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“इरफान, आपको खो देना किसी अनमोल हीरे को खो देने से कम नहीं है”

Irrfan Khan dies at 53

Irrfan Khan

मेरे और आप सबके प्रिय अभिनेता इरफान खान के निधन पर सभी देशवासियों ने शोक जताया। हर वर्ग के लोगों ने उन्हें सच्चे मन से श्रद्धांजलि दी। इस मंझे हुए कलाकार का इतनी कम उम्र मे हमसे रुखसत हो जाना हर किसी के लिए बड़ा दुखदाई है।

इरफान के लिए इतने सारे लोगों की संवेदनाएं हमें यह बताती हैं कि वो ना सिर्फ एक अच्छे कलाकार, बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे।

इरफान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करने वाले कुछ अच्छे भारतीय कलाकारों में से एक थे। भोपाल में अपने मित्रों के साथ का एक किस्सा बताता हूं।

जुरासिक वर्ल्ड हॉलीवुड मूवी मे जब ‘साइमन मसरानी’ के किरदार मे इरफान भाई की एंट्री हुई, तब सभी दर्शक अचानक से कुछ समय के लिए स्तब्ध हो गए।

एक दर्शक ने कहा कि ये तो अपने इरफान खान जैसा लग रहा है। कुछ सेकेन्ड बाद उन्हीं की आवाज़ में डायलॉग सुनकर दर्शकों की ऊर्जा मे अचानक दोगुना उछाल-सा आ गया।

सभी को यकीन हो गया कि यह जादुई आवाज़ इरफान खान की ही तो है। थियेटर हॉल सीटीयों की आवाज़ से गूंज उठा। हॉलीवुड के इतने बड़े प्रोजेक्ट में अपने देशी कलाकार को देखना सिनेमा के चाहने वालों को कितना उत्साहित करता है, मुझे यह बात उस समय पता चली।

मैं खुद इरफान खान को नई पीढ़ी का कलाकार समझता था, क्योंकि मैंने भी उन्हें सन् 2000 के बाद आने वाली फिल्मों से ही देखना शुरू किया था।

2006 में आई फिल्म ‘रोग’ जिसके गाने “खूबसूरत है वो इतना” और “मैंने दिल से कहां ढूंढ लाना खुशी” इत्यादि बहुत ही पॉपुलर हुए। तभी से इरफान खान को नाम से जानने लगा लेकिन तपन सिन्हा द्वारा निर्देशित 1990 की “एक डॉक्टर की मौत” नामक हिंदी फिल्म अफसरशाही की लापरवाही व दबाव और राजनीतिक लीचड़पन को बयां करती है।

इस फिल्म को कुछ साल पहले ही मैंने किसी मित्र के सुझाव के बाद देखना शुरू किया। पता चला इरफान खान ने भी इसमें एक अहम किरदार निभाया है फिर मुझे अंदाज़ा हुआ कि वो तो बहुत पुराने कलाकार हैं।

हमने ही फिल्मों मे रूची लेना अब शुरू किया है। इरफान खान तो बीस-तीस साल पहले से ही फिल्म जगत और टीवी सीरीज़ में सक्रिय हो चुके थे।

जितनी बार इरफान खान की कोई फिल्म आई हो, दर्शक देखे बिना रह नहीं पाते थे। जादू ही ऐसा है, डायलॉग डिलीवरी का यूनिक अंदाज़, कड़क आवाज़ और अपना एक अलग ही लहज़ा इस कलाकार को सिनेमा जगत का जादूगर बना देता है।

‘पान सिंह तोमर’ की कहानी को भी इसी कलाकार ने फिर से जीवित कर दिया। फिल्म के डायलॉग को भी बेहतरीन तरीके इरफान ने पर्दे पर उतारा। “बीहड़ मे बागी होते है, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में” फिल्म की पहचान बन गया।

इस कलाकार को खोना किसी अनमोल हीरे को खो देने से कम नहीं है। विनम्र श्रद्धांजलि।

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