Site icon Youth Ki Awaaz

#MyPeriodStory: “माहवारी बनी सपनो की उड़ान”

मेरा और मेरी सबसे जिगरी दोस्त का पिरीयड एक साथ शुरू हुआ, इस बात से हम दोनो को बड़ी राहत थी, क्योंकि हम एक दूसरे से अपनी जिज्ञासा को बाँट सकते थे| लेकिन, जल्द ही उसकी शादी हो गई और उसके बाद जो मैंने देखा और समझा उसने मेरी ज़िंदगी ही बदल दी|

लड़कियों का बाल-विवाह होने से उनकी शारीरिक समस्याएँ बढ़ जाती हैं, और ख़ास-तौर से पिरीयड के शुरू होने के कुछ समय बाद ही अगर वो गर्भवती हो जाए| समस्या हाथ से बाहर  हो जाती हैं जब बार-बार गर्भवती होना पड़ता हैं घरवालों की लड़का पैदा करने की ज़िद्द के लिए| 

जब यही दिक़्क़त मैंने अपने आस-पास अपनी बहुत सी सहेलियों को झेलते हुए देखा तो मेरे मन में तिलमिलाहट सी उठी, कि कुछ तो करना चाहिए…. लेकिन क्या?

समय बीतता गया मुझे पहली बार अपने सामुदायिक केंद्र के सरज़ी और बच्चों के साथ गाँव से बहार निकलकर दिल्ली जाने का मौक़ा मिला, जहाँ मैंने एक संस्था में कपड़े के पैड बनते हुए देखे और उसकी एक वर्कशाप में भी शामिल होने का मौक़ा मिला| उस वर्कशाप में सरज़ी और कुछ और पुरुष भी थे, तो हम सब लड़कियों को बहुत शर्म आई, लेकिन इससे मुझे प्रेरणा भी मिली और मैंने ठाना की मुझे नर्स बनना हैं|

मेरे घरवालों ने मुझे गाँव से बाहर पढ़ने जाने नहीं दिया और मुझे लगा की मेरे सपने चकना-चूर हो गए| मेरी मायूसी के दौरान ही मैंने देखा कि मेरी छोटी बहन बहुत दिनो से स्कूल नहीं जा रही हैं और गुम-सुम हैं| बात करने पर पता चला उसके पिरीयड शुरू हो गए हैं और फिर वही तिलमिलाहट सी उठी, कि कुछ तो करना चाहिए|

बहुत प्रयास के बाद मैंने अपने सरज़ी की मदद से मेरे गाँव में महावारी के बारे में जागरूकता फैलाने जो दीदी आई थी उनसे संपर्क किया और परिवार वालों को मनाकर बड़ी मुश्किल से उनकी वर्कशाप में पहुँची| मैंने वर्कशाप में यह देखा कि सिर्फ़ लड़कियाँ ही नहीं, लड़के भी पिरीयड के मुद्दों पर आवाज़ उठाते हैं, लेकिन गाँव तो अभी बहुत पीछे था|

मैंने अपना अनुसंधान शुरू किया और एक चीज़ सामने आई कि जो भी संस्था गाँव में पिरीयड पर काम कर रही थी, उनमे से ज़्यादातर पैड का मुफ़्त वितरण कर रही थी, जिससे बाज़ारीकरण को बड़ावा मिलता और प्रकृति को नुक़सान पहुँचता| अपनी विवाहित सहेलियों

से चर्चा करने के बाद यह भी सामने आया कि एक बार पैड ख़त्म होने के बाद, दूर जाकर ख़रीदने की दिक़्क़त, पति से इस बारे में न खुलकर बात कर पाना और पैसों के अभाव के कारण निरंतर पैड इस्तेमाल नहीं हो पाता था और वापस से गंदे कपड़ों पर कहानी सिमट जाती थी (शर्म की वजह से जिसको धूप भी नसीब नहीं हो पाती थी)|

बाल विवाह से पिरीयड की समस्याओं को रोकने के लिए बाल विवाह का रुकना ज़रूरी था और यह तब संभव था अगर लड़कियाँ शिक्षा पाने के लिए स्कूल तक पहुँच पाए| उसके लिए पैड की ज़रूरत थी जो की टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल और स्व-निर्मित हो|

इसी लिए मैंने अपनी दोस्त के साथ क्लोथ पैड बनाने और उस पर जागरूकता फैलाने की शुरुआत कर दी हैं| इस साल महावारी दिवस पर हमने अपनी पहली वर्कशाप में अपने गाँव की किशोरियों के साथ महावारी की कहानिया सुनी और उनको अपने स्व-निर्मित क्लोथ पैड से रूबरू कराया| पहले तो सब शर्माए लेकिन जब हमने अपने पहले पिरीयड की कहानिया, डर व सवालों के क़िस्से सुनाए तो एक-एक करके सब के क़िस्से सामने आए|

उसी दिन मैंने अपनी जिगरी दोस्त को जब यह तौफ़ा दिया, तो उसकी आखें भर आई और उसने बोला – “मुझे ख़ुशी हैं, तेरे सपनो को उड़ान मिल गई..”

– आसमा बानो 

Exit mobile version