिति में कुछ कॉरपोरेट घरानों को छोड़ दें, तो हर किसी को अपनी रोज़ी-रोटी की फिक्र होने लगी है। ऐसी स्थिति में हर कोई अपने आने वाले कल के लिए रोज़गार का विकल्प तलाशने में लगा है। फिर चाहे  वे मजदूर हों या फिर नौकरीपेशा इंसान। इसलिए मेरा मानना है कि सिर्फ विरोध करने के लिए किसी इंसान या उसके विचारों का विरोध नहीं किया जाना चाहिए। अगर उसमें कुछ बेहतर है, तो उसका समर्थन करने में भी कोई बुराई नहीं है।

सरकार का‌ ऐलान

इन सबके लिए 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह पैकेज देश के किसानों, मज़दूरों, मध्यम वर्ग और  भारतीय उद्योग जगत के लिए है।

“लोकल को वोकल” बनाने पर ज़ोर

प्रधानमंत्री पैकेज की घोषणा तक नहीं रुके, उन्होंने ‘लोकल को वोकल’ बनाने पर ज़ोर देते हुए आत्मनिर्भर भारत के पांच महत्वपूर्ण स्तंभों की भी चर्चा की। जो कुछ इस प्रकार हैं- इकोनॉमी, इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी ड्रिवेन सिस्टम, डेमोग्राफी और डिमांड।

इससे पहले 24 अप्रैल को पंचायती दिवस के मौके पर भी प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भरता का संदेश देते हुए देश के कुल ढाई लाख पंचायतों को मज़बूत बनाने पर बल दिया था।

इस अवसर पर ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाने के लिए उन्होंने इ-ग्राम स्वराज एप्प और स्वामित्व नामक परियोजना को लॉन्च किया था। उस वक्त उन्होंने बताया कि इसके माध्यम से पंचायत सुधार की योजनाओं पर खर्च किए जा रहे खर्चे का पूरा ब्यौरा एक क्लिक पर उपलब्ध होगा।

आत्मनिर्भरता अर्थव्यवस्था और राजनीति, दोनों के लिए फायदेमंद

आत्मनिर्भर भारत का सपना निश्चित रूप से बेहद खूबसूरत है और इसमें कोई दो राय नहीं है कि वैश्विक पटल पर भारत एक बार फिर से सोने की चिड़िया की उपाधि हासिल कर सकता है लेकिन इसे साकार करने के लिए हर स्तर पर ईमानदार प्रयास होना ज़रूरी है।

इस संबंध में नीति निर्माण, उनके क्रियान्वयन, आय-व्यय तथा राजस्व से लेकर हर स्तर पर पारदर्शिता होनी ज़रूरी है और यह केवल केंद्र स्तर पर ही नहीं, बल्कि राज्य स्तर पर भी होना आवश्यक है।

उदाहरण के तौर पर अगर हम बिहार की बात करें, तो आगामी अक्टूबर माह में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। कोरोना आपदा की वजह से लाखों बिहारी प्रवासी मज़दूर, कामगार और छात्र आदि बिहार लौटे हैं।

इनमें से ज़्यादातर लोग जिस त्रासद स्थिति को भोगने के बाद वापस अपने राज्य लौटने को मजबूर हुए हैं, वहां अब वे वापस नहीं जाना चाहते हैं।

उनमें से ज़्यादातर लोगों का यही कहना है कि अगर राज्य सरकार उन्हें अपने राज्य में ही आजीविका उपलब्ध करवा देती है, तो वे नमक-रोटी खाकर ही सही मगर अपने घर में ही रहना पसंद करेंगे।

यह मानसिकता अमूमन हर राज्य में लौटने वाले मज़दूरों की है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकारों के लिए यह सुनहरा अवसर है कि वे फिलहाल लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास को बढ़ावा देकर हो रहे पलायन को रोक सकते हैं। जो मज़दूर वापस नहीं लौटेंगे, वे निश्चित रूप से उनके वोट बैंक का भी हिस्सा होंगे।

इसका एक फायदा यह भी होगा कि दिल्ली, मुंबई, गुजरात, चेन्नई आदि शहरों में स्थापित फैक्ट्रियों को अगर पर्याप्त मात्रा में मज़दूर नहीं मिलेंगे, तो उनके पास दो ही विकल्प बचेंगे। पहला, वे मुंहमांगी कीमत पर मज़दूरों को नियुक्त करें या फिर दूसरा, वे अपनी यूनिट्स को उन राज्यों में शिफ्ट करें जहां सस्ता श्रम उपलब्ध हो। इन दोनों स्थितियों का फायदा मज़दूरों सहित उक्त राज्यों को भी होगा।

20 लाख करोड़ कहां से आएंगे?

फिलहाल पीएम मोदी के 20 लाख करोड़ के पैकेज के ऐलान के बाद लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं जिसे वे जानना चाहते हैं। इनमें सबसे पहला तो यह कि इतना पैसा आयेगा कहां से? तो आपको बता दें कि देश के नाम संबोधन में पीएम मोदी जी ने खुद कहा,

हाल में सरकार ने कोरोना संकट से जुड़ी जो आर्थिक घोषणाएं की थीं, जो रिजर्व बैंक के फैसले थे और आज जिस आर्थिक पैकेज का ऐलान हो रहा है, उन सबको अगर जोड़ दें, तो यह आंकड़ा करीब-करीब 20 लाख करोड़ रुपए का है। यह पैकेज भारत की जीडीपी का करीब-करीब 10 प्रतिशत है।

मतलब यह है कि 20 लाख करोड़ के पैकेज में से करीब 10 लाख करोड़ का ऐलान पहले ही हो चुका है। तीन दिन पहले ही सरकार की ओर से चालू वित्त वर्ष में बाज़ार से कर्ज़ की सीमा को बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये किया गया, जो पहले 7.8 लाख करोड़ रुपया था।

इस तरह जानकारों का मानना है कि सरकार कर्ज़ में ली गई 4.2 लाख करोड़ की रकम को ही इस पैकेज के तहत खर्च करने वाली है। यानी यह रकम ही सरकार के पास नकदी के तौर पर मौजूद है। इस लिहाज़ से देखें, तो 4.2 लाख करोड़ की यह राशी जीडीपी के 2.1 प्रतिशत के बराबर होगी।

रिपोर्ट के मुताबिक, दूसरे शब्दों में कहें तो गरीबों, प्रवासी मज़दूरों और किसानों के लिए सरकार 4.2 लाख करोड़ के पैकेज का ही ऐलान कर सकती है। जानकारों के मुताबिक यदि इस पैकेज की राशी को भी ढंग से खर्च किया जाए तो परिणाम काफी सुखद होगें।

मन की बात में नहीं दिखीं ये बातें

जब से देश में लॉकडाउन शुरू हुआ है, तब से अब तक माननीय प्रधानमंत्री पांच बार “मन की बात” कर चुके हैं लेकिन उन सब में एक चीज़ जो मिसिंग रही, वो थी आम जनता की समस्याओं का ज़िक्र।

पहले तीन “मन की बातों” में प्रधानमंत्री ने देश की जनता से तमाम कोरोना वॉरियर्स  (स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी,  सफाईकर्मी, सुरक्षाकर्मी और मीडियाकर्मी ) के लिए ताली, थाली बजवाने, दीया, मोमबत्ती  जलाने और फूल बरसाने का आह्वाहन तो किया लेकिन गरीब किसानों और मज़दूरों के बारे में एक शब्द नहीं कहा।

इनमें से किसी भी बात में उन समस्याओं के बारे में चर्चा तक नहीं की, जिससे आज देश की एक बड़ी आबादी दो-चार हो रही है़। इन समस्याओं में अन्य राज्यों से मज़दूरों का पलायन, भूख से बेहाल होकर सड़कों पर मरती गरीब  जनता, देश में फैलती धार्मिक वैमनस्यता, महिलाओं के प्रति बढ़ती घरेलू हिंसा, बुज़ुर्गों में बढ़ते डिप्रेशन के मामले आदि शामिल हैं।

तमाम तरह के कानून बना दिए जाने के बावजूद फैक्ट्री मालिकों या कॉरपोरेट कंपनियों द्वारा कामगारों की छंटनी, बदहाल अर्थव्यवस्था, देश के प्रमुख अस्पतालों में आवश्यक मेडिकल सुविधाओं की कमी, कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच शराब की दुकानों के खोलने से उत्पन्न अव्यवस्था आदि प्रमुख हैं। हां, अपने पिछले संभाषण में प्रधानमंत्री ने श्रमिकों को हो रही समस्या के लिए अफसोस ज़रूर प्रकट किया था।

लेकिन उनकी मदद के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है, इस पर आज भी चुप्पी कायम है और उनकी इस बेरूखी की वजह से ही देश का एक बड़ा हिस्सा आक्रोशित और दुखी है। नरेंद्र मोदी 135 करोड़ आबादी वाले इस देश के मुखिया हैं, तो जाहिर-सी बात है कि देश में किसी भी तरह की अव्यवस्था या असंतोष की स्थिति में सबसे पहले सवाल उनसे ही किया जाएगा, ठीक उसी तरह जैसे किसी घर की अव्यवस्था के लिए सबसे पहले उस घर के मुखिया को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है।

हो सकता है कि कुछ लोगों को यह तरीका गलत लगे लेकिन सच्चाई यही है और इस सच से ना तो मोदी जी के समर्थक और ना खुद मोदी जी मुंह मोड़ सकते हैं। उन्हें इस देश की जनता ने भारी मतों से जीताकर अपने सिर-आंखों पर बिठाया है, तो जबाव भी तो उन्हीं से मांगेगी ना!

मोदी जी ने अपने हालिया भाषण में कहा कि श्रमिक वर्ग किसी भी देश के विकास की रीढ़ होता है, तो मैं उनसे बस यही कहना चाहूंगी कि माननीय एक विकसित आत्मनिर्भर देश का सपना भी तभी साकार होगा, जब यह रीढ़ मज़बूत और आत्मनिर्भर होगी। बाकी सपनों का क्या है, गरीबों के सपने तो होते ही हैं टूटने के लिए।


संदर्भ- प्रभात खबर

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