Site icon Youth Ki Awaaz

लॉकडाउन: “गरीब तबका सरकारों के लिए महज़ वोट-बैंक जितनी अहमियत रखता है”

migrant labourers going to home amid lockdown

migrant labourers going to home amid lockdown

चीन के वुहान क्षेत्र से उपजी बीमारी ने जब वैश्विक महामारी का रूप लिया तब दुनिया के राजनीतिक एवं आर्थिक ढांचे की खामियां उभरती नज़र आने लगीं।

कोविड-19 महामारी आज एक स्वास्थ्य संबंधित त्रासदी होने के साथ ही साथ एक सामाजिक त्रासदी का रूप भी ले चुकी है, जहां ज्ञान उम्मीद की किरण देता है कि देर-सवेर इस बीमारी का इलाज संभव है।

वहीं, इसके सामाजिक पहलू का इलाज ना कर पाना किसी भी सरकार द्वारा उसके जनमत का निरादर होगा।

आज समाज में गरीब तबका सबसे ज़्यादा परेशान है

घर जाते प्रवासी मज़दूर। फोटो साभार- Getty Images

इस महामारी ने समाज की दुर्गति को सामने लाकर दुनियाभर की सरकारों के विकास के दावों का खोखलापन उजागर किया है। भारत की स्थिति भी इससे हटकर नहीं है। इस महामारी ने साफ कर दिया है कि सरकारें चाहे किसी की भी हों मगर गरीबों की तो बिल्कुल भी नहीं होती हैं।

आज समाज का गरीब तबका सबसे ज़्यादा परेशान है। प्रवासी मज़दूर शहरों से गाँवों में पुन: स्थानांतरित हो रहे हैं। हर रोज़ लोगों की भुखमरी से मौत की खबरें आम बन चुकी हैं।

आखिर आपके विकास के मायने क्या हैं?

इस मुश्किल घड़ी की बदौलत भारत को अपनी प्राथमिकताएं बदलने का मौका मिला है। कई वर्षों तक भारत के राजनेता भारत को वैश्विक ताकत बनाने के सपने दिखाकर मध्यम-वर्ग के लोगों को रिझाते रहे हैं।

समाज का मध्यम वर्ग आंखों में इस सपने को लिए राजनीतिक दलों के उस विकास में विश्वास भी करता है, जो उनके हिसाब से एक “टॉप टू बॉटम” अप्रोच से सम्भव है लेकिन जब समाज का एक बड़ा तबका विकास के हिस्से से वंचित हो तब उस विकास के क्या मायने हैं?

मज़बूत भारत बनाने के लिए समाज का मज़बूत होना बेहद ज़रूरी है

प्रवासी मज़दूर। फोटो साभार- Getty Images

क्या एक मज़बूत समाज कमज़ोर नींव पर टिकने में सक्षम है? क्या बिना स्वच्छता, साक्षरता और स्वास्थ्य के त्रिकोण को मज़बूत किए भारत प्रगति की राह पर चल सकता है?

जहां नेताओं द्वारा भारत की बराबरी अमेरिका जैसे देश के साथ करने के वादे किए जाते हैं, वहां यह समझने की ज़रूरत है कि कमज़ोर नींव पर टिकी इमारत को धराशायी होने में वक्त नहीं लगता है।

चकाचौंध में हम इतने मशगूल हैं कि वास्तविकता को देख ही नहीं पा रहे हैं

भारत एक प्रगतिशील देश है। एक राष्ट्र की प्रगति उसके नागरिकों पर निर्भर करती है। जिस देश में स्वच्छता एक विलासिता हो, क्या उस देश की प्रगति संभव है?

यही हाल हमारे शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र का भी है। भारत के बड़े शहरों की चकाचौंध हमारी नज़र ओझल कर देती है। हम उस चकाचौंध की दूसरी ओर का अंधेरा देख ही नहीं पाते।

इसके लिए ज़िम्मेदार ना सिर्फ बदलती सरकारें हैं, बल्कि मीडिया, विपक्ष और नागरिक भी उतने ही उत्तरदायी हैं। इस महामारी ने साफ कर दिया है कि सरकारें चाहे किसी की भी हों मगर गरीबों से उनका कोई वास्ता नहीं होता है।

इस महामारी के पश्चात सत्ताधीशों को बुनियादी क्षेत्रों पर ध्यान देने की ज़रूरत होगी

लॉकडाउन के दौरान बस के इंतज़ार में बच्चे और प्रवासी मज़दूर। फोटो साभार- Getty Images

इस महामारी के बाद राजनेताओं की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता के बुनियादी क्षेत्रों पर ध्यान दें और विकास की एक “बॉटम टू टॉप” अप्रोच अपनाएं जिसमें समाज का कोई भी वर्ग वंचित ना रहे।

आलोचकों, बुद्धिजीविओं और मीडिया का भी यह उत्तरदायित्व बनता है कि वे सरकार पर कड़ी नज़र रखकर उसकी जवाबदेही निर्धारित करें। सबसे ज़रूरी यह है कि सामाजिक चेतना को जगाया जाए।

इतालवी विचारक ग्राम्शी ने अपनी ‘प्रिज़न नोटबुक्स‘ में आधिपत्य के सिद्धांत (Theory of Hegemony) का उल्लेख किया है। ग्राम्शी कहते हैं कि किसी भी समाज में शासन बनाए रखने के लिए सत्तारूढ़ दल-बल से ज़्यादा सांस्कृतिक एवं वैचारिक साधनों का इस्तेमाल करता है।

भारत की स्थिति भी कुछ इस प्रकार है। ग्राम्शी के इसी सिद्धांत के अनुसार,

अगर इस आधिपत्य को खत्म करना है, तो एक ऐसी वैकल्पिक विचारधारा की लोकप्रियता ज़रूरी है जो सत्तारूढ़ विचारों को टक्कर देने के काबिल हो। भारत में भी एक ऐसी विपक्षी विचारधारा की ज़रूरत है जो साम्प्रदायिकता को टक्कर दे सके और जो लोगों में लोकप्रियता बनाने में भी सक्षम हो।

आम जनता को जागरूक होना पड़ेगा

ज़रूरी है कि अब जनमानस को जागरूक किया जाए और सरकारें असली मुद्दों पर बनें और गिरें। इस आपदा के समय हमें यह पुन: एहसास हुआ है कि समाज का गरीब तबका सरकारों के लिए केवल एक वोट-बैंक होने जितनी ही अहमियत रखता है।

जन-हित में होगा अगर किसी तरह समाज का पिछड़ा वर्ग अपने भेद भुलाकर साथ आए और अपनी संख्या के बल पर सत्तारूढ़ विचारधारा का सामना करे।

भारत का चौमुखी विकास तभी संभव है अगर एक ऐसी विचारधारा अपनाई जाए जो गरीबों के उत्थान को अपनी ज़िम्मेदारी और भारत निर्माण को अपना दायित्व समझे।

Exit mobile version