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क्या सरकारी योजनाएं गरीबों की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए सक्षम हैं?

migrant labourers amod lockdown

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आज के समय में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि सरकार जनता को कैसे शिक्षित करे कि वे कोरोना वायरस के संक्रमण से अपनी रक्षा कर सकें?

सरकार को लगातार अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग स्तर पर जनता के साथ संवाद बनाए रखना होगा। सोशल मीडिया, अखबार, पोस्टर-बैनर, टीवी तथा परम्परागत माध्यमों का उपयोग करना होगा।

सरकार को कोरोना आपदा को लेकर जनता के साथ पारदर्शिता बरतनी होगी

इतना ही नहीं, बल्कि पल-पल बदलती परिस्थितियों के बारे में भी पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ जनता को बताते रहना होगा। मरीज़ों को मिलने वाली सेवाओं से लेकर डॉक्टरों की उपलब्धता से जुड़ी तमाम जानकारियां जनता के साथ साझा करना बेहद ज़रूरी है।

यही नहीं, वेंटिलेटर्स से लेकर बेड व दवाओं की उपलब्धता, जांच की सहूलियत, इसकी  प्रक्रिया तथा जांच किए गए लोगों की संख्या, क्वारंटीन में रखे गए लोगों की संख्या और उन्हें मिलने वाली सेवाओं आदि के बारे में जनता को निरंतर बताते रहना होगा।

सरकार को जनता के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना होगा

सरकार तथा सरकारी मशीनरी को जनता के साथ कुछ ऐसा व्यवहार करना होगा जिससे उन्हें विश्वास हो जाए कि सरकार जनता की सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित है।

इससे जनता के अंदर सरकार के प्रति विश्वास पैदा होगा और ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को भी कोरोना के संदिग्ध मरीज़ों की पहचान करने में आसानी होगी। ऐसे हालात में लोग लॉकडाउन का पालन पुलिस के डर से नहीं, बल्कि बीमारी से बचाव की इच्छा से करेंगे।

हर क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों को सहयोग हेतु प्रेरित करना चाहिए

इतना ही नहीं, सरकार को अलग-अलग स्तर पर भी सामुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित करने की ज़रूरत है और वह भी अच्छे तालमेल के साथ। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि ज़रूरत पड़ने पर इनकी भी मदद ली जा सकेगी।

इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि गाँव स्तर पर प्रधान हों, संस्था हो, डॉक्टर, मास्टर, प्रोफेशनल, खिलाड़ी और प्रभावशाली लोग आदि हों तो उनको कोरोना वायरस से लड़ने की प्रकिया मे शामिल किया जा सकता है।

सामुदायिक स्तर पर पब्लिक काउंसलिंग की ज़रूरत

एएनएम,आशा वर्कर,आंगनवाड़ी सेविका और धर्मगुरुओं आदि के बेहतर प्रशिक्षण से स्थिति को सुधारा जा सकता है। जैसे कि सामुदायिक स्तर पर डिजीज़ सर्विलांस तथा कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में इनसे सहायता प्राप्त की जा सकती है और साथ ही वे यह भी सूचना दे सकते हैं कि इस बस्ती या गाँव मे कौन सा नया व्यक्ति बाहर से यात्रा कर के आया है।

क्योंकि कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, टेस्टिंग, आइसोलेशन, ट्रीटमेंट और काउंसलिंग आदि को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी में मूल उपकरण के तौर पर माना जाता है।

मोबाइल मेडिकल टीम का गठन किया जाना बेहद जरूरी है

मोबाइल मेडिकल टीम का गठन भी ज़रूरी है, जो कि गाँवों और कस्बों में क्वारंटाइन किए गए लोगों का निश्चित समय पर सुचारु रूप से देखभाल करें और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें अतिरिक्त चिकित्सकीय सेवा दिलाने के लिए ज़िला स्तर के हॉस्पिटल मे भर्ती कराएं।

इस मुहिम में शामिल सारे सदस्यों को सुरक्षा के लिए पीपीई किट, दस्ताने और चश्मे आदि उपलब्ध होते रहें और साथ ही हेल्थ बीमा को भी सुनिश्चित किया जाए ताकि मेडिकल टीम के अंदर आत्मविश्वास बढ़े और कार्य के प्रति हौसला बरकरार रहे।

प्रतिदिन सम्पूर्ण चिकित्सा गतिविधियों की समीक्षा अवश्य की जानी चाहिए

ज़िला स्तर पर ज़िलाधिकारी की निगरानी मे कोरोना इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर की स्थापना भी ज़रूरी है ताकि दिनभर की सम्पूर्ण चिकित्सा की गतिविधियों की समीक्षा की जाए। जिससे अगले दिन के लिए नई योजना के साथ-साथ कार्य किया जा सके।

सरकार को याद रखना चाहिए कि मज़दूरों की बड़ी संख्या शहरों से पलायन कर गाँव पहुंच गई है और बड़ी संख्या में मजदूर अभी भी गाँव पहुंच रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं जो रोज़ कमाते हैं और रोज़ अपने लिए खाने की व्यवस्था करते हैं।

लॉकडाउन के चलते मज़दूरों का रोज़गार चला गया और इनके घरों से खाने-पीने की चीज़ें भी लगभग खत्म हो गई हैं। इन मज़दूरों की संख्या करोड़ो में है।

भूमिहीन मज़दूरों की स्थिति बेहद दयनीय है

संभवत: इनके पास कुछ दिनों के लिए राशन उपलब्ध हो मगर यह बहुत दिनों तक नहीं चल सकता है। विशेष रूप से छोटे-बड़े शहरों और कस्बों मे रहने वाले भूमिहीन मज़दूरों की स्थिति बड़ी नाज़ुक नज़र आती है।

इस समय मज़दूरों के साथ जो हो रहा है उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि सामाजिक न्याय की प्रक्रिया ध्वस्त होकर रह गई है। आज इनकी कोई सुध-बुध लेने वाला नहीं है। खास तौर पर उन प्रदेशों के प्रवासी मज़दूर अधिक परेशान हैं, जहां पर बीजेपी को सब से ज़्यादा वोट दिया गया है।

गौरतलब है कि उत्तेर प्रदेश और बिहार से सबसे अधिक एमपी, एमएलए और मिनिस्टर हैं मगर किसी को इतनी फुर्सत नहीं जो इनकी सहायता के लिए हाथ बढ़ाएं।

सरकारी योजनाएं क्या वास्तविक रूप से गरीबों को अनाज उपलब्ध करा पा रही हैं?

सरकारी योजनाएं इस वक्त इन करोड़ों गरीब मज़दूरों की खाद्यान्न की ज़रूरतों को पूरा करने में कितना सक्षम हैं, यह अभी भी बहस का मुद्दा है। ऐसी परिस्थिति में खाद्यान्न की कमी भुखमरी जैसी एक नई आपदा को जन्म दे सकती है।

याद रहे कि पेट की भूख कोरोना वायरस से कम खतरनाक नहीं है। अतः ऐसी स्थिति में खाद्य विभाग की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है।

उन्हें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि खाद्यान्नों की सप्लाई चैन किसी भी तरह से ना टूटे। जमाखोरी और बढ़ती कीमतों पर भी काबू रखना होगा, क्योंंकि भुखमरी और लॉकडाउन दोनों एक साथ नहीं चल सकते।

कोरोना को लेकर हो रहे भ्रामक प्रचारों पर भी विराम लगाना होगा

कोरोना वायरस फैलने के साथ-साथ उसके इलाज के बारे में भी तरह-तरह की भ्रांतियां सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से लोगों में फैल रही हैं। इस पर सरकारी तंत्र को गहरी नज़र रखनी होगी।

ऐसी कोई सूचना मिलने पर तुरंत उसका निदान करना होगा या उसके बारे में तकनीकी जानकारी के साथ स्पष्टीकरण देना होगा।

जागरुकता अभियानों की सख्त ज़रूरत है

जब अफ्रीका में इबोला तेज़ी से फैल रहा था उस वक्त नाइज़ीरिया सरकार, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, समाजसेवी संगठन तथा परम्परागत नेतृत्व ने इससे बचने के लिए कई प्रकार की रणनीति अपनाई थी। जिसमें तकनीकी जानकारियों का तेज़ी से आदान-प्रदान अलग-अलग मीडिया तथा सामुदायिक बैठकों के द्वारा किया गया।

हर नुक्कड़ और सार्वजनिक स्थानों पर होर्डिंग्स लगाने के साथ-साथ पोस्टर्स चिपकाए गए। इसके अलावा रेडियो और टीवी पर प्रचार-प्रसार चलता रहा। रेडियो टॉक शो उस समय काफी प्रभावशाली माना जाता था।

सुरक्षा की दृष्टि से साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है

दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वहां पर हर सार्वजनिक स्थान तथा ऑफिस के सामने पानी की टंकी और साबुन रखा गया और जब भी कोई ऑफिस में आता तो सबसे पहले हाथ धोना उसके लिए अनिवार्य होता है।

उस वक़्त हम लोगों ने एक-दूसरे से हाथ भी मिलाना छोड़ दिया। अभिवादन सिर्फ दूर से हाथ हिलाकर कर कर लिया करते थे। पीने का पानी तथा सैनिटाइज़र सदैव अपने साथ रखते थे।

इस तरह से हाथ धोने और लोगों से शारीरिक दूरी बनाए रखने की रणनीति को नाइजीरिया के लोगों ने अपनाकर समय से पहले ही इबोला को रोकने के लिए पूरी तरह सफतलता प्राप्त कर ली।

यही वजह थी की सिर्फ चंद ही लोग इबोला से संक्रमित हुए। उस वक्त इबोला से लड़ने के लिए कई महत्वपूर्ण नारे प्रचलित थे। जैसे- इबोला इज़ रियल! इबोला मस्ट गो आदि।

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