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पंचायती राज व्यव्स्था की राजनीति में भी सत्ता का लोभ हो रहा है हावी

भारतीय पंचायती राज व्यवस्था प्राचीन से एक अनुसंधान केंद्र रहा है। भारत में ग्राम पंचायतों का अस्तित्व वैदिककाल से ही रहा है। उस समय ग्राम पंचायत पांच प्रशासनिक इकाइयों में से एक था। ग्राम के मुखिया को ग्रामिणी कहा जाता था।

ब्रिटिशकाल में पंचायती व्यवस्था पर लगा लगाम

वैदिककाल के बाद भारत में प्रशासनिक इकाई के रूप में ग्राम पंचायत का अस्तित्व मुगलकाल तक रहा लेकिन ब्रिटिशकाल में पंचायती व्यवस्था छीन्न-भिन्न हो गई ।

अंग्रेज चाहते थे कि प्रशासन से सम्बन्धित कार्य यथासम्भव उनके कर्मचारियों के हाथों में ही रहे। इसके परिणामस्वरूप, स्थानीय स्वशासन व्यवस्था यानि ग्राम पंचायत का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होने लगा।

इस बीच प्रशासनिक स्तर को छोड़कर सामाजिक स्तर पर प्रत्येक जाति अथवा वर्ग में उनकी अलग-अलग पंचायतें बनी रहीं, जो सामाजिक जीवन को नियन्त्रित करती थी।

स्वतंत्रता के बाद पंचायती राज व्यवस्था की कवायद हुई तेज

वर्ष 1947 में मिली स्वतन्त्रता के बाद पंचायती राज व्यवस्था लागू करने के प्रयास तेज हो गए। भारतीय संविधान में पंचायतों के गठन के लिए प्रावधान किया गया।

भारतीय संविधान में राज्य के नीति-निदेशक तत्वों के अन्तर्गत कहा गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियां और अधिकार प्रदान करेगा, जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हो।

12 जनवरी, 1958 को राष्ट्रीय विकास परिषद ने बलवन्त राय मेहता समिति के प्रजातान्त्रिक विकेन्द्रीकरण के प्रस्तावों को स्वीकार करते हुए राज्यों से कार्यान्वित करने को कहा गया।

संविधान में हुआ 73वां और 74वां संसोधन

इसके बाद 2 अक्टूबर, 1959  को पंचायती राज व्यवस्था का शुभारम्भ राजस्थान के नागौर जिले में किया गया। ग्राम पंचायत के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए पंचायती राज से सम्बन्धित अन्य बातों को संविधान में शामिल करने के लिए वर्ष 1993 में संविधान में संशोधन (73वां और 74वां संशोधन) किए गए।

73वें संशोधन के द्वारा पंचायती राज के ‘त्रिस्तरीय ढांचे’ का प्रावधान कर प्रत्येक स्तर में एक-तिहाई स्थानों पर महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई तथा पंचायतों का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए निर्धारित किया गया।

74वां संशोधन नगरपालिकाओं से सम्बन्धित है, जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि नगरपालिकाएं तीन प्रकार की होंगी-नगर पंचायत, नगर परिषद एवं नगर निगम।

इन संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीट तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए भी कुछ सीटें आरक्षित होंगी एवं पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्षों का होगा।

संविधान के 73वें एवं 74वें संशोधन द्वारा 11वीं अनुसूची में कई विषयों को शामिल किया गया है। इनमें कृषि, भूमि सुधार, लघु सिंचाई, पशुपालन, मत्स्यपालन, खादी ग्रामोद्योग इत्यादि प्रमुख है ।

पंचायती राज व्यवस्था को इसके अधिकार क्षेत्र एवं कार्यप्रणाली के कारण स्थानीय स्वशासन भी कहा जाता है

तीन स्तरों पर कार्य करती है यह व्यवस्था

वर्तमान समय में इसके तीन स्तर हैं– ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद। ग्राम पंचायत स्थानीय स्वशासन की सबसे छोटी ईकाई है। एक गाँव या कुछ छोटे-छोटे गाँवों को मिलाकर पंचायत का निर्माण किया जाता है

ग्राम पंचायत मुख्यतः तीन कार्यों में अपना योगदान देता है। ये कार्य हैं– नागरिक सुविधाएं, समाज कल्याण के कार्य एवं विकास कार्य।

नागरिक सुविधाओं के अन्तर्गत नागरिकों के उत्तम स्वास्थ्य एवं जीवन के लिए सफाई, गन्दे पानी के निकास, पीने के लिए स्वच्छ जल, सुविधाजनक आवागमन के रास्ते तथा प्रकाश की व्यवस्था करने के अतिरिक्त बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूलों की समुचित व्यवस्था करना भी ग्राम पंचायत के कार्यों में शामिल है

समाज कल्याण के कार्यों के अन्तर्गत ग्रामीण लोगों के जन्म एवं मृत्यु सम्बन्धी डाटा रखने के साथ-साथ कृषि विकास एवं पशुपालन में भी ग्राम पंचायत की भूमिका अहम होती है। ग्राम विकास के लिए ग्राम पंचायत सड़क, नाली, तालाब, पुस्तकालय, स्कूल, अस्पताल, सामुदायिक भवन इत्यादि का निर्माण करवाती है ।

सत्ता के लोभ ने ग्राम पंचायतों की राजनीति को भी किया है प्रभावित

वास्तव में, देखा जाए तो पचायती राज व्यवस्था सत्ता के विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था है, जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण समुदाय को विकास के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराना एवं उसे राष्ट्र की उन्नति में सक्रिय रूप से सहयोगी बनाना है

लेकिन सही मायने में अब तक इन उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो पाई है। आज सत्ता के लोभ का ग्राम स्तर की राजनीति पर भी प्रभाव दिखाई पडने लगा है। जातिवाद, आर्थिक-सामाजिक वैमनस्यता एवं चुनावों के दौरान हिंसा की घटनाओं ने ग्राम पंचायतों की प्रासंगिकता पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया है

ग्राम पंचायतों को लाना होगा सुधार

ग्राम पंचायतों को इनसे ऊपर उठकर गाँवों के विकास की बात सोचनी होगी, जिससे गाँवों का वास्तविक विकास हो सके तथा ग्रामीणों का शहरों की ओर पलायन पर नियन्त्रित हो पाए।

भारत गाँवों का देश है और ग्राम विकास में ग्राम पंचायत की मुख्य भूमिका होती है, इसलिए ग्राम पंचायत का सुचारु रूप से कार्य करना न केवल गाँवों, बल्कि पूरे देश के हित के लिए भी आवश्यक है

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