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लॉकडाउन: वाराणसी में कैसे तबाह हो रहा है करोड़ों के फूलों का कारोबार

दीनापुर वाराणसी का ऐसा अनूठा गाँव है जहां धान-गेहूं नहीं, बल्कि सिर्फ फूलों की खेती होती है। वही फूल जो बाबा विश्वनाथ और काशी के कोतवाल काल भैरव के माथे की शोभा बनते रहे हैं।

यहां के रंग-बिरंगे फूल सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, बल्कि बिहार से कोलकाता तक जाते रहे हैं। दीनापुर के बागवानों के लिए ये फूल सोने से कम नहीं थे लेकिन कोरोना के चलते अब माटी हो गए हैं। फूलों की खेती से समृद्ध और खुशहाल दीनापुर के किसान अब खून के आंसू रो रहे हैं।

दीनापुर गाँव वाराणसी मुख्यालय से करीब दस किलोमीटर दूर है, जहां की आबादी लगभग सात हज़ार है। इस गाँव में जाने के लिए ठीक से सड़कें भी नहीं हैं। इसके बाद भी यहां के लोग लगातार जी तोड़ मेहनत करते रहते हैं।

यहां रहने वाले करीब तीन सौ परिवार सिर्फ फूलों की खेती करते हैं। लगभग तीन सौ एकड़ ज़मीन पीले नारंगी गेंदे तो कभी सफेद बेले, कुंद व टेंगरी और गुलाब से ढका रहता है।

क्या कहती हैं सुनीता देवी?

यहां पर फूलों की खेती करने वाली सुनीता देवी नाम की महिला बताती हैं, “हाड़तोड़ मेहनत करने पर ही फूलों की खेती कर सकते हैं। पौधे लगाना, पानी देना और दिनभर उनकी देखभाल करना आसान काम नहीं है।”

अपने सरकते पल्लू को ठीक करते हुए सुनीता कहती हैं कि फूल आने पर उन्हें तोड़ना, उनकी माला बनाना फिर उसे मंडी में ले जाकर बेचना हर किसी के बूते में नहीं है।

तीस साल से फूलों की खेती कर रहे अनिल बयां कर रहे हैं अपना दर्द

इसी गाँव में करीब तीस साल से फूलों की खेती कर रहे अनिल बताते हैं, “हमें खेती करते देख और कई लोग फूलों की खेती करने लग गए। पूरे तीस साल की ज़िन्दगी में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि हमलोगों को इतना नुकसान हो। ऐसा पहली बार हुआ है कि खेतों में फूल तैयार होकर गिर रहे हैं लेकिन बाज़ार तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।”

अपने सर पर हाथ रखकर बैठते हुए अनिल कहते हैं कि लॉकडाउन के चलते अब हमारी पूरी खेती ही नहीं, समूचा कारोबार बैठ गया है।

लॉकडाउन में मंदिर बंद, मंडी बंद, आखिर कहां लेकर जाएं अपने फूलों को?

फोटो साभार- रिज़वाना तबस्सुम।

इसी गाँव से सटा हुआ है चिरई गाँव। करीब दस हज़ार की आबादी वाले इस गाँव में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनकी आजीविका फूलों पर टिकी है। कोरोना वायरस ने अब इन्हें तबाह कर दिया है। गुलाब की खेती करने वाले विनोद कुमार को अब इनके फूल चुभ रहे हैं। करीब दस बिस्वा ज़मीन में देसी गुलाब की खेती करने वाले विनोद कुमार कहते हैं कि लॉकडाउन में मंदिर बंद, मंडी बंद, आखिर कहां लेकर जाएं अपने फूलों को?

विनोद मौर्य कहते हैं, “गुलाब को तोड़कर उसकी पंखुड़ियों को सुखा रहे हैं। बस उम्मीद भर है कि शायद वो औने-पौने दाम में बिक जाए। इन पंखुड़ियों का प्रयोग ठंडई में किया जाता है। पहले गुलाब की ये पंखुड़ियां 50-60 रुपये प्रति किग्रा की दर से बिक जाती थीं, अब बीस के भाव बिक जाए तो बड़ी बात होगी।”

गुलाब के अलावा अन्य फूल सड़ रहे हैं

फूलों की खेती करने वाले एक अन्य किसान अरविंद कहते हैं, “फूलों की खेती कच्चा रोज़गार है। लॉकडाउन की वजह से सब बेकार हो रहा है। केवल गुलाब ही है जिसे हम लोग तोड़ रहे हैं बाकी फूलों को यूं ही छोड़ दिया जा रहा है।”

बातों ही बातों में फूलों की तरफ इशारा करते हुए अरविंद कहते हैं कि शायद इन फूलों की किस्मत मंदिरों के लिए नहीं है।

क्या हैं इंद्रपुर की समस्याएं?

शोभनाथ मौर्य, इंद्रपुर में देशी गुलाब की खेती करते हैं। यहां पैदा होने वाला गुलाब सोनभद्र, रेनूकोट, शक्तिनगर से लेकर भदोही तक भेजते रहे हैं।

इस गाँव में घर-घर में फूलों की माला बनती है। घर की महिलाएं माला बनाती हैं और पुरुष उसे बांस फाटक व मलदहिया की फूल मंडी में बेचते हैं।

इंद्रपुर के राजेंद्र कुमार मौर्य कहते हैं, “लॉकडाउन और आगे बढ़ा तो हमारी मुश्किलें इतनी बढ़ जाएंगी, जिसका कोई ओर-छोर नहीं होगा। आखिर कोरोना का दंश सिर्फ किसान ही क्यों झेलें? योगी सरकार किसानों के नुकसान की भरपाई करे। पूरा ना सही, थोड़ी सी राहत उनके लिए संजीवनी बन सकती है।”

पूर्वांचल किसान यूनियन के अध्यक्ष का क्या कहना है?

पूर्वांचल किसान यूनियन के अध्यक्ष योगीराज सिंह पटेल बताते हैं, “वाराणसी में पूरे साल फूलों की खेती होती है, यहां से दूसरे शहरों में भी फूलों को सप्लाई किया जाता है। लॉकडाउन की वजह से फूलों की खेती करने वाले किसानों का काफी नुकसान हुआ है।”

योगीराज आगे बताते हैं कि एक बिस्वा ज़मीन पर गुलाब के फूलों की खेती करने पर पांच हज़ार रुपये का खर्च आता है। गुलाब के फूलों की खेती करना काफी महंगा है, लॉकडाउन में बंद होने की वजह से गुलाब के फूल पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं।

योगी राज कहते हैं, “नवरात्र का सीजन आया और चला गया, इस दौरान फूलों की काफी बिक्री होती है। किसान पूरी तरह तैयारी किए हुए थे लेकिन सब कुछ तबाह हो गया। वाराणसी में फूलों का सालाना कारोबार लगभग दस करोड़ रुपये से ऊपर का है लेकिन कोरोना वायरस की वजह से फूलों के किसान का ना सिर्फ खेती तबाह हुआ है, बल्कि उनका व्यवसाय भी चौपट हो गया है।”


नोट: यह लेख YKA यूज़र रिज़वाना तबस्सुम द्वारा इससे पहले न्यूज़ क्लिक की वेबसाइट पर प्रकाशित किया जा चुका है।

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