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‘Mera Rang Lal’: Listen To This 14-Year-Old’s Rap On Menstrual Health!

Priyantara Bharti is a 14-year-old trans and child rights activist from Bihar. She has been an advocate for child rights and talked about a range of issues from dowry, child marriage, to menstruation. This rap song is another one of her creative expressions to de-stigmatise the menstrual hygiene space.

In her own words, “This rap song is a narration by the menstrual blood who questions the idea about itself in the world outside its body and the blood lets the girl understand the power of its colour, her strength, her bravery, her beauty and her redness.” 

She wrote and performed the song all by herself, with the hope that girls in India are inspired to break the shackles of taboo and truly embrace their body.

She hopes “menstruators everywhere accept that they are proud of their red mark.”

Lyrics of the song below:

मेरा रंग लाल…

ओ रे मेरे नन्हे शहज़ादे,

क्यों कंपकंपी में तेरे इरादे?
ओ री मेरी नन्ही शहज़ादी,
क्यों खौफज़दा तेरी आज़ादी?
कि मेरा रंग तेरी ख्वाहिशों का कत्ल कर ना पाएगा,
इस लहू का लिबास ही इक दुनिया रचाएगा ऽऽऽ

मैं नहीं हूं शर्म, तेरी शक्ति का, साहस का, क्रान्ति, श्रृंगार की मिसाल रंग,
खुदा भी होता जिस्म गर तो उसमें मेरा लाल रंग,
समन्दर शरीर तेरा जिसकी तरंग मैं,
ये मेरा रंग लाल लाल लाल लाल लाल लाल लाल लाल लाल लाल लाल रंग मैं!

कुरीति की आहुति दे,
हे ईश मुझे मज़बूती दे,
जो अजगर तुझको डसता,
उसकी ज़हर में पितृसत्ता,
ना वजू करो पढ़ो नमाज़,
जिस्म पे है दाग आज।
धर्म-जात पे ये रंग कोई, धब्बा है क्या?
मेरा गिरना, मेरा बहना, मनहूसी का ठप्पा है क्या?
तू क्यों रुकती है?
तू क्यों रुकता है?
तू क्यों डरती है?
तू क्यों डरता है?
तू क्यों झुकती है?
तू क्यों झुकता है?
चुप क्यों रहती है?
चुप क्यों रहता है?

मैं दाग नहीं,
धब्बा नहीं,
फ़िक्र नहीं,
लज्जा नहीं,
पाप नहीं,
श्राप नहीं,
दुःख नहीं,
संताप नहीं,
शक नहीं,
कलंक नहीं,
सलाख़ नहीं,
सवाल नहीं,
ना बेबसी,
ना खुदकुशी,
मैं हूं  तेरी उम्मीद,
तेरी जीत,
तेरा हूर,
तेरा नूर,
तेरा ग़ुरूर,
तेरा वज़ूद,
तेरा युद्ध,
तेरी अदब,
तेरी दुआ,
जैसे कोई उमर, कोई अदा,
कोई मोड़,
कोई ठौर,
कोई संघर्ष,
कोई हर्ष,
मैं हूं तेरा लहू…

कमला ये तेरा शोक नहीं जश्न है रे,
मेरी शुद्धिकरण पे ऐसे प्रश्न कैसे?
तेरी रग रग में मैं ही तो बहता हूँ,
कितना और कब तक कहूँ?

मैं हूँ तेरा लहू …

ये खौफ़नाक, शर्मनाक, हानिकारी, है बीमारी,
है विचित्र, अपवित्र तेरा चरित्र,
बेड़ियाँ हैं रूढ़,
वो किंकर्तव्यविमूढ़ x2
जो मानता है          मेरा रंग देख          हो जाएगा अन्धा,
और भूतों के         सायों से बोझिल         होगा तेरा कंधा,
वो ऐसे हैं इंसां      जो करते हैं अन्धे       विश्वसों का धंधा!

मेरा वसन नहीं                कफ़न!
मैं क्यों करूं इसे               दफ़न!
भाड़ में जाए ये सारी       परवाह!
हैं फक़त ये बेतुके-से     अफवाह!
तेरी आवाज़ में छुपी है        आह!
तूने क्या किया                 गुनाह!

तू बड़ी हो रही है,
तू बड़ा हो रहा है,
शरीर में हो रहे बदलाव,
ये तो बस उम्र का एक पड़ाव!
ये कुछ अजीब नहीं, न अलग, न कोई समझौता है।
तुम अकेले नहीं हो, सबके साथ ऐसा होता है।
ये तुम्हारे स्वस्थ होने का प्रतीक है!
अरे, घबराओ नहीं! सब ठीक है!
सब ठीक है!
सब ठीक है!
सब ठीक है!

जब उठ चुकी है बदलाव की ये तरंग,
तो फिर क्यों अपने जिस्म अपनी सोंच संग,
मैं अपनी धमनियों से लड़ रही हूं जंग,
ये मेरा रंग लाल लाल लाल लाल लाल लाल लाल लाल लाल लाल रंग ।

मुन्ना हमारा भरेगा किलकारी,
खेलेगी-कूदेगी मुनिया दुलारी,
हाय री, नन्ही सी दुनिया तुम्हारी x2
महावारी नहीं बीमारी!
महावारी नहीं बीमारी!

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