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क्या हमारी सरकार मज़दूरों को इंसान समझती है?

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गरीब मज़दूर

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मालगाड़ी ट्रेन के नीचे आकर 16 मज़दूरों की मौत हो गई है। ये मज़दूर मध्यप्रदेश की ओर जा रहे थे और चलकर थकने के बाद ये लोग रेलवे ट्रैक पर सो गए थे। अफसरों के मुताबिक ये दर्दनाक हादसा आज सुबह 5 बजकर 15 मिनट पर हुआ।

इस पर प्रधानमंत्री ने शोक जताया और अपना काम पूरा कर दिया। इतने दिनों से देश में मज़दूर चलते हुए सफर कर रहे हैं लेकिन इन मज़दूरों की सुनने वाला कोई नहीं है। विदेश से लोगों को देश में लाने के लिए प्लेन भेजे जा रहे हैं लेकिन मज़दूरों को अपना सफर खुद पैदल तय करना पड़ रहा है।

हमारे प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि कोरोना की इस लड़ाई में हमारा देश दुनिया के सभी देशों के साथ है। बेहतर ये होता प्रधानमंत्री जी दुनिया से पहले इन मज़दूरों का साथ देते पर मज़दूरों का साथ देकर कोई ग्लोबल लीडर कैसे बन सकता है ?

मज़दूर तो मज़दूर हैं जिनकी आवाज़ नहीं होती बस उनकी ज़िन्दगी में आंसू होते हैं। इनके पास आधार कार्ड होता है पर इनको किसी का आधार नहीं होता है और इनकी जान की कोई कीमत नहीं होती। किसी को इनके होने न होने से खासा फर्क भी नहीं पड़ता है, शिवाय इनके परिवार के।

एक नज़र ‘हिंदी मीडियम’ फिल्म पर

मैं लेख की शुरुआत ‘हिंदी मीडियम’ फिल्म के डायलाग के साथ करना चाहता हूं। फिल्म का एक डॉयलॉग है,”गरीबी में जीना एक कला है, हम सिखाएंगे तुम्हें क्योंकि हम खानदानी गरीब है। हमारा बाप गरीब, दादा गरीब, परदादा गरीब, उसका बाप गरीब, सब गरीब, सात पुस्ते गरीब। ऐसा नहीं कि हम पहले गरीब थे फिर अमीर हो गए फिर गरीब हो गए, नहीं हम शुद्ध गरीब हैं।”

गरीब को गरीब रखने में ही है नेताओं का लाभ

इस बारे में सोचकर आपको हंसी आ रही होगी पर यही इस समाज की सच्चाई है। यहां कहा गया है कि गरीबी में जीना एक कला है लेकिन मैं ये कहता हूं कि गरीब को गरीब रखना ये इससे भी बड़ी कला है जो हमारे नेताओं को बरसों से आती है। गरीब को गरीब रखने में ही इनका फायदा है और इसलिए लोग अब खानदानी गरीब बन चुके हैं।

ऐसा सिस्टम बनाया गया है कि इस गरीबी से बाहर निकलना नामुमकिन हो जाए और ये लोग गरीब ही रहें। मेहनत करने वाले मज़दूर गरीबी का सबसे बड़ा हिस्सा है। इन मज़दूरों के बगैर दुनिया नहीं चल सकती लेकिन ये अपना घर एक दिन भी काम किए बगैर नहीं चला सकते।

गरीबों की सरकार बहुत दफ़े आयी पर हुआ क्या?

हमारे देश में गरीबों की सरकार बहुत आई पर गरीबों को गरीबी से बाहर निकालने वाली सरकार अभी तक नहीं आयी है। सभी सरकारें कहती है कि हम गरीबों की सरकार है। पंडित नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक सभी सरकार गरीबों की ही रही है, ऐसा ये लोग कहते भी है लेकिन किसी ने गरीबों को गरीबी से बाहर नहीं निकाला बस कहा की हम प्रयास कर रहे हैं।

इन मज़दूरों को किसी से एहसान में कुछ नहीं चाहिए क्योंकि ये सब उनका हक़ है, तो सवाल ये है कि क्या इनको उनके हक़ मिलेंगे? क्या सरकार इनको उनके हक़ दिला पाएगी?

मज़दूर चले पैदल, विदेश में फंसे लोगों को विमान सेवा

सरकार मजदूरों के लिए क्या कदम उठा रही हैं?

कोरोना संकट की वजह से जो लॉकडाउन किया गया है, उसमें हम देख रहे है कि मजदूर किस हालात में हैं। सरकार उनके लिए जो कर रही है वह पर्याप्त नहीं है। वहीं दूसरी ओर सरकार उनके लिए जो कुछ कर भी रही है, उसमें भी उनको एहसास कराया जा रहा है कि हम आपके ऊपर एहसान कर रहे हैं।

जबकि उन्हें ज़रूरी सुविधा मिले ये उनका हक़ है। सरकार को ये समझना चाहिए कि मज़दूरों को उनका हक़ पूरे सम्मान के साथ उन्हें मिलना चाहिए।

क्या हमारी सरकार मज़दूरों को इंसान समझती है?

अगर हमारी सरकार मज़दूरों को इंसान समझती तो इन लोगों को 500 से 1000km चलकर जाने की जरूरत नहीं पड़ती। क्वारंटाइन में इन्हें फेंककर खाना नहीं दिया जाता। दो वक्त के खाने के लिए इन्हें इतनी तकलीफ नहीं होती। अगर हमारी सरकार इन्हे इंसान समझती तो मीलों चलने वाले मज़दूरों के बच्चों के आंसू उसे दिखाई देते।

गरीब मज़दूर

इन मजदूरों के लिए बिना काम किए एक दिन भी घर चलाना बहुत मुश्किल होता है। ये जहां पर काम करते थे, वहां से इन्हें निकाला गया। जहां रहते थे वहां शहरों में इन्हें घर छोड़ने को मजबूर किया गया।

मजदूरों के लिए विशेष ट्रेन चलाने में 38 दिन क्यों लग गए

आलम यह है कि मज़दूरों के पास ना रहने के लिए घर है, ना खाना और ना ही इन्हें अपने घर जाने की सुविधा ही मिली।

हमारी सरकार विदेश में फंसे लोगों को विशेष फ्लाइट से देश में लाई, कोटा में फंसे स्टूडेंट्स के लिए विशेष बसों का इंतजाम किया लेकिन मज़दूरों के लिए विशेष रेल का इंतजाम करने के लिए इन्हे 38 दिन लगे। ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि वे सरकार के लिए ‘विशेष’ नहीं थे।

क्या आप जानते हैं ये मज़दूर कौन हैं?

ये वही मजदूर हैं जो बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी करते हैं, आपके लिए सड़क बनाते हैं, आपका प्लेन जहां उतरता है वह एयरपोर्ट इनकी ही मेहनत से बनता है। आपका शहर साफ करने वाले सफाई कामगार यही लोग हैं, आपके घर में खाना और ज़रूरी चीज़ें समय पर पहुंचती हैं, इसकी वजह यही मज़दूर है। ऐसा कोई भी सेक्टर नहीं जो इनके बगैर चल सकता है।

ये चाहे तो पूरा देश थम सकता है लेकिन इनकी खुद की कोई पहचान ही नहीं है। इनकी खुद की आवाज़ नहीं है क्योंकि इनको ट्विटर पर हैश टैग ट्रेंड काराना नहीं आता है। जिस दिन ये आवाज़ उठाएंगे। इनका हैश टैग चलेगा तब सरकारें बदल जाएगी, देश थम जायेगा, सबका जीना मुश्किल हो जायेगा।

लेकिन अफ़सोस ऐसा होने नहीं दिया जाता और इनकी मजबूरी ऐसी होती है कि ये भी ऐसा नहीं कर सकते हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि इनकी आवाज़ हम सब बने और इनको इनके हक़ मिले।

लॉकडाउन में परेशान गरीब मज़दूर

मजदूरों को उनका हक मिलना ही चाहिए

मजदूर को हक़ है कि वे खुद को और अपनों को सुरक्षित रख सकें। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य दिला पाएं।

इनको हक़ है कि उन्हें ज़रूरी सुविधाएं मिले। इनको समान अधिकार और न्याय मिले। साथ ही इन्हें सम्मान और इज्जत भरी ज़िन्दगी भी मिले।

प्रधानमंत्री महोदय मीलों चलने की कोई माफ़ी नहीं होती

मजदूरों को जो तकलीफें लॉकडाउन की वजह से हो रही हैं, उसके लिए प्रधानमंत्री ने माफी मांगी है। मैं प्रधानमंत्री और सरकार से कहना चाहता हूं कि भूखे पेट बच्चों के साथ मीलों चलना इसकी कोई माफी नहीं हो सकती और ना ही इनका दर्द सरकार में कोई समझ पाया है।

सराकर को सोचना चाहिए कि राहत पैकेज जो उपलब्ध कराया गया है, क्या वह वास्तविक रूप से 3 माह के लिए पर्याप्त है?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गरीबों के लिए 17,000 करोड़ का पैकेज दिया और कहा की इसका फायदा 80 करोड़ गरीबों को मिलेगा। इसका मतलब ये है कि सरकार ये मानती है कि देश में 80 करोड़ गरीब लोग हैं।

यह पैकेज देखने में बड़ा लग रहा है पर जब इसे 80 करोड़ लोगों में बांटा जायेगा। इससे कम से कम 3 महीने लोगों को गुजारने हैं तब सोचिये कि यह पैकेज कितना बड़ा है?

फिर भी मान लिया कि यह अच्छा कदम है लेकिन फिर भी यह पर्याप्त नहीं है। इनका हक़ है कि इनको इससे बड़ा पैकेज मिले और ये सुनिश्चित किया जाए कि इस कोरोना संकट में ज़रूरी सुविधाएं इन्हें मिलें।

सरकार यदि चाहे तो सब मुमकिन है

मुझे लगता है सरकार के लिए ये मुमकिन है। हज़ारों करोड़ का फ्रॉड करके बैंकों को लूट के लोग विदेश जा सकते हैं। खुद को इंडस्ट्रियलिस्ट समझने वाले लोग बैंको का लोन चुका नहीं पाते हैं।

बहुत सारे लोगों का लोन माफ किया जाता है अगर यह सब हो सकता है तो मजदूरों के लिए सरकार और भी बड़ा पैकेज दे सकती है।

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