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क्या दलित समुदाय रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों की ओर आकर्षित हो रहे हैं?

ramayana

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दोस्तों आजकल जब से लॉकडाउन हुआ है तब से आपने देखा होगा सभी टीवी एंटरटेनमेंट चैनलों पर रामायण, महाभारत, श्री कृष्णा, शिवजी, महाराणा प्रताप आदि सारे धारावाहिक दिखाए जा रहे हैं।

उक्त कार्यक्रमों का एक ही उद्देश्य है, हिंदुत्व को बढ़ाना जिसमें आप देख सकते हैं कि किस तरह से वर्ण व्यवस्था का पालन करते हुए दिखाया गया है। इनमें दिखाया जा रहा है राजतंत्र लोकतंत्र से अच्छा है, राजा प्रजा का सम्बन्ध, मुसलमान के प्रति नफरत, भगवान की लीला आदि।

मुझे इन पौराणिक कथाओं से आपत्ति नहीं है

मुझे आपत्ति नहीं है इन पौराणिक कथाओं से बल्कि आपत्ति है इसके प्रस्तुतीकरण से। इनके भगवान या हिंदुत्व के तरफ झुकाव से और इसमें सबसे ज़्यादा नुकसान दलितों का होने वाला है।

आज के समय में दलित और आदिवासी समुदायों का झुकाव भी इन धारावाहिकों की तरफ बढ़ रहा है। साज़िश के तहत उनके दिमाग में यह बैठाया जा रहा है कि कैसे भगवान अवतरित होते हैं और उनकी पूजा करनी चाहिए।

क्या यह ब्रेनवॉश का एक तरीका है?

उन्हें आध्यात्मिक बनाने की कोशिश जारी है। यह एक तरह का ब्रेनवॉश करने का तरीका है, क्योंकि टेक्नोलॉजी के आगाज़ के बाद से धीरे-धीरे आडम्बर, पाखंडवाद का अंत और जागरुकता की शुरुआत हुई थी मगर लॉकडाउन के दौरान इन धारावाहिकों के ज़रिये टेक्नोलॉजी के सुनहरे युग का अंत किया जा रहा है। आने वाले समय में देखिएगा कि किस तरह मंदिरों में भीड़ लगेगी।

दलित समाज पहले माता, जगराता, नेजा, चढ़ावा आदि में काफी पैसे खर्च करते थे। अब जब उन्होंने उन चीज़ों में पैसे खर्च करना छोड़ दिया था तो उन्हें फिर से भ्रमित किया जा रहा है ताकि वे इन्हीं मंदिरों में जाकर पुजारियों की जेब भरने का काम करें और इनकी कमाई जारी रहे।

इसी वजह से इन धारावाहिकों का प्रसारण किया जा रहा है जिससे आप अपना अस्तित्व खो सकें और फिर से वर्ण व्यवस्था को आसानी से अपना पाएं।

दलितों के दिमाग में पढ़ाई-लिखाई छोड़कर धर्म, कर्म और पाखंड का ज्ञान भरने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है ताकि उन्हें आसानी से गुलाम बनाने की प्रक्रिया शुरू की जा सके।

दलितों को इस ओर ध्यान देना चाहिए

दलितों को हमेशा याद रखना चाहिए कि यह पढ़ने-लिखने का अधिकार आपको बाबा साहेब अंबेडकर, ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के संघर्षपूर्ण जीवन से मिला है। आज अगर फिर से पाखंड में गए तो ये किसी अंबेडकर को जन्म नहीं लेने देंगे।

इसलिए ब्रेनवॉश से बचते हुए अपने पूर्वजो के संघर्ष को पढ़िए और उनकी तरह आगे बढ़िए। यह मेरे अपने निजी विचार हैं। किसी को ठेस पहुंचाना मेरा कोई इरादा नहीं है।

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