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बिहार: क्वारेंटीन सेंटर में अव्यवस्था की शिकायत पर भड़के BDO, कहा मीडिया वालों के भी हाथ पैर तोड़ देंगे

condition of Bihar's Quarantine Centers

बिहार के क्वारंटाइन सेंटर में अव्यवस्था से नाराज लोग तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

इस समय पूरी दुनिया जब कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रही है तब भारत सहित कई देशों में अर्थव्यवस्था, मज़दूरों के पलायन सहित कई आंतरिक समस्याएं गंभीर रूप से पैदा हुई हैं।

इस बीच देश के कई हिस्सों खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में क्वारंटीन सेंटरों की बदहाली की तस्वीरें सामने भी नहीं आने दी जा रही हैं। पत्रकारों पर लगातार दबाव बनाकर उन्हें ऐसा करने से रोका जा रहा है और इस काम को स्थानीय प्रशासन के अधिकारी बखूबी अंजाम दे रहे हैं। इस संबंध में ताज़ा मामला बिहार राज्य के बक्सर ज़िले का है।

क्या है पूरा मामला?

कोरोनावायरस संकट के चलते लॉकडाउन में बिहार में छह हजार से ज़्यादा क्वारंटीन सेंटर चल रहे हैं, जिनमें 5 लाख से ज़्यादा लोगों को रखा गया है। इनमें से कुछ क्वारंटीन सेंटर ऐसे हैं, जहां से बदइंतज़ामी की तस्वीरें सामने आई हैं।

बक्सर के एक क्वारंटीन सेंटर की घटना ज़्यादा हैरान करने वाली हैं। इस क्वारंटीन सेंटर पर जब प्रवासी मज़दूरों ने बुनियादी सुविधाओं तक के ना मिलने का विरोध किया, तो वहां के बीडीओ साहब के तेवर खासे तल्ख नज़र आए। दरअसल खाने में अव्यवस्था और खाने की गुणवत्ता बहुत खराब होने को लेकर प्रवासी मज़दूरों ने बीडीओ से मीडिया को बुलाकर खुलासा करने की बात कही तो वो गुस्सा हो गए।

उस वीडियो में यह भी साफ तौर पर सुनाई दे रहा है कि मज़दूर बार-बार अव्यवस्थाओं को लेकर मीडिया वालों से शिकायत करने की बात कर रहे थे। इस बात पर बीडीओ साहब भड़क गए और मीडिया कर्मियों के हाथ-पैर तोड़ डालने की धमकी तक दे डाली। उनका अंदाज़ इतना सामंती व्यवहार से भरा था मानो ज़िले की सारी प्रशासनिक ताकत उनके इशारों पर ही चलती हो।

बिहार के क्वारंटाइन सेंटर में अव्यवस्था से नाराज लोग तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

मीडिया के हाथ-पैर तोड़ने की बात करने लगे बीडीओ साहब

प्रभात रंजन बिहार के बक्सर ज़िले में बीडीओ हैं। दरअसल, बिहार के एक क्वारंटीन सेंटर में प्रवासी मज़दूर अधिकारी प्रभात रंजन से अच्छे खाने की मांग कर रहे थे लेकिन अधिकारी किसी की सुनने को तैयार ही नहीं थे। जब मज़दूरों ने इस बदसलूकी की मीडिया में शिकायत करने की बात कही तो प्रभात रंजन मीडिया पर ही रौब झाड़ने लगे।

बता दें कि बक्सर ज़िले के क्वारंटीन सेंटर में प्रवासी मज़दूरों ने बीडीओ से सेनेटाइज़र मुहैया कराने को कहा। इस पर बीडीओ ने मज़दूरों को साबुन से हाथ धोने की सलाह दी। इस बात का प्रवासियों ने जब विरोध किया तो बीडीओ आपे से बाहर हो गए और जब मज़दूरों ने यह कहा कि वो मीडियावालों के सामने सच्चाई बताएंगे तब उन्होनें मीडियाकर्मियों के हाथ-पैर तोड़ने तक की धमकी दे डाली।

यह वही कोरोना वॉरियर हैं जिन पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए प्रधानमंत्री ने देशवासियों से ताली थाली पिटवाई और बाद में मोमबत्ती दिया भी जलवाया पर आज यही योद्धा मज़दूरों और पत्रकारों पर रौब जमाने से बाज नहीं आ रहे हैं। इन्हें इस बात का भी एहसास नहीं कि यह वक्त सामान्य नहीं है। इस समय पूरी सहानुभूति और मानवता से नागरिकों से पेश आने की ज़रूरत है।

लॉकडाउन के बाद से देश में अलग-अलग समस्याएं आ रही हैं सामने

देश में जब से देशव्यापी लॉकडाउन लगा है उसके कुछ दिन बाद से ही सारा कामकाज ठप्प होने से मज़दूरों के पलायन को पूरा देश अभी तक देख रहा है। सरकार के पास ना तो कोई ठोस प्लान है और ना ही ऐसी कोई विस्तृत कार्यनीति जिसकी सहायता से मज़दूरों को सुरक्षित उनके घर पहुंचाया जा सके।

मज़दूरों को उनके गाँव-घर पहुंचने के बाद गाँव के प्राइमरी स्कूलों में क्वारंटीन करने की व्यवस्था राज्य सरकारों को स्थानीय प्रशासन की मदद से कराने की ज़िम्मेदारी थी। लेकिन लगातार देश के कई हिस्सों से क्वारंटीन सेंटरों की बदहाली और प्रशासनिक लापरवाही की तस्वीरें सामने आ रहीं हैं। कहीं बिजली-पानी की समस्या तो कहीं गुणवत्तापूर्ण खाने की समस्या और कहीं तो मज़दूरों की शुरुआती जांच तक ना होने की शिकायतें आ रहीं हैं।

बिहार में कम्युनिटी किचन की तस्वीर

देशभर में क्वारंटीन सेंटरों का हाल है बुरा

आखिर जब इस समय पूरे देश में लगातार देश की सिविल सोसायटी, आम जन और कुछ हद तक सरकारी तंत्र लगातार प्रवासी मज़दूरों की हर संभव मदद करने में जी जान से जुटा है तब ऐसे में इन अधिकारियों का यह अमानवीय व्यवहार काफी चिंताजनक है।

उत्तर प्रदेश के ही कौशांबी ज़िले के सरसवां गाँव में प्राइमरी स्कूल के क्वारंटीन सेंटर की हालत बहुत चिंताजनक है यहाँ पर 14 दिन रहने के बाद जब सोनू वापस अपने अधर गया तो उसे कई तरह की समस्याएं शुरू हो गई थीं। उसने बताया कि स्कूल के अंदर बहुत गंदगी थी और बड़े-बड़े घास के बीच मच्छर इतने ज़्यादा थे कि कोरोना से इंसान बाद में मरेगा मलेरिया और डेंगू से पहले ही मर जाएगा।

सोनू का यह भी कहना था कि स्कूल में सिर्फ बिजली की व्यवस्था ही प्रशासन ने की थी। बाकी ना ही ओढ़ने-बिछाने के लिए कुछ था और ना ही इस प्रचंड गर्मी में पंखे की ही व्यवस्था की गई थी। यहा तक कि दो वक्त का जो भोजन भी ज़िला प्रशासन की गाड़ी लेकर आती है, वो भी खाने लायक नहीं होता है।

जब इन समस्याओं पर ग्राम प्रधान और स्थानीय प्रशासन से बातचीत की कोशिश की गई तो उल्टा पत्रकारों को ही धमकी दी जाने लगी और उन पर अफवाह फैलाने का आरोप लगाया जाने लगा।

बिहार के मोतीहारी में भी पत्रकार को दी गई धमकी

बिहार के ही मोतिहारी ज़िले के ढाका थाने के अंतर्गत एक क्वारंटीन सेंटर में कुछ प्रवासी मज़दूर जो परदेस से आकर क्वारंटीन हुए थे। वे बुनियादी सुविधाओं की माँग को लेकर पिछले हफ्ते प्रदर्शन कर रहे थे। भारतीय जन संचार संस्थान के छात्र और प्रशिक्षु पत्रकार मोहम्मद अकरम को जब इस बात की खबर मिली तो वे क्वारंटीन सेंटर पहुंचकर मज़दूरों से बातचीत करने लगे और इस घटना का वीडियो बनाने लगे।

उन्होंने बताया कि मौके पर मौजूद सीओ और तमाम पुलिसकर्मियों ने जबरन उनका हाथ पकड़कर उनसे उनका मोबाईल छीनने की कोशिश की और धमकी देते हुए वीडियो और फोटो डिलीट करने की बात कहने लगे। बाद में उन्होंने ज़िलाधिकारी से इस बात की शिकायत की तो उन्हें उचित कार्रवाई का आश्वासन मिला।

अकरम ने बताया कि प्रवासी मज़दूरों को जिस तरह की गंदगी और कूड़े के बीच रखा जा रहा है, उससे उनमें गंभीर बीमारियों का ख़तरा पैदा हो जाता है। उन्हें ना ही ढंग का खाना दिया जा रहा है और ना ही पीने का साफ पानी ही मुहैया कराया जा रहा है। आलम यह है कि मज़दूरों को खुद अपने घर से खाना मंगवाना पड़ता है।

जितने भी लोग क्वारंटीन किये जा रहे हैं उनकी जांच की भी कोई ठोस व्यवस्था नहीं है जिससे मज़दूर बीस-बीस दिनों तक वहीं पड़े रहते हैं और गुस्से में आकर कई जगह तो तोड़फोड़ और विरोध प्रदर्शन तक कर रहे हैं।

सरकार के दावों पर खड़े हो रहे हैं सवालिया निशान

अब सवाल यही है कि आखिर जब केन्द्र सरकार ने पूरे बाजे-गाजे के साथ बीस लाख करोड़ का राहत पैकेज जारी किया है और लगातार यह दावा कर रही है कि वह मज़दूरों को हर संभव मदद मुहैया कराेएगी, तब क्वारंटीन सेंटरों से आ रही यह शिकायतें उनके दावों पर सवालिया निशान खड़ा करती हैं।

सबसे ज़्यादा खौफनाक तो यह है कि जिन पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए कोरोना वॉरियर्स और न जाने क्या-क्या संबोधन देकर गुणगान किया जा रहा है उनका मज़दूरों, पत्रकारों और आम जन के साथ व्यवहार कैसा है? इसकी बानगी भी आप बखूबी देख रहे हैं ।

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