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“मुसलमान होने के कारण मुझे किराये का मकान नहीं दिया गया था”

islamophobia

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साल 2015 में ग्रैजुएशन पूरी करने के बाद घर से बाहर निकलकर आगे की पढ़ाई करने का वक्त आया। मैं उदयपुर आ गया जो ना तो ज़्यादा बड़ा शहर है और ना ही सांप्रदायिक।

मैंने सुना था कि यहां के लोग काफी अच्छे से रहते हैं। चूंकि मेरे शहर से उदयपुर दूर था तो स्वाभाविक है कि मुझे वहां रूम भी लेकर रहना ही था मगर मुझे जितना आसान सब कुछ लग रहा था, वास्तव में उतना आसान नहीं था।

जब गलियां-गलियां कॉलोनी-कॉलोनी रूम ढूंढने के लिए घुमा तो मुझे एक ऐसी सच्चाई मालूम पड़ी जिसका मुझे अंदाज़ा नहीं था। वो थी मेरी पहचान जो मेरे नाम में छिपी थी। जिन घरों के बाहर बड़े-बड़े शब्दों में ‘TO LET’ के बोर्ड लगे होते हैं, वे मेरा नाम सुनकर कहते हैं भैया सुबह ही दे दिया।

कुछ तो साफ मना भी कर देते हैं कि हम मुसलमानों को रूम नहीं देते हैं। यह सुनकर आप उस दहलीज़ को छोड़ने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते हैं। कुछ घरों के बाहर तो साफ-साफ लिखा होता है कि सिर्फ ब्राह्मण और जैन के लिए।

जब यह बात मैंने अपने दोस्तों के साथ शेयर की तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि ऐसा कुछ होता होगा लेकिन जो मेरे रूम मेट्स रहे हैं, वो यह बात बखूबी जानते हैं और सिर्फ मुस्लिम्स ही नहीं हैं जिन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ता है, बल्कि SC/ST वर्ग के स्टूडेंट्स भी इस समस्या का सामना करते हैं। हां यह हो सकता है कि उन्हें कुछ कम करनी पड़ती हो।

दो घटनाएं आपके साथ साझा कर रहा हूं

एक बार मैं और मेरा एक तथाकथित सवर्ण दोस्त रूम खोजने साथ में निकले। हमने रूम देख लिया फिर सब कुछ तय हो गया, क्योंकि मकान मालकिन से बात मेरे सवर्ण दोस्त ने की थी। अपना परिचय भी दिया फिर मकान मालकिन ने पूछा साथ कौन रहेगा? तो मैं सामने आया और कहा कि मैं रहूंगा।

उसने जब मेरा नाम पूछा तो मैने कहा, “अंसार।” फिर उसने मेरे नाम का मतलब पूछा तो मैंने कहा, “अंसार का मतलब मक्का से मदीना हिजरत के वक्त जिन लोगों ने मुहम्मद साहब की मदद की वे अंसार कहलाए थे। सामान्यत अंसार का मतलब मददगार होता है।”

उसने पूछा, मुस्लिम हो?” मैंने कहा, “जी हां।” फिर उसने कहा कि हम मुस्लिम को रूम नहीं देते हैं। मेरे लिए यह बात कुछ नई नहीं थी। मेरे सवर्ण दोस्त को बहुत बुरा लगा, क्योंकि उसने आज तक यह फेस नहीं किया था। उसने उस मकान मालकिन को भला-बुरा सुना दिया फिर मकान मालकिन ने कहा कि तुम भी इसके साथ रहकर मांस मच्छी खाते होगे।

यह सुनकर मेरा दोस्त और ज़्यादा गुस्सा हो गया और लड़ाई करने पर आमदा हो गया। मैं उसे खींचकर वहां से ले गया।
हालांकि उस दोस्त को और मुझे कहीं और रूम मिल गया मगर उसने मुझे भी कई बार चेताया कि गाँव में किसी को कहना मत कि अपन दोनों साथ रहते हैं। भाई मुझे कोई दिक्कत नहीं है मगर गाँव वाले क्या सोचेंगे!

दूसरी घटना

इस बार मामला ऐसा था कि मेरा रूम पार्टनर मेरा कज़न भाई था। मेरे शैक्षिक करियर में कभी मेरा कोई मुस्लिम दोस्त नहीं रहा। शायद इसलिए कि वे पढ़ते नहीं हैं। तो यह पहली बार था कि मेरा रूम मेट एक मुस्लिम ही था। हमने रूम देखा पैसे तय किए और बुक कर लिया।

उस मकान मालिक की है एक किराने की दुकान थी जहां एक-दो दिन बाद मैं गया। उस वक्त दुकान में मकान मालिक का लड़का था। उसने मेरा नाम पूछा तो मैंने अपना नाम उसे बताया मगर उसे समझ नहीं आया पिर मैंने खुद ही उसकी डायरी में अपना नाम लिखा। वो उसे पढ़ा और मुझसे पूछा, “भैया मुसलमान हो?”

मैंने कहा हां मैं मुसलमान हूं फिर उसने पूछा रूम किसने दिया? मैंने कहा आपकी मम्मी ने हमें कमरा दिया फिर मैं वहां से चला गया। शाम को मकान मालकिन आई और उन्होंने कहा भैया आप मुसलमान हो? मैंने कहा हां मुसलमान हूं मैं।

उसने कहा, “हम मुसलमानों को कमरा नहीं देते हैं।” फिर मैंने कहा, “आंटी मैंने आपको पहले ही बोला था कि मैं मोमडन हूं।” इस पर आंटी ने कहा, “मुझे क्या पता कि मोमडन मुस्लमान होते हैं और आप तो मुसलमान लगते भी नहीं हैं।”

मैंने कहा ठीक है मैं अगले महीने खाली कर दूंगा मगर मेरे व्यव्हार को देखते हुए उन्होंने अगले महीने खाली नहीं करवाया। लगभग 2-3 महीने बाद आंटी आईं और कहा कि भैया मेरे बेटे की शादी है और अगर मेहमान को पता चलेगा कि मैंने एक मुसलमान को कमरा किराए पर दिया है, तो अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए आप खाली कर दीजिए अब कमरा फिर मुझे अंत में वो कमरा भी खाली करना पड़ा।

ये महज़ दो उदाहरण थे मगर ऐसी कई घटनाएं हैं जिनका सामना मैंने खुद किया है। सिर्फ मुसलमान होने के कारण मुझे कमरा नहीं मिला। ऐसे में मेरे पास एक ही विकल्प था कि मैं किसी मुस्लिम बस्ती में मुस्लिम व्यक्ति के यहां रूम किराये पर ले लूं मगर यह इस समस्या का हल नहीं था।

मैंने यह निश्चय कर लिया था कि मैं कभी किसी मुस्लिम के घर में रूम किराये पर नहीं लूंगा और उन्हीं लोगों के बीच रहूंगा जिन्हें मेरे नाम में ही आतंक नज़र आता है। जब तक मैं उनके आसपास नहीं रहूंगा तब तक उन्हें कैसे पता चलेगा कि मैं कौन हूं और क्या करता हूं।

मुस्लिम युवाओं की सबसे बड़ी दिक्कत ही यही है कि वे पढ़ने बाहर जाते हैं तो सबसे पहले मुस्लिम कॉलोनी ढूंढते हैं। आखिर क्यों? कोई तो होगा हिन्दू कॉलोनी में जो आपको एक ह्यूमन की तरह ट्रीट करेगा मगर हम पहले ही हार मान लेते हैं।

आज मैं उदयपुर के सबसे पॉश माने जाने वाले हिरन मंगरी इलाके के सेक्टर तीन में रहता हूं। मैं पिछले 3 साल से यहीं रह रहा हूं और सबसे बड़ी बात यह कि मेरा मकान मालिक जैन है।

यह एक तरह से मेरी जीत है उन विचारों के खिलाफ जो समाज में खाई पैदा करने का काम कर रहे हैं। यह एक वैचारिक जंग है जिसे हर उस मुस्लिम, दलित और आदिवासी स्टूडेंट्स को लड़नी होगी जो इस तरह के भेदभाव का सामना करते हैॆ।

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