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Covid-19: पटना के स्लम इलाकों में रहने वाले लोग कैसे जूझ रहे हैं महामारी से?

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लॉकडाउन के दौरान सामान के लिए लाइन में खड़े लोग

दिसंबर 2019, जब सारी दुनिया नए साल के स्वागत में जश्न की तैयारियों में डूबी हुई थी, उन्हीं दिनों चीन के वुहान शहर में कोविड-19 एक महामारी का रूप लेता जा रहा था। जनवरी 2020 तक चिकित्सकीय शोध का केंद्र कहा जाने वाला वुहान कोविड-19 के भयावह प्रकोप से बिलकुल तबाह हो चुका था। मार्च 2020 तक इस वैश्विक महामारी ने विश्व के अन्य देशों को भी अपने चपेट मे ले लिया। यहां तक की सम्पन्न एवं सशक्त देश भी इसके चपेट में आने से खुद को नहीं बचा पाए।

जनवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में कोविड-19 ने भारत के केरल में अपनी पहली दस्तक दी थी जिसने मार्च के तीसरे सप्ताह तक देश के अनेक राज्यों को अपने चपेट मे ले लिया था। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार ने 24 मार्च 2020 से पूरे देश में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा कर दी और परिवहन से सारे साधन एक साथ बंद कर दिये गए।

योजनाबद्ध तरीके से लगना चाहिए था लॉकडाउन

देश के लोगों को इस महामारी से बचाने के लिए और इस महामारी के प्रसार को रोकने की दिशा मे उठाया गया यह कदम ज़रूरी भी था। लेकिन उतना ही ज़रूरी था ये आकलन भी था कि आचानक लगाया गया यह प्रतिबंध झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे उन परिवारों पर क्या असर डालेगा जो अपने घर से दूर देश के बड़े शहरों में दो जून के रोटी कमा रहे थे।

“1 महीने से ज्यादा होने वाला है जबसे हमें कोई काम नहीं मिला। पहले मोहल्ले के घरों में काम करके कुछ आमदनी हो जाती थी। पति भी इस बंदी में घर में ही बैठे हैं। राशन कार्ड भी गाँव का है। अनाज भी नहीं उठा सकते। इस बुढ़ापे में बीमारी ने अलग परेशान कर रखा है। सारी जमा पूंजी भी खत्म हो गयी है। ये महामारी और बंदी या तो बीमारी से जान ले लेगा या फिर भूख से ।” पटना में मज़दूरी की काम करने वाली दरभंगा, बिहार की मालती देवी का गला ये कहते हुए रुंधने लगता है।

आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों के मदद के लिए  बिहार सरकार एवं केंद्र सरकार द्वारा की गयी प्रमुख घोषणाएं:

इस संकट के समय में बिहार सरकार एवं केंद्र सरकार ने ज़रूरतमन्द परिवारों एवं नागरिकों के लिए विभिन्न योजनाओं एवं प्रावधानों को त्वरित रूप से लागू करने का निर्णय लिया जो निश्चय ही सराहनीय कदम है।

बिहार में कम्युनिटी किचन की तस्वीर

बिना राशन कार्ड वाले लोग वंचित हैं सरकारी सुविधाओं से

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि ये सारी सुविधाएं केवल उन्हीं लोगों या परिवारों को मिल पाएंगी जो या तो राशनकार्ड धारी हैं या फिर चिन्हित किए गए किसी अन्य योजनाओं मे पंजीकृत हैं।

राज्य से बाहर फंसे हुये प्रवासी मज़दूरों के लिए भी डिजिटल माध्यम से आवेदन कर सहायता प्राप्त करना काफी मुश्किल हो रहा है। इसके लिए भी उन्हें आधार कार्ड एवं अन्य दस्तावेजों की जरूरत पड़ रही है। शहरों में रह रहे अनेक प्रवासी मज़दूर परिवार राशन कार्ड धारियों के लिए दी जाने वाली सुविधाओं से वंचित रह जाएंगे क्योंकि या तो उनके पास राशन कार्ड नहीं है या उनके गाँव के पते पर है। अब लॉकडाउन की स्थिति में वो अपने गाँव भी नहीं लौट पा रहे हैं।

स्लम में रहने वाले लोगों की बढ़ गई हैं समस्याएं

पटना के झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले परिवारों की समस्या और भी गंभीर है। कोशिश चैरिटेबल ट्रस्ट, पटना  के द्वारा स्लमों में कराये गए सर्वे से उनकी विभिन्न समस्याएं निकलकर सामने आई हैं।

स्लम में रह रहे परिवारों की आजीविका पूर्ण रूप से बंद हो गयी है। ये परिवार भोजन, बच्चों के लिए दूध और गर्भवती एवं धात्री महिलाओं के लिए आवश्यक देखभाल की समस्याओं से जूझ रहें हैं। अनेक परिवारों के पास ना तो राशन कार्ड है ना हीं वो अन्य योजनाओं से अभी तक जुड़ पाएं हैं। कुछ परिवारों के पास कुछ दिन का राशन तो बचा है लेकिन जलावन की व्यवस्था ना होने के कारण भोजन नहीं बना पा रहे हैं।

परिवार के वृद्ध, दिव्यांग एवं बीमार सदस्यों की हालत पैसे के आभाव में नियमित दवाई एवं देखभाल की कमी के कारण बिगड़ती जा रही है।
महिलाओं एवं बच्चों के साथ होने वाली घरेलू हिंसा भी बढ़ी है।

स्वास्थ्य सेवाओं के साथ-साथ पेयजल एवं शौचालय कि समस्या ने लॉकडाउन को इन परिवारों के लिए और भी मुश्किल बना दिया है। वर्तमान स्थिति में इन लोगों के लिए व्यक्तिगत साफ-सफाई का ध्यान रख पाना, कपड़े धोना एवं बार-बार हाथ धोना काफी मुश्किल है।

इनके बस्तियों में रहने के छोटे-छोटे स्थान, जिसे घर कहना भी मुश्किल होगा,  इतने पास-पास हैं कि संक्रमण होने कि दशा में सिर्फ परिवार हीं नहीं पूरे समुदाय में इसके होने वाले फैलाव को रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा। मुंबई का धारावी इसका ज्वलंत उदाहरण है।

आपदा के इस विकट समय में ऑक्सफैम इंडिया ने भी दिल्ली, मुंबई सहित देश के अनेक राज्यों के 50,000 ज़रूरतमन्द परिवारों तक मदद पहुंचाने के लिए अनवरत रूप से राहत कार्य चलाये जा रहे हैं। ऑक्सफैम इंडिया ने पटना के स्लम एवं अन्य मोहल्लों के लगभग 1500 अति ज़रूरतमन्द परिवारों को चिन्हित कर उन्हें 1 महीने का राशन मुहैया कराया है।

पटना मे रहकर आस-पास के घरों मे चौका बर्तन करके अपनी रोजी-रोटी चलाने वाली चमेली देवी ने ऑक्सफेम इंडिया को बताया, “दो महीने से सारा काम-काज बंद है। जिन घरों में काम करते थे वहां से थोड़ा बहुत राशन मिला था। लेकिन वो पूरा नहीं पड़ रहा (यानी पर्याप्त नहीं है)। अब किराया भी मांगा जा रहा है। पता नहीं ये बंदी कब तक चलेगा। बहुत मुश्किल में फंस गए है।”

लॉकडाउन के दौरान सामान के लिए लाइन में खड़े लोग

कोविड-19 महामारी के इस बुरे दौर में फंसे परिवारों को राहत देने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों की प्रशंसा ज़रूरी की जाती है। साथ ही साथ यह अनुशंसा भी की जानी चाहिए है कि

प्रेम कुमार आनंद, कार्यक्रम अधिकारी – आर्थिक न्याय, ऑक्सफेम इंडिया, क्षेत्रीय कार्यालय, पटना

(कोशिश चैरिटेबल ट्रस्ट, पटना के द्वारा स्लमों में कराये गए सर्वे से प्राप्त तथ्यों के उल्लेख की सहमति के लिए संस्था को धन्यवाद.)

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