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घर वापसी में छात्रों और मजदूरों के बीच हुए भेदभाव ने खड़ा कर दिया ‘क्लास’ का सवाल

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ट्रेन में बैठने के लिए लाइन में लगे प्रवासी मज़दूर

लॉकडाउन के तीसरे चरण में जब सरकारें मजदूरों की घर वापसी करा रही हैं ऐसे में तमाम सारी दिक्कतें भी सामने आ रही हैं। सरकारों के तमाम दावों की पोल भी खुल रही है। इसी बीच छात्रों की मुफ्त वापसी लेकिन मज़दूरों से पैसे लेकर उन्हें उनके घरों तक पहुंचाने की सरकार की योजना ने ‘क्लास’ की बहस को फिर से जिंदा कर दिया है।

ट्रेन में हुई मज़दूरों के साथ बदसलूकी

वैशाली के राजेश कुमार बैंगलोर में मार्बल, ग्रेनाइट का काम करते हैं। ‘द बिहार मेल’ से बात-चीत के दौरान वो बताते हैं,”ट्रेन में हमसे गंदा व्यवहार किया गया। टॉयलेट के पास खाना पानी रख दिया गया मानो हम अछूत हैं। लोग लड़ते रहे। सोशल डिस्टेंशिंग का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखा गया। 910 रूपए के टिकट के बदले 1050 रूपए लिए गए।”

वो आगे कहते हैं, “हम 21 दिन क्वरंटाइन रहेंगे तो सरकार पांच सौ रूपए देगी लेकिन उसी दौरान परिवार जो बीस हजार कर्जा कर चुका है पांच रूपए सैकड़ा के ब्याज पर उसका सरकार क्या करेगी? यहां बिहार में रोज़गार तो है नहीं, मजबूरन फिर से लॉकडाउन के बाद जाना ही पड़ेगा।”

बैंगलोर के होटल में काम करने वाले सदरे आलम बताते हैं कि शुरुआत में तो होटल मालिक ने कहा कि हम साथ हैं लेकिन महीने में लगभग पूरा काम करने के बाद भी तनख्वाह काट कर दी गई। खाने की दिक्कत होने लगी थी। अगर हमारे बिहार में रोजगार होता तो हमें इस तरह बाहर जाने की जरूरत ही क्या थी?

ट्रेन में चढ़ने के लिए लाइन में लगे प्रवासी मज़दूर

टिकट से ज़्यादा वसूला गया किराया

एक तरफ तो सरकारें कह रही हैं कि वो मजदूरों को फ्री में वापस ला रही हैं लेकिन सच्चाई इससे अलग है। मजदूरों ने बताया कि उनसे 910 रूपए के टिकट पर 1050 लिए गए हैं। कोटा से छात्रों को बड़ी संख्या में वापस घर लाया गया है। छात्रों का कहना है कि उनसे किसी भी तरह का कोई किराया नहीं लिया गया है।

कोटा में मेडिकल की तैयारी करने वाले और पटना के अभिषेक राजा बताते हैं कि कोटा से लौटने वाले छात्रों का कोई किराया नहीं लगा है। कोटा में बिहार के रहने वाले छात्रों के मोबाइल पर डीएम की तरफ से एक मैसेज आया उसके बाद उनसे किसी भी तरह का किराया नहीं लिया गया।

रेलेवे ने कही किराए में 85% छूट देने की बात

इसी दौरान ये बातें भी कही जा रही थी कि रेलवे ने 85% किराया माफ किया है और बाकि 15% किराया राज्य सरकारें देंगी। रेलवे की तरफ से सफाई देते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि रेलवे ने कभी भी किसी मज़दूर से किराया लेने की बात नहीं कही। उन्होंने बताया कि रेलवे पहले ही किराए का 85% दे रही है बाकि 15% राज्यों को देना होगा।

बाद में इसको लेकर तमाम तरह के तर्क सरकार द्वारा और रेलवे द्वारा दिए जा रहे हैं, जिसमें कहा जा रहा है कि रेलवे इन मजदूरों को किराए में सब्सिडी दे रही है। ट्रेनें अपनी पूरी क्षमता के अनुसार भर कर नहीं चल रही हैं जिससे रेलवे को नुकसान हो रहा है। दूसरी तरफ से वापस आते हुए सवारी न होने के कारण भी रेलवे को नुकसान हो रहा है। ये सब को मिलाकर 85% सब्सिडी देने का दावा रेलवे कर रहा है।

क्लास के आधार पर मज़दूरों के साथ हो रहा है अन्याय

इन सब के बीच हमारे समाज और हमारी व्यवस्था के लिए कई सवाल हैं जो राज्य के कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर आघात कर रहे हैं। हम सब जानते हैं कि किसी भी मजदूर, वंचित तबके का लड़का बाहर इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी करने नहीं जा सकता है जो लड़के बाहर तैयारी करने जा रहे हैं उनके परिवार की आर्थिक स्थिति मजदूरों की आर्थिक स्थिति से बेहतर होती है लेकिन उनसे किराया नहीं लिया गया जबकि मजदूरों से किराए से भी अधिक पैसा वसूला गया।

घर लौटते प्रवासी मज़दूर (फाइल फोटो)

छात्रों से किराया नहीं लिया जाना चाहिए लेकिन इसके साथ ही मजदूरों को भी मुफ्त सेवाों के तहत वापस लाया जाना चाहिए। मजदूर वर्ग के सामने आज जिस तरह से रोजी-रोटी का संकट है, ऐसे में उनसे हजारों रूपए किराए के तौर पर वसूलना कहीं से भी कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के अनुरूप नहीं है।

इस तरह की घटना समाज में ‘क्लास’ यानी वर्ग के आधार पर बंटवारे को और बढ़ा रही हैं अवधारणा पर होने वाली बहसों को बढ़ा रही है। यहां सम्पन्न तबके को ही को ही सारी सुविधाएं दिया जा रहीं हैं लेकिन जिसको वास्तव में इसकी आवश्यकता है, वो राज्य की नज़र में दूर-दूर तक इसका हकदार दिखाई नहीं देता है।

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