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My periods story

आइये आज मैं आपको अपनी जीवन कक एक ऐसा किस्सा बताती हूँ  जो सुनने में बहुत छोटा परन्तु मेरे परिवार के लिए एक बड़ा बदलाव सिद्ध हुआ है।

इस बदलाव का बीज मुझमे लेडी श्री राम कॉलेज द्वारा बोया गया और जिसका अंकुरण रूम टू रीड द्वारा किआ गया ,जब मैं लेडी श्री राम कॉलेज में बी.एल. एड. का कोर्स कर रही थी,और उसी में मैंने जेंडर विषय पढ़ा ।

      बचपन से ही मेरा और मेरी तीनो बहनो का लालन पालन इस तरह हुआ कि हमारा मानना था की माहवारी एक अपरित्र ,व अशुद्ध चीज़ है जो किसी से बताई नही जानी चाहिए खासतौर पर लड़को या पुरुषो से । बहनो की शादी उस दौरान हो चुकी थी ,बस मैं, मेरी छोटी बहन और और दो भाई है जो माता पिता के साथ रहते हैं। हमे हमारी माताजी द्वारा जाता था कि माहवारी दौरान यदि पेट दर्द भी हो तो शोर नही मचाना भाइयो को पता नही चलना चाहिए कि हमे दर्द क्यों हो रहा है,अचार नही छूना चाहिए क्योंकि अचार खराब हो जाएगा और हम मैन भी लेते  ।

जब मैंने अपने जेंडर के कोर्स में वीमेन एमप्योरिटी के बारे में पढ़ा टैब मुझे यह पता चला कि माहवारी एक सामान्य प्रक्रिया है क्योंकि ये हमारे शरीर का ही एक अंग है,मैंने अलनी छोटी बहन को इस बारे में बताया पर उसे भरोसा नही हुआ मम्मी को बताया तो भी निराश ही मिली क्योंकि तब शायद मुझमे भी आत्मविश्वास की कमी थी इसलिए मैं अपनी बात पर जोर नही दे पाई।

जब मेरी नॉकरी रूम टू रीड में लगी वहाँ सोशल मोबिलीज़ेर के रूप में मैंने सत्र लेने के दौरान अपने मॉड्यूल में पढ़ा कि माहवारी क्यों होती है ,कैसे होती है और कछार खराब होने का वास्तविक कारण क्या है,

उस दिन मैंने ठान  लिया कि अब मैं घर मे इस विषय पर चर्चा करूँगी । मैन अपने माहवारी के दौरान अचार के सारे डिब्बे कपनी बहन के सामने छुए और 2 महीनों तक ििनतज़र किया अचार में कोई परिवर्तन नही आया ,बल्कि परिवर्तन आया तो मेरी बहन की सोच में अब वो माहवारी के दौरान वो सभी गतिविधियां करती है जो वो करना चाहती है,इस एक छोटे से पहल ने मेरी बहन में बड़ा बदलाव किया है और वो भी एक टीचर है तो अपने स्कूल के बच्चों को इसकी जानकारी देती है ताकि वे भविष्य में किसी मिथक या गलत धारणा का शिकार न हो।

        धन्यवाद।

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