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“मुझमें किसी भी व्यक्ति को लेकर सेक्शुअल भावनाएं नहीं आती हैं”

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खुश लड़की की तस्वीर

“चलो, किस लड़के को पसंद करती हो? बताओ तो सही!”

जब स्कूल में दोस्त यह सवाल पूछते थे तो मैं बेचैन हुआ करती थी। कारण यह नहीं था कि वह मुझे छेड़ेंगे या किसी लड़के को पता लग जाएगा। नाम दिए या दिए बिना यह सब तो होता ही था। मुझे यह चिंता होने लगी थी कि लड़कों को देखकर मुझमें कुछ खास भावनाएं क्यों नहीं जगती थीं। ऐसे लगता था की पूरे स्कूल में मैं ही इकलौती लड़की थी जिसको लड़के नहीं पसंद थे।

हम सब आठवीं कक्षा में आए ही थे की मेरी कुछ सहेलियां बॉयफ्रैंड्स के तलाश में थी। कुछ को मिले भी थे। मुझे फिर भी लड़कों में कोई भी दिलचस्पी नहीं जगी थी। ऐसे ही एक दिन दोबारा पूछताछ शुरू हुई।

“कोई तो अच्छा लगता होगा तुम्हें? एक दिन तुम्हारा भी बॉयफ्रेंड होगा। तुम और कोशिश क्यों नहीं करती? क्यों तुम शादी भी नहीं करोगी क्या? आदमी के बिना बच्चा कहां से आएगा?”

सब तरफ से संदेश यही था की मुझे भी जल्द से जल्द लड़का ढूंढ़ना पड़ेगा, नहीं तो ज़िन्दगी खराब हो जाएगी। आखिरकार हर लड़की को यही करना पड़ता है। है ना? पर मैं जितना भी कोशिश करती थी, मैं जानती थी कि मैं ऐसी ज़िन्दगी के लिए नहीं बनी थी। इस दबाव को सालों सहना पड़ा फिर कॉलेज आके चीज़ें बदलने लगी।

यहा पर मैं LGBTQ समुदाय के बारे में पढ़ने लगी। लेस्बियन – एक औरत जो दूसरे औरत से प्यार करती है। गे – जब एक आदमी दूसरे आदमी से प्यार करता है। बिसेक्सुअल – जो किसी भी लिंग के व्यक्ति को प्यार करता हो। ट्रांसजेंडर – जिसको जन्म के समय गलत लिंग सौंपा गया और आखिरी में मुझे वह शब्द मिला जो सुनकर मुझे सालों बाद राहत मिली ‘एसेक्शुअल’। एक व्यक्ति जो दूसरों से यौन आकर्षित नहीं महसूस करता है।

उस शब्द को बार-बार पढ़कर मेरा सर घूम रहा था। यह तो मेरा ही वर्णन कर रहा था। क्या सच में मेरे जैसे और लोग थे दुनिया में? क्या मैं उन से बात कर सकती थी? उनसे अपने सुख दुःख को साझा कर सकती थी? मैं उत्साहित थी। उस ही समय मुझे एक ऑनलाइन फोरम के बारे में पता लग गया।

एसेक्शुएलिटी एजुकेशन एंड अवेयरनेस नेटवर्क जो 2001 में स्थापित हुआ था और आज भी इंटरनेट पर जीवित है। उस फोरम पर बैठके मैंने कितने सारे लोगों की कहानिया नहीं पढ़ी। कुछ लोग जो स्कूल में थे, वो अपनी मुश्किलों के बारे में पोस्ट कर रहे थे। कुछ एसेक्शुअल लोग जो शादी-शुदा थे अपने रिश्ते पर लिख रहे थे। एक को घर से निकला गया क्योंकि माँ-बाप उसे स्वीकार नहीं करते थे। कई और लोग मदद मांग रहे थे कि वह अपने दोस्तों को अपने बारे में कैसे बताएं।

कहानियां पढ़-पढ़कर कुछ ही देर में मुझे यह एहसास हुआ की मुझमें कुछ कमी या गलत नहीं थी। जो डर स्कूल से मेरे मन में थे, वह गायब होने लगे थे। मेरी पहचान में कुछ खराबी नहीं थी और यह बोलने में मुझे अब एक हल्कापन महसूस होने लगा था। मगर भारत का हर एसेक्शुअल व्यक्ति इतना सौभाग्यशाली नहीं हैं।

एसेक्शुएलिटी पर जो भी जानकारी है वह सिर्फ और सिर्फ इंटरनेट पर मौजूद है। भारत की आबादी में ३५% से भी कम लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। वैसे भी, सब कुछ अंग्रेजी में ही उपलब्ध है।

मेरे जैसे कई युवा होंगे जिनको अपने परेशानियां और सवाल का सामना करना पढ़ रहा है। शायद वह तमिलनाडु में बसे हो, या ओडिशा या कश्मीर या राजस्थान कहीं भी हो सकते हैं। लेकिन उनके लिए यह ज़रूरी जानकारी तमिल, उड़िया, डोंगरी या मेवाड़ी में मौजूद नहीं है और जब स्कूल में सेक्स एजुकेशन ले आ पाना जंग लड़ने के समान है, तो एसेक्शुएलिटी का नाम तो कहां ही आएगा?

मुझे अभी भी वह बेचैनी याद है, जो स्कूल में मुझे उलझाती थी। ऐसी बातें मन पे बोझ डालती हैं। इसके वजह से व्यक्ति का आत्मसम्मान और आत्मविश्वास नष्ट हो जाता है। डर के मारे, एक ही विकल्प सामने आता है। मुंह बांध कर रखके दूसरों की बात में आ जाओ, भले ही आपको अपने खुशी त्यागनी पड़े। मगर क्या यह जीने का कोई तरीका है? मुझे नहीं लगता की कोई भी एसेक्शुअल व्यक्ति को इस अंधेरे में ज़िन्दगी काटनी चाहिए।

इसलिए मैं आज इस विषय पे लिख रही हू इस आशा में की अगर मेरे जैसा कोई व्यक्ति पढ़ रहा है, तो शायद उनको कम अकेलापन महसूस होगा।

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