कहते हैं हर लड़की के अंदर एक ‘माँ’ छिपी होती है। बच्चे को जन्म वह भले एक उम्र के बाद देती है लेकिन माँ की ममता, संवेदनशीलता, सबका ख्याल रखने की चिंता और रिश्तों को संजोए रखने का गुण यह सब उसके अंदर बचपन से मौजूद होता है।
खासकर ज़िंदगी का एक तय पड़ाव पार करने के बाद एक माँ के लिए तो उसकी बेटी उसकी सहेली बन जाती है, जो ना केवल उसकी खुशियां और गम बांटती है, बल्कि गलती करने पर उसे प्यार से झिड़क भी देती है।
आज इस पत्र के जरिये ऐसी ही कई बातें मैं हर उस माँ तक पहुंचाना चाहती हूं , जो उम्र का एक लंबा पड़ाव पार कर लेने और यहां तक कि खुद माँ बन जाने के बाद भी कई बेटियां कभी अपनी माँ से नहीं कह पाती हैं।
पता है माँ, आज सुबह मेरी मेड नहीं आई। इस कारण नींद खुलते ही मुझे सिंक में पड़े जूठे बर्तनों के साथ भिड़ना पड़ा। तुम्हें तो पता ही है कि मुझे सुबह-सुबह उठकर कुछ देर अपने साथ वक्त बिताना, गार्डेन में टहलना और पेड़-पौधों को निहारना पसंद है मगर अब इन सब चीज़ों के लिए वक्त ही नहीं मिल पाता है।
जब से रायन ने स्कूल जाना शुरू किया है, तो सुबह उठकर सीधा उसके लंच बनाने की तैयारी फिर उसे लेकर बस स्टॉप भागना। इसी से मेरे दिन की शुरुआत होती है। अगर किसी दिन थोड़ा-सा भी आलस किया, तो उसकी बस छूट जाती है। इसलिए ना चाहते हुए भी मुझे सुबह-सवेरे किचन में लगना ही पड़ता है। आज बर्तन धोते-धोते अचानक तुम्हारी याद आ गई।
बचपन में तुम्हें भी यही करते देखा है। आंख खुली नहीं कि तुम हाथ में झाड़ू लेकर किचन बुहारने लगती हो। आज कल तुम्हारे घुटनों में अक्सर दर्द रहता है फिर भी तुम मानती ही नहीं! कहती हो, “बासी रसोई में चूल्हा जलाने से घर में दरिद्रता आती है।”
तुम्हारी इस थ्योरी को सुनकर पहले मुझे खूब हंसी आती थी मगर आज खुद भी यही करती हूं, क्योंकि मेड तो नौ बजे से पहले आती नहीं और हाइजीन के लिहाज से रोज़ सुबह किचन की साफ-सफाई करके ही खाना पकाना चाहिए। ऐसा डॉक्टर्स का कहना है, अन्यथा कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।
तुम्हें किसने बताई थी ऐसी बातें? कैसे तुम छोटे-छोटे किस्से-कहानियों, बातों और लोकोक्तियों से हमारे ना चाहने पर भी हमसे अपने मन का करवा ही लेती थी। हम हरी सब्जियां ना खाएं, तो तुम कहती, “बुद्धि नहीं होगी।” दूध पीने में नखरा करते, तो कहती, “तुम्हारे दांत छोटे ही रह जाएंगे।” अगर धूप में बाहर निकलने की ज़िद्द करते, तो हमें डराती, “काली-कलूटी हो जाओगी।”
आज जब खुद अपने बेटे को ऐसा कहती हूं, तो समझ में आता है कि तुम हमें भरपूर पोषण मिले और हम स्वस्थ रहें, इसलिए ऐसा कहा करती थी। मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम हमारे छोटे-से घर की गूगल थी, जिसे सब पता होता था हमारी ज़रूरत से लेकर हमारी फीलिंग्स तक।
घर के सारे काम, सबकी फरमाइशों की पूर्ति, पापा की दवाई, दूध, सब्ज़ी और बाकी छोटे-मोटे सामान लाना, यह सब कुछ अकेले जाने कैसे कर लेती हो तुम। बस अपना ख्याल ही नहीं रख पाती हो। जानती हूं अभी तक तुमने ब्रेकफास्ट भी नहीं किया होगा।
कितनी बार कहा है कि सुबह ज़्यादा देर तक भूखी नहीं रहा करो। ब्लड प्रेशर की दवा खानी होती है तुम्हें मगर रोज़ के सारे काम निपटाकर जब तक भगवान के आगे दीया ना जला लो, तब तक तुम्हारे मुंह में अन्न का दाना नहीं जाता। माँ, तुम ही तो कहती हो ना कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है और भगवान की पूजा स्वस्थ मन से करनी चाहिए।
तो यह बात तुम पर भी तो लागू होती है। हमें कभी हल्का-सा भी सिर दर्द, बदन दर्द या सर्दी-जुकाम हो तो तुम परेशान हो जाती हो। समझाने लगती हो कि बेटा, 25 की उम्र के बाद महिलाओं को नियमित अपने शारीरिक स्वास्थ की जांच करानी चाहिए और पिछले महीने जब मैंने तुम्हारे कंप्लीट चेकअप का अपॉइंटमेंट लिया, तो तुम कहने लगी कि बेकार में पैसे बर्बाद करने की क्या ज़रूरत थी।”
हद हो गई! तुम खुद तो अपनी केयर करती नहीं, तो अब किसी को तो करना ही पड़ेगा ना। तुम्हें यह तो याद रहता है कि पापा को खाने में कटहल पसंद है या करेला, मुझे खीर अच्छी लगती है और छुटकी को कौन-से फ्लेवर की आइसक्रीम पसंद है मगर तुम्हें क्या पसंद है यह शायद तुम्हें याद भी नहीं होगा।
अपनी इच्छा, अपना अधिकार और अपने सुख के बारे में तो तुम कभी सोचती ही नहीं हो। तुम्हें तो बस हमेशा दूसरों की फिक्र लगी रहती है। सच कहूं तो तुम्हारी इस आदत की मैं जितनी कायल हूं, उतना ज़्यादा मुझे गुस्सा भी आता है। दांतों में अक्सर दर्द रहता है लेकिन तुम्हें डेस्टिंस्ट के पास जाने की फुर्सत नहीं है।
इन दिनों तुम्हारे घुटनों में भी तकलीफ रहने लगी है लेकिन दवा दुकान से दर्द की गोली लेकर खा लोगी और कहोगी, “अब ठीक हो गया।” अरे, ऐसे कैसे ठीक हो जाता है तुम्हारा दर्द? हमें किसी दिन हल्का-सा पेट दर्द भी हो जाए, तो तुरंत डॉक्टर के पास लेकर पहुंच जाती हो और खुद इतनी बीमारियां लेकर बैठी हो, फिर भी इग्नोर करती रहती हो।
याद है, पिछली बार जब मैं घर आई थी और शाम को पापा को साथ लेकर मार्केट गई, तो उन्होंने रोड क्रॉस करते हुए ज़ोर से मेरा हाथ पकड़ लिया था। यह बात जब मैंने तुम्हें बताई, तो अगले ही दिन तुम उन्हें लेकर डॉक्टर के यहां पहुंच गई।
सही निकला था तुम्हारा शक। पापा को मोतियाबिंद की प्रॉब्लम थी फिर तो तुमने उनकी आंखों का ऑपरेशन करवा कर ही दम लिया। मुझे लगता है कि तुम्हारी आंखों की रौशनी भी कमज़ोर हो रही है, क्योंकि मैंने देखा है तुम्हें चावल बीनने या सुई में धागा डालने जैसे महीन कामों को करने में अब कितनी परेशानी होती है।
इस बार जब मैं घर आऊंगी, तो तुम्हारा एक भी बहाना नहीं सुनूंगी। तुम्हें मेरे साथ डॉक्टर के पास चलना ही होगा। पहले तुम्हारी आंखों का और उसके बाद तुम्हारी दांतों का इलाज करवाऊंगी।
हां-हां पता है, हमेशा की तरह तुम यही कहोगी कि मैं तेरी माँ हूं या तू मेरी माँ है, जो इस तरह मुझ पर हुकुम चला रही है? अब तुम खुद अपना ख्याल नहीं रखोगी, तो मुझे तो बनना ही पड़ेगा ना तुम्हारी माँ।
माँ तुम क्यों नहीं समझती कि तुम हमारे लिए कितनी अनमोल हो। हमारे परिवार धुरी हो तुम, जिससे सब जुड़े हैं। सोचो अगर किसी मकान की नींव ही कमज़ोर हो जाए, तो वह कितने दिनों तक टिक पाएगा। इसलिए बहुत ज़रूरी है कि तुम अपना ख्याल रखो।
समय पर नाश्ता-खाना खाओ। पापा के साथ-साथ अपने स्वास्थ की भी नियमित जांच करवाओ। समय निकालकर थोड़ा अपने लिए भी जीओ। अपने वे सारे शौक पूरे करो, जिनसे तुम आज तक हमारी खुशी के लिए कॉम्प्रोमाइज़ करती आई हो।
किसी मनपसंद जगह पर घूमने जाओ। केवल घर की ज़रूरतों ही नहीं, बल्कि कुछ अपनी पसंद की चीज़ें भी खरीदो। हमेशा हमारे या पापा की च्वॉइस से नहीं, कभी अपने च्वॉइस की भी ड्रेस पहनो। बस मैं चाहती हूं कि तुम अब ज़िंदगी को अपने लिए जीओ, क्योंकि तुम्हारे बिना केवल पापा ही नहीं, हम सभी बच्चे भी अधूरे हैं। तुम हमारे जीवन का आधार हो माँ।