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“DU Teachers stop ignoring us”: DU’s SOL Student writes Open Letter to DU Teachers & DUTA

हम दिल्ली विश्वविद्यालय के मुक्त शिक्षा विद्यालय (एसओएल) छात्र इस पत्र के माध्यम से आप सबके सामने ऑनलाइन परीक्षा के कारण हम छात्रों को होने वाली समस्याओं के बारे में बात करना चाहते है| हालाँकि गरीब और निम्न मध्यम वर्ग से आये हम छात्रों की समस्याओं को विश्वविद्यालय प्रशासन, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों और दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) द्वारा समय-समय पर नज़रंदाज़ किया जाता रहा है और अभी भी किया जा रहा है, फिर भी हम अपनी समस्याओं को आपके सामने रखना चाहेंगे|

13 मई को दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए ऑनलाइन परीक्षा कराने का मनमाना फैसला लिया गया| मनमाना इसलिए क्योंकि प्रशासन द्वारा इस सम्बन्ध में न ही छात्रों की राय ली गयी और न ही शिक्षकों से इस सम्बन्ध में कुछ पूछा गया| ऑनलाइन परीक्षा के कारण छात्रों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को देखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय समुदाय द्वारा इस फैसले का विरोध किया जाना स्वाभाविक ही था| परन्तु, इस विरोध की अपनी एक सीमा रही है और शिक्षकों का यह विरोध महज दिल्ली विश्वविद्यालय के रेगुलर कॉलेजों से औपचारिक शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों की समस्याओं तक ही सीमित रहा है, और इस कारण इसके विरोध में जो शिक्षकों द्वारा सुझाव भी दिये जा रहे हैं, वो सिर्फ रेगुलर पद्धति में पढ़ने वाले छात्रों की चिंताओं से जुड़े हैं| इस फैसले से दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉरेसपोंडेंस यानी एसओएल से पढ़ाई कर रहे करीब 1 लाख से ज्यादा तृतीय वर्ष के छात्रों पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है| इस सम्बन्ध में हम एसओएल के छात्र आपके सामने उन समस्याओं को रखना चाहते हैं, जो उन्हें ऑनलाइन या ओपन बुक परीक्षा के कारण होंगी|

इस सम्बन्ध में हम आपको बताना चाहेंगे कि डीयू के एसओएल में पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र समाज के निम्न-मध्यमवर्गीय व गरीब परिवारों से आते हैं, और और ज्यादातर अपने परिवारों से पढ़ने वाली पहली पीढ़ी हैं| साथ ही, ज़्यादातर छात्रों के परिवार वाले दिहाड़ी मजदूर हैं और इस संकट के समय उनके परिवारों को जीवन और जीविका को लेकर बहुत ही दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है| हम आपको यह भी बताना चाहते हैं कि अगर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा ऑनलाइन परीक्षाएं कराई जाती है तो हमें निम्न परेशानियों का सामना करना पड़ेगा:

  1. एसओएल में पढ़ने वाले छात्रों के एक बड़े हिस्से के पास कंप्यूटर, लैपटॉप या बेहतर स्मार्टफ़ोन की सुविधा नहीं है, जो ऑनलाइन परीक्षा देने के लिए ज़रूरी हैं| ऐसे में हम छात्रों के लिए ऑनलाइन परीक्षा में बैठ पाना असंभव होगा| इसके साथ ही, परीक्षा में बैठने के लिए स्थिर व तेज़ इंटरनेट की सुविधा का होना बहुत जरुरी है, लेकिन ज्यादातर एसओएल छात्रों के पास यह सुविधा नहीं हैं|
  2. डीयू प्रशासन द्वारा अपने इस फैसले को सही ठहराने के लिए यह कहा जा रहा है कि छात्र ओपन बुक परीक्षा यानी किताब में से देखकर परीक्षा दे सकते हैं| परन्तु हम एसओएल छात्रों की बड़ी समस्या यही है कि हमे अभी तक पूरा स्टडी मटेरियल नहीं दिया गया है जिसमे से देखकर हम अपनी परीक्षा दे सकें| ध्यान देने की बात यह है कि एसओएल का स्टडी मटेरियल अपूर्ण होने के साथ बहुत ही लापरवाही के साथ बनाई गयी है| यह मटेरियल सिर्फ खराब और अधूरे ही नहीं हैं, बल्कि गलतियों से भरे हुए हैं| इस स्टडी मटेरियल में भारी गल्तियाँ हैं, जैसे शब्द और व्याकरण में गल्तियाँ, गलत तथ्य दिया जाना, बेहद खराब अनुवाद होना और बिना लेखक का नाम बताए दूसरी जगह से पाठ डालना| साथ ही, बहुत से स्टडी मटेरियल में तो लेखक का न तो नाम है और न ही पद| कई स्टडी मटेरियल तो प्रशिक्षित शिक्षकों या विशेषज्ञों द्वारा नहीं बल्कि शोध छात्रों द्वारा तैयार किए गए हैं| यह मटेरियल इतने खराब हैं कि शिक्षक इन्हें रेगुलर छात्रों को पढ़ने के लिए भी नहीं देते हैं| ऐसी स्थिति में ओपन बुक परीक्षा में भी हम गलत उत्तर ही लिखेंगे| स्टडी मटेरियल में सुधार और किताबो के लिए हम छात्र पिछले कई सालो से प्रशासन से शिकायत करते आये है लेकिन अभी तक प्रशासन द्वारा उसका कोई समाधानं नहीं निकाला गया है| अब अगर ऑनलाइन परीक्षा होती है तो ज़्यादातर छात्र इन बेहद खराब स्टडी मटेरियल या गाइड के कारण फेल ही होंगे, जिससे उनके भविष्य पर बहुत ही बुरा असर पड़ेगा|
  3. परीक्षा देने के लिए देने के लिए घर में शांतिमय माहौल और एक अलग कमरे का होना बहुत जरुरी है| परन्तु निम्न मध्यम-वर्गीय और गरीब घरों से आये हम छात्रों के पास ऐसी सुविधा नहीं है| ज़्यादातर एसओएल छात्र बहुत ही छोटे कमरों में अपने पूरी परिवार के साथ रहने को मजबूर हैं| गरीब घरों के इन छात्रों के लिए जगह की कमी होने के कारण बिना किसी समस्या के पढ़ाई कर पाना संभव नहीं है| ऐसे में हमारे लिए घर बैठकर परीक्षा देना बहुत मुश्किल है|

हम एसओएल छात्रों द्वारा ऑनलाइन परीक्षा के विरोध में अपने मुद्दों को उठाए जाने के बावजूद डूटा द्वारा 21 मई को जारी प्रस्ताव में कहीं भी हमारी समस्याओं के विषय में बात नहीं की गयी| इसके अलावा, डूटा द्वारा हाल में जो सर्वेक्षण जो कराया गया है उसमें ज़्यादातर हिस्सा लेने वाले छात्र रेगुलर मोड के छात्र हैं, जिन्होंने ऑनलाइन परीक्षा को लगभग पूरी तरह से नकारा है| इसी सर्वेक्षण के संदर्भ में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रशासन को यह सुझाव दे रहे हैं कि पिछले सेमेस्टरों के परिणामों और इस सेमेस्टर की आंतरिक परीक्षा का कुछ औसत निकालकर अंतिम वर्ष के छात्रों को पास कर दिया जाये| मगर, डूटा ऑनलाइन परीक्षा के खिलाफ हो रहे विरोध के दौरान तो यह कहता रहा है कि ऑनलाइन शिक्षण ही ठीक से नहीं हुआ है| अगर, ऑनलाइन शिक्षण ही ठीक से नहीं हुआ है, तो फिर आंतरिक परीक्षा करवाने का सारा दावा ही अंतर्विरोधी है| 

लेकिन, इसी संबंध में एसओएल छात्रों के मुद्दों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया जा रहा है| ज्ञात हो कि एसओएल में आंतरिक परीक्षा का प्रावधान नहीं है| इसलिए आंतरिक परीक्षा के आधार पर उनका परिणाम घोषित किए जाने का विकल्प ही नहीं है| इस संदर्भ में, अगर रेगुलर छात्रों के लिए पिछले सेमेस्टरों और आंतरिक परीक्षा का औसत निकाल कर उनके लिए परिणाम घोषित कर दिया जाता है, तो इससे सबसे बुरी तरह एसओएल के छात्र प्रभावित होंगे क्योंकि रेगुलर छात्रों के पास तो प्रतियोगिता में बैठने और आगे की पढ़ाई का अवसर होगा, लेकिन लाखों वंचित एसओएल छात्रों के पास यह अवसर नहीं होगा| ऐसी स्थिति में, वो न आगे प्रतियोगिता में बैठ पाएंगे और न ही आगे की पढ़ाई के लिए ही उत्तीर्ण हो पाएंगे| ऐसे में पहले से ही वंचित और हाशिये के तबकों से आ रहे छात्रों के लिए यह बेहद विकराल त्रासदी होगी| अगर, पिछले वर्षों के अंकों का औसत का विकल्प चुना जाता है, तो भी यह एसओएल छात्रों के लिए बेहद नुकसानदायक होगा, क्योंकि पढ़ाई के लिए बेहद खराब माहौल मिलने के कारण पिछले वर्षों में बहुसंख्यक छात्रों के बहुत ही खराब अंक आए हैं| ऐसे में, अंतिम वर्ष की परीक्षा न देने से छात्रों का अंतिम साल का परिणाम भी बेहद खराब रहेगा| ऐसी स्थिति में, डूटा के यह प्रस्ताव आपराधिक रूप ले लेते हैं|

डीयू प्रशासन द्वारा हमारी इन समस्याओं को नज़रअंदाज कर ऑनलाइन परीक्षा का प्रस्ताव पारित करना यह दिखाता है कि वह हम गरीब छात्रों की समस्याओं के प्रति कितना संवेदनहीन है| परन्तु उससे बड़ी चोट हम छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की उदासीनता से लगी है, जिसने हमारी समस्याओं को पूरी तरह से नज़रंदाज़ किया है| आज राष्ट्रीय आपदा का समय है| ऐसे में अभूतपूर्व मगर संभव कदम उठाए जाने की आवश्यकता है| आज इस आपदा के समय शिक्षकों को न केवल रेगुलर बल्कि उससे बड़ी संख्या में एसओएल छात्रों की तात्कालिक समस्याओं को उठाने की बेहद ज़रूरत है| इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है कि डीयू द्वारा ऑनलाइन/ओपन बुक परीक्षा आयोजित करने के फैसले को वापस लिया जाए| साथ ही, यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि देश में पहले भी विभिन्न विश्वविद्यालयों में आपदा के समय शिक्षण संस्थानों में सत्रों को अनिश्चितकालीन समय के लिए आगे बढ़ाया गया है| इसलिए, सेमेस्टर और अकादमिक सत्र को इस आपदा के समय अनिश्चितकालीन समय के लिए आगे बढ़ाया जाना चाहिए, और लॉकडाउन के बाद कक्षा शिक्षण एक निश्चित अवधि के लिए आयोजित किया जाना चाहिए| इसके बाद ही पारंपरिक पद्धति द्वारा परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए|  एसओएल और रेगुलर छात्रों की परीक्षा पद्धति में समानता बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिए डूटा द्वारा सभी छात्रों (रेगुलर एवं कॉरेसपोंडेंस) के लिए समान पारंपरिक प्रणाली द्वारा परीक्षा हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए| साथ ही, किसी भी छात्र के भविष्य पर कोई क्षति न पहुंचे इसके लिए डूटा की यह रणनीति होनी चाहिए कि केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय पर देश-भर के विश्वविद्यालयों में अकादमिक सत्रों को आगे बढ़ाने के लिए दबाव बनाए| इसके अतिरिक्त, सरकारी नौकरियों की प्रतियोगिताओं में 2020 बैच के सभी छात्रों 6 महीने की छूट का प्रावधान किया जाना चाहिए|

हमारे बेहद ज़रूरी मुद्दों को नज़रअंदाज़ कर सिर्फ रेगुलर छात्रों के मुद्दों को ही शिक्षक संघ द्वारा आगे रखने से ऐसा प्रतीत होता है कि औपचारिक शिक्षा से बाहर हम छात्रों के मुद्दों को जानबूझ कर विमर्श से बाहर कर दिया जाता है| क्योंकि अंततोगत्वा यह समस्या तो उन त्रस्त घरेलू कामगारों, ऑटो रिक्शा ड्राइवरों, छोटे दुकानदारों और गरीब मजदूरों के बच्चे और बच्चियों की हैं- आपके अपने बच्चों की नहीं| यही कारण है कि औपचारिक उच्च शिक्षा के क्षेत्र से बाहर इस बड़े हिस्से की नज़र में, ऑनलाइन परीक्षा के विरोध में शिक्षकों की सारी चिंताएँ केवल रेगुलर मोड के सुविधासंपन्न छात्रों की समस्याओं का निवारण करने के लिए ही हैं|    

हम एसओएल के छात्र आप दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों और दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) से आशा करते हैं कि आप हमारी इन समस्याओं को व्यक्तिगत और शिक्षक संघ के सदस्य के तौर पर मजबूती से उठाएंगे|

मोहित गौर,

बीए प्रोग्राम (तृतीय वर्ष), एसओएल /

सदस्य,

क्रांतिकारी युवा संगठन (KYS)

 

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